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ऋग्वेद मण्डल - 4 के सूक्त 46 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 4/ सूक्त 46/ मन्त्र 5
    ऋषिः - वामदेवो गौतमः देवता - इन्द्रवायू छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    रथे॑न पृथु॒पाज॑सा दा॒श्वांस॒मुप॑ गच्छतम्। इन्द्र॑वायू इ॒हा ग॑तम् ॥५॥

    स्वर सहित पद पाठ

    रथे॑न । पृ॒थु॒ऽपाज॑सा । दा॒श्वांस॑म् । उप॑ । ग॒च्छ॒त॒म् । इन्द्र॑वायू॒ इति॑ । इ॒ह । आ । ग॒त॒म् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    रथेन पृथुपाजसा दाश्वांसमुप गच्छतम्। इन्द्रवायू इहा गतम् ॥५॥

    स्वर रहित पद पाठ

    रथेन। पृथुऽपाजसा। दाश्वांसम्। उप। गच्छतम्। इन्द्रवायू इति। इह। आ। गतम् ॥५॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 4; सूक्त » 46; मन्त्र » 5
    अष्टक » 3; अध्याय » 7; वर्ग » 22; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह ॥

    अन्वयः

    हे इन्द्रवायू इव प्रतापिनौ राजसेनेशौ ! युवां पृथुपाजसा रथेनेहाऽऽगतं दाश्वांसमुपगच्छतम् ॥५॥

    पदार्थः

    (रथेन) रमणीयेन यानेन (पृथुपाजसा) विस्तीर्णबलेन (दाश्वांसम्) दातारम् (उप) (गच्छतम्) (इन्द्रवायू) वायुविद्युदग्नी इव राजसेनेशौ (इह) अस्मिन् सङ्ग्रामे (आ) (गतम्) ॥५॥

    भावार्थः

    यथा वायुविद्युतौ महाप्रतापयुक्तौ वर्त्तेते तथैव राजाऽमात्यौ भवेताम् ॥५॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे (इन्द्रवायू) वायु और बिजुलीरूप अग्नि के सदृश प्रतापी राजा और सेना के ईश जनो ! आप दोनों (पृथुपाजसा) विस्तीर्ण बलयुक्त (रथेन) रमणीय वाहन से (इह) इस संग्राम में (आ, गतम्) आओ और (दाश्वासंम्) दाता जन के (उप, गच्छतम्) समीप प्राप्त होओ ॥५॥

    भावार्थ

    जैसे वायु और बिजुली बड़े प्रताप से युक्त वर्त्तमान हैं, वैसे ही राजा और मन्त्रीजन होवें ॥५॥

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    विषय

    जितेन्द्रियता व क्रियाशीलता

    पदार्थ

    [१] हे (इन्द्रवायू) = जितेन्द्रियता व क्रियाशीलतारूप दिव्यगुणो! आप (पृथुपाजसा) = प्रभूत बलवाले (रथेन) = इस शरीर रथ से (दाश्वांसम्) = आप के प्रति अपने को देनेवाले पुरुष को (उपगच्छतम्) = समीपता से प्राप्त होओ। इस दाश्वान् के शरीर-रथ को आप बड़ा शक्तिशाली बनाओ। [२] हे इन्द्रवायू ! आप इह इसी जीवनयज्ञ में (आगतम्) = हमें प्राप्त होओ। हम इस जीवन में जितेन्द्रिय व क्रियाशील बनें। ऐसा बनने से हमारा यह शरीररथ प्रभूत बलवाला हो ।

    भावार्थ

    भावार्थ- जितेन्द्रियता व क्रियाशीलता हमारे शरीर-रथ को अत्यन्त शक्तिशाली बनाते हैं ।

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    विषय

    विद्युत् वा सूर्य और पवन वत् इन्द्र वायु ।

    भावार्थ

    हे (इन्द्र-वायू) ऐश्वर्यवन् ! हे बलवन् राजन् ! सेनापते ! आप दोनों (पृथु-पाजसा रथेन) बड़े भारी बलशाली, बड़े विस्तृत पाद रूप चक्रों से युक्त, वेगवान् रथ से (दाश्वांसम्) दानशील प्रजाजन को (उप गच्छतम्) प्राप्त हो और (इह आगतम्) इस राष्ट्र में आया जाया करो ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वामदेव ऋषिः॥ इन्द्रवायू देवते॥ छन्दः- १ विराड् गायत्री । २, ५, ६ ७ गायत्री। ४ निचृद्गायत्री॥ सप्तर्चं सूक्तम्॥

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जसे वायू व विद्युत अत्यंत बलशाली असतात तसेच राजा व मंत्रीगण असावेत. ॥ ५ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Indra and Vayu, come here by the chariot, big and spacious and powerful, and go to reach the man of charity.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    More about the energy is told.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O king and Commander of army ! you are mighty like the wind and electricity. Come here to this battle-field with your very strong charming vehicle and go to a liberal donor.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    Like the wind and electricity, a king and his ministers should be strong.

    Foot Notes

    (इन्द्रवायू ) वायुविद्युदग्नी इव राजसेनेशौ। = A king and the commander of the army who are mighty like the wind and electricity. (पृथुपाजसा ) विस्तीर्णबलेन । पाज इति वलनाम = With strong power.

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