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ऋग्वेद मण्डल - 4 के सूक्त 52 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 4/ सूक्त 52/ मन्त्र 2
    ऋषिः - वामदेवो गौतमः देवता - उषाः छन्दः - निचृद्गायत्री स्वरः - षड्जः

    अश्वे॑व चि॒त्रारु॑षी मा॒ता गवा॑मृ॒ताव॑री। सखा॑भूद॒श्विनो॑रु॒षाः ॥२॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अश्वा॑ऽइव । चि॒त्रा । अरु॑षी । मा॒ता । गवा॑म् । ऋ॒तऽव॑री । सखा॑ । अ॒भू॒त् । अ॒श्विनोः॑ । उ॒षाः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अश्वेव चित्रारुषी माता गवामृतावरी। सखाभूदश्विनोरुषाः ॥२॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अश्वाऽइव। चित्रा। अरुषी। माता। गवाम्। ऋतऽवरी। सखा। अभूत्। अश्विनोः। उषाः ॥२॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 4; सूक्त » 52; मन्त्र » 2
    अष्टक » 3; अध्याय » 8; वर्ग » 3; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह ॥

    अन्वयः

    हे मनुष्या ! या चित्राऽरुष्यृतावरी उषा अश्वेवाश्विनोः सखाऽभूत् सा गवां मातेव पालिका वेद्या ॥२॥

    पदार्थः

    (अश्वेव) अश्वावद्वर्त्तमाना (चित्रा) अद्भुतगुणकर्म्मस्वभावा (अरुषी) आरक्ता (माता) जननी (गवाम्) किरणानाम् (ऋतावरी) बहुसत्यप्रकाशिका (सखा) (अभूत्) (अश्विनोः) सूर्य्याचन्द्रमसोः (उषाः) ॥२॥

    भावार्थः

    अत्रोपमालङ्कारः । हे मनुष्या ! या मातृवत्सखिवद्वर्त्तमानोषा वर्त्तते सा युक्त्या सर्वैः सेवनीया ॥२॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे मनुष्यो ! जो (चित्रा) अद्भुत गुण, कर्म और स्वभावयुक्त (अरुषी) ईषत् लाल वर्ण (ऋतावरी) बहुत सत्य का प्रकाश करानेवाली (उषाः) प्रातर्वेला (अश्वेव) घोड़ी के सदृश वर्त्तमान (अश्विनोः) सूर्य और चन्द्रमा की (सखा) मित्र (अभूत्) हुई वह (गवाम्) किरणों की (माता) माता के सदृश पालन करनेवाली जाननी चाहिये ॥२॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में उपमालङ्कार है । हे मनुष्यो ! जो माता और मित्र के सदृश वर्त्तमान प्रातर्वेला है, वह युक्ति से सब पुरुषों से सेवन करने योग्य है ॥२॥

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    विषय

    'अरुषी-ऋतावरी' उषा

    पदार्थ

    [१] (अश्वा इव) = [अश् व्याप्तौ] जैसे यह उषा कर्मों में व्याप्त होनेवाली है, उसी प्रकार (चित्रा) = ज्ञान को देनेवाली है। (अरुषी) = आरोचमान है, (गवां माता) = प्रकाश की किरणों का निर्माण करनेवाली है, ऋतावरी यह ऋतवाली है- यज्ञोंवाली है। हमें प्रातः प्रबुद्ध होकर कर्त्तव्यकर्मों में लग जाना चाहिए। ज्ञानप्राप्ति के लिए यत्नशील होना चाहिए। हम इस उषा जागरण से अपने जीवन को आरोचमान तेजस्वी बनाएँ । स्वाध्याय द्वारा अपने ज्ञानप्रकाश को बढ़ाते हुए हम यज्ञशील हों। [२] प्रातः प्राणसाधना का उषाकाल (अश्विनो:) = प्राणापान का (सखा अभूत्) = मित्र होता है, अर्थात् इस उषाकाल में प्राणसाधना चलती है। प्रातः प्रबुद्ध होकर, स्नानादि शुद्धि करके, हम सूर्याभिमुख बैठकर प्रतिदिन प्राणापान का अभ्यास करें।

