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ऋग्वेद मण्डल - 4 के सूक्त 46 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 4/ सूक्त 46/ मन्त्र 2
    ऋषिः - वामदेवो गौतमः देवता - इन्द्रवायू छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    श॒तेना॑ नो अ॒भिष्टि॑भिर्नि॒युत्वाँ॒ इन्द्र॑सारथिः। वायो॑ सु॒तस्य॑ तृम्पतम् ॥२॥

    स्वर सहित पद पाठ

    श॒तेन॑ । नः॒ । अ॒भिष्टि॑ऽभिः । नि॒युत्वा॑न् । इन्द्र॑ऽसारथिः । वायो॒ इति॑ । सु॒तस्य॑ । तृ॒म्प॒त॒म् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    शतेना नो अभिष्टिभिर्नियुत्वाँ इन्द्रसारथिः। वायो सुतस्य तृम्पतम् ॥२॥

    स्वर रहित पद पाठ

    शतेन। नः। अभिष्टिऽभिः। नियुत्वान्। इन्द्रऽसारथिः। वायो इति। सुतस्य। तृम्पतम् ॥२॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 4; सूक्त » 46; मन्त्र » 2
    अष्टक » 3; अध्याय » 7; वर्ग » 22; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह ॥

    अन्वयः

    हे वायो वायुवद्वर्त्तमानविज्ञानयुक्ताध्यापकोपदेशकावभिष्टिभिर्यथेन्द्रसारथिर्नियुत्वाञ्छतेना नोऽस्मान् तर्पयति तथा सुतस्य च युवां तृम्पतम् ॥२॥

    पदार्थः

    (शतेना) असङ्ख्येन। अत्र संहितायामिति दीर्घः। (नः) अस्मान् (अभिष्टिभिः) अभीष्टाभिः क्रियाभिः (नियुत्वान्) बलवान् समर्थो वायुः (इन्द्रसारथिः) इन्द्रो विद्युत् सारथिर्यस्य सः (वायो) वायुवद्वर्त्तमान विज्ञानयुक्त (सुतस्य) निष्पादितस्य (तृम्पतम्) ॥२॥

    भावार्थः

    अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे मनुष्या ! यथा वायुना सह विद्युद्विद्युता सह वायुश्चानेकाः क्रिया जनयतस्तथा पृथिवीजलादिभिर्यूयमनेकानि कार्य्याणि साध्नुत ॥२॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे (वायो) वायुवद्वर्त्तमान विज्ञानयुक्त अध्यापक और उपदेशक ! (अभिष्टिभिः) अभीष्ट क्रियाओं से जैसे (इन्द्रसारथिः) बिजुलीरूप सारथि जिसका वह (नियुत्वान्) बलवान् समर्थ वायु (शतेना) असङ्ख्य से (नः) हम लोगों को तृप्त करता है, वैसे (सुतस्य) उत्पन्न किये गये के सम्बन्ध में आप दोनों (तृम्पतम्) तृप्त होओ ॥२॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे मनुष्यो ! जैसे वायु के साथ बिजुली, बिजुली के साथ वायु अनेक क्रियाओं को उत्पन्न करते हैं, वैसे पृथिवी और जलादिकों से आप अनेक कार्य्यों को सिद्ध करो ॥२॥

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    विषय

    'इन्द्र सारथि' बनना

    पदार्थ

    [१] हे (वायो) = क्रियाशील जीव! (नियुत्वान्) = प्रशस्त इन्द्रियाश्वोंवाला, (इन्द्रसारथिः) = परमैश्वर्यशाली प्रभु को अपना सारथि बनानेवाला- उसके हाथ में जीवन की बागडोर को सौंपनेवाला होता हुआ तू (शतेन अभिष्टिभिः) = वासनाओं पर (शतशः) = आक्रमणों द्वारा (नः) = हमारे (सुतस्य) = उत्पन्न किये हुए सोम का (तृम्पतम्) = तृप्तिपूर्वक पान करो। [२] वायु और इन्द्र ने सोम का पान करना है। क्रियाशील व जितेन्द्रिय व्यक्ति ही सोम का रक्षण करते हैं। हम अपने इस जीवन में वासनाओं पर सतत आक्रमण करते हुए प्रशस्त इन्द्रयाश्वोंवाले बनें । प्रभु को अपना सारथि बनाएँ रथ की बागडोर प्रभु को सौंप दें। ऐसा होने पर ही वासनाओं से अनाक्रान्त रहकर हम सोम का रक्षण कर पाएँगे।

    भावार्थ

    भावार्थ- हम वासनाओं पर प्रभुस्तवन द्वारा सतत आक्रमण करें। प्रशस्तेन्द्रिय बनकर सोम का पान करें।

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    विषय

    विद्युत् वा सूर्य और पवन वत् इन्द्र वायु ।

    भावार्थ

    हे (वायो) ज्ञानवान् एवं बलवान् पुरुष ! हे (इन्द्र) ऐश्वर्यवान् और शत्रुहन्तः ! तुम दोनों (सुतस्य) उत्पन्न, ऐश्वर्यमय राष्ट्र को प्राप्त कर तृप्त होवो । हे (वायो) बलवान् पुरुष ! तू (नियुत्वान्) नियुक्त, अधीन, नाना अश्वारोही सैनिकों का स्वामी और (इन्द्र-सारथिः) ऐश्वर्यवान् पुरुष का सारथि के समान सहायक होकर (नः) हमें (शतेन अभिष्टिभिः) सैकड़ों अभिलषित कार्यों से राष्ट्र का उपभोग कर ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वामदेव ऋषिः॥ इन्द्रवायू देवते॥ छन्दः- १ विराड् गायत्री । २, ५, ६ ७ गायत्री। ४ निचृद्गायत्री॥ सप्तर्चं सूक्तम्॥

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे माणसांनो ! जसे वायूबरोबर विद्युत, विद्युतबरोबर वायू अनेक क्रिया उत्पन्न करतात तसे पृथ्वी व जल इत्यादींद्वारे अनेक कार्य सिद्ध करा. ॥ २ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Vayu, strong in command of vast forces with Indra as your charioteer, come with hundreds of choice acts and gifts, and enjoy a drink of the best of our preparations to your heart’s content.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    The same subject of science of energy is continued.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O teachers and preachers! you are benevolent and mighty like the wind and endowed with the knowledge. You satisfy us with desirable activities like the mighty wind whose charioteer is electricity does satisfy us and makes us happy.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    O men! the electricity with the wind and the wind with electricity accomplish various activities. So you should accomplish various works with the combination of the earth, water and other things.

    Foot Notes

    (नियुत्वान्) बलवान् समर्थो नियुत्वान् ईश्वरनाम (NG 2, 22) वायु: । = Mighty and efficient wind (वायो ) वायुवद्वर्त्त मानविज्ञानयुक्त | (वायो) वा = गतिगन्धनयो:, गते स्त्रिष्वर्थेष्वत्र ज्ञानार्थग्रहणम् । = Mighty like the wind and endowed with knowledge.

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