ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 10/ मन्त्र 6
नू नो॑ अग्न ऊ॒तये॑ स॒बाध॑सश्च रा॒तये॑। अ॒स्माका॑सश्च सू॒रयो॒ विश्वा॒ आशा॑स्तरी॒षणि॑ ॥६॥
स्वर सहित पद पाठनु । नः॒ । अ॒ग्ने॒ । ऊ॒तये॑ । स॒ऽबाध॑सः । च॒ । रा॒तये॑ । अ॒स्माका॑सः । च॒ । सू॒रयः॑ । विश्वाः॑ । आसाः॑ । त॒री॒षणि॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
नू नो अग्न ऊतये सबाधसश्च रातये। अस्माकासश्च सूरयो विश्वा आशास्तरीषणि ॥६॥
स्वर रहित पद पाठनू। नः। अग्ने। ऊतये। सऽबाधसः। च। रातये। अस्माकासः। च। सूरयः। विश्वाः। आशाः। तरीषणि ॥६॥
ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 10; मन्त्र » 6
अष्टक » 4; अध्याय » 1; वर्ग » 2; मन्त्र » 6
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अष्टक » 4; अध्याय » 1; वर्ग » 2; मन्त्र » 6
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह ॥
अन्वयः
हे अग्ने ! यो सबाधसश्चास्माकासः सूरयो न ऊतये रातये च विश्वा आशास्तरीषणि नोऽस्मान्नू प्रापयेयुस्ते परोपकारिणो जायन्ते ॥६॥
पदार्थः
(नू) सद्यः (नः) अस्माकम् (अग्ने) विद्वन् राजन् (ऊतये) रक्षाद्याय (सबाधसः) बाधेन सह वर्त्तमानाः (च) (रातये) दानाय (अस्माकासः) अस्माकमिमे (च) (सूरयः) (विश्वाः) सकलाः (आशाः) दिशः (तरीषणि) तरणे ॥६॥
भावार्थः
त एव पण्डिता ये विमानादीनि यानानि निर्माय भूगोलेऽभितो भ्रामयन्ति ते प्रशंसितदाना भवन्ति ॥६॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर उसी विषय