    भावार्थ

    भावार्थ- प्रातः प्रबुद्ध होकर अपने कर्त्तव्यकर्मों में हम लगें, स्वाध्याय करें और यज्ञ में प्रवृत्त हों। प्राणसाधना करें।

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    विषय

    पक्षान्तर में—उषा, तीव्र ताप शक्ति का वर्णन।

    भावार्थ

    जिस प्रकार (उषा) उषा, प्रभात वेला (अश्विनोः) दिन और रात्रि के बीच में उनकी (सखा) मित्र, सखी के तुल्य या उनके आख्यान वा नाम से उषा का ग्रहण होता है । वह (ऋतावरी) तेज से युक्त (गवां माता) किरणों को माता के समान जनने वाली, के (अरुषी) तेजस्वी, ललाई लिये हुए, (अश्वा इव) घोड़ी के तुल्य (चित्रा) अद्भुत रूप वाली होती है। उसी प्रकार (उषाः) गृहस्थ में बसने वाली, वा पति की नित्य कामना करने वाली, स्त्री भी (अश्विनोः) देह के भोक्ता इन्द्रिय रूप अश्वों के स्वामी जितेन्द्रिय स्त्री-पुरुषों में (सखा-अभूद्) मित्र के तुल्य एक ही समान नाम और कीर्त्ति से कहलाने योग्य है । अर्थात् दम्पति में पति के नाम से ही स्त्री को बुलाया जाना उचित है । वह (ऋतावरी) सत्य व्यवहार वाली, व्यवहार में सच्ची, (गवां माता) उत्तम वेदवाणियों की जानने वाली, वा (गवां माता) गौ आदि पशुओं को भी माता के समान स्नेह से पालन करने वाली वा गौ से उत्पन्न दुग्ध, घृत, नवतीत, क्षीर, पायस आदि पदार्थों को उत्तम रीति से बनाने में कुशल हो । वह (अरुषी) आरक्त, स्वस्थ, एवं राग से रञ्जित, प्रेम से युक्त और पति सन्तान के प्रति रोष से रहित हो । वह (अश्वा इव) शीघ्रगामिनी घोड़ी के समान गृहस्थ रथ को वा अश्व-जाति के बलवान् पुरुष के तुल्य बल वीर्य सामर्थ्य वाली, (चित्रा) अद्भुत गुण कर्म स्वभाव वाली ज्ञान, मान, आदर से युक्त हो ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वामदेव ऋषिः॥ उषा देवता॥ छन्द:- १, २, ३, ४, ६ निचृद्गायत्री । ५, ७ गायत्री ॥ सप्तर्चं सूक्तम् ॥

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात उपमालंकार आहे. हे माणसांनो ! जी उषा माता व मित्र याप्रमाणे असते, तिचे सर्वांनी युक्तीने सेवन करावे. ॥ २ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Like a graceful mare, crimson red, wondrous bright, mother pioneer of sunrays, shower of nature’s light and bliss, the dawn is a friend of the Ashvins, the sun and moon.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    The same subject of attributes of a noble woman is continued.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O man! the dawn is wonderful, reddish, manifester of truth; is like a mare, the friend of the sun and the moon. She should be considered as the mother of the rays. (In the same manner, a noble woman should be preceptor of truth, like a sister or the teacher and the preacher and mother of noble speech).

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    O men! the dawn which is like the mother or the friend should be utilized properly.

    Foot Notes

    (अश्विनोः) सूय्यचिन्द्रमसोः । तत्कावश्विनी सूर्याचन्द्रमसावित्येके (NKT 2, 2, 8)। = Of the sun and the moon. (गवाम्) किरणानाम्। = Of the rays.

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