ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 10/ मन्त्र 3
त्वं नो॑ अग्न एषां॒ गयं॑ पु॒ष्टिं च॑ वर्धय। ये स्तोमे॑भिः॒ प्र सू॒रयो॒ नरो॑ म॒घान्या॑न॒शुः ॥३॥
स्वर सहित पद पाठत्वम् । नः॒ । अ॒ग्ने॒ । ए॒षा॒म् । गय॑म् । पु॒ष्टिम् । च॒ । व॒र्ध॒य॒ । ये । स्तोमे॑भिः । प्र । सू॒रयः॑ । नरः॑ । म॒घानि॑ । आ॒न॒शुः ॥
स्वर रहित मन्त्र
त्वं नो अग्न एषां गयं पुष्टिं च वर्धय। ये स्तोमेभिः प्र सूरयो नरो मघान्यानशुः ॥३॥
स्वर रहित पद पाठत्वम्। नः। अग्ने। एषाम्। गयम्। पुष्टिम्। च। वर्धय। ये। स्तोमेभिः। प्र। सूरयः। नरः। मघानि। आनशुः ॥३॥
ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 10; मन्त्र » 3
अष्टक » 4; अध्याय » 1; वर्ग » 2; मन्त्र » 3
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अष्टक » 4; अध्याय » 1; वर्ग » 2; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनर्विद्वद्विषयमाह ॥
अन्वयः
हे अग्ने ! ये नरः सूरयः स्तोमेभिर्मघानि प्रानशुस्तैः सह त्वं न एषां गयं च पुष्टिं च वर्धय ॥३॥
पदार्थः
(त्वम्) (नः) अस्माकम् (अग्ने) विद्वन् (एषाम्) (गयम्) अपत्यं गृहं च। गय इत्यपत्यनामसु पठितम्। (निघं०२.२)। धननामसु पठितम्। (निघं०२.१) गृहनामसु पठितम्। (निघं०३.४) (पुष्टिम्) (च) (वर्धय) (ये) (स्तोमेभिः) वेदस्थैः प्रकरणैः स्तोत्रैः (प्र) (सूरयः) विपश्चितः (नरः) नेतारः (मघानि) मघानि धनानि (आनशुः) प्राप्नुयुः ॥३॥
भावार्थः
विद्वद्भिराप्तैः सहितैः सर्वेषां मनुष्याणां सुखं बलं च वर्द्ध्येत ॥३॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर विद्वद्विषय को मन्त्र में कहते हैं ॥
पदार्थ
हे (अग्ने) विद्वन् ! (ये) जो (नरः) नायक (सूरयः) विद्वान् जन (स्तोमेभिः) वेद में वर्त्तमान स्तुति के प्रकरणों से (मघानि) धनों को (प्र, आनशुः) प्राप्त होवें, उनके साथ (त्वम्) आप (नः) हम लोगों और (एषाम्) इनके (गयम्) सन्तान तथा गृह वा धन (च) और (पुष्टिम्) पुष्टि को (वर्धय) वृद्धि कीजिये ॥३॥
भावार्थ
विद्वानों को चाहिये कि यथार्थवक्ताओं के सहित सब मनुष्यों के सुख और बल को बढ़ावें ॥३॥
विषय
अग्निवत् तेजस्वी विद्वान् पुरुष का वर्णन । उससे प्रजा की उपयुक्त याचनाएं ।
भावार्थ
भा०-हे (अग्ने) नायक ! हे विद्वन् ! हे प्रभो ! ( ये ) जो ( सूरयः ) विद्वान् ( नरः ) नेता लोग ( स्तोमेभिः) उत्तम स्तुति वचनों और ज्ञानों से अपने (मधानि ) उत्तम धनों को ( प्र आनशुः ) प्राप्त करते हैं उन (नः) हमारे ( एषां ) उन लोगों के ( गयं पुष्टिं च ) प्राण और पोषक और पुत्र, गृह आदि और पोषक, पशु आदि समृद्धि को (वर्धय) बढ़ा ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
गय अत्रेय ऋषिः॥ अग्निर्देवता ॥ छन्द:-- १, ६ निचृदनुष्टुप् । ५ अनुष्टुप् । २, ३ भुरिगुष्णिक् । ४ स्वराड्बृहती । ७ निचृत् पंक्तिः ॥ सप्तर्चं सूक्तम् ॥
विषय
गय-पुष्टं-मघ
पदार्थ
[१] हे (अग्ने) = परमात्मन् ! (त्वम्) = आप (एषां नः) = इन हमारे (गयम्) = प्राणों को (च) = व (पुष्टिम्) = धनादि के पोषण को (वर्धय) = बढ़ाइये । प्रभु कृपा से ही प्राणशक्ति व धन की वृद्धि होती है। [२] (ये) = जो (सूरयः नरः) = ज्ञानी पुरुष हैं वे (स्तोमेभिः) = स्तुतियों के द्वारा (मघानि) = ऐश्वर्यों को (प्र आनशुः) = प्रकर्षेण व्याप्त करते हैं। प्रभु का स्तवन करते हुए ये ज्ञानी वास्तविक ऐश्वर्यों को, अध्यात्म-सम्पत्ति को प्राप्त करते हैं ।
भावार्थ
भावार्थ- हम प्रभु-स्तवन करते हुए 'प्राणशक्ति, धनपुष्टि व अध्यात्म ऐश्वर्य' को प्राप्त करें।
मराठी (1)
भावार्थ
विद्वानांनी आप्तविद्वानांसह सर्व माणसांचे सुख व बल वाढवावे. ॥ ३ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
For us, Agni, lord of light and knowledge, increase and exalt the health and home of these, men of vision and splendour, sages, scholars, teachers, leaders and all, bright and brave who, with songs of praise and prayer, have come to attain the honour and excellence of existence.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The attributes of the enlightened persons are stated
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O learned person ! with the association of those leading enlightened men who have acquired wealth with the compliance of tannest relevant contained in the Vedic mantras, increase their progeny, wealth or home and their strength.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
Absolutely truthful enlightened persons should intensify the happiness and strength of all.
Foot Notes
(गयम् ) अपत्यं गृहं च । गय इत्यपत्य नाम (NG 2, 2) धननाम 2, 10 गृहनाम 3, 4) = Progeny, wealth and home.
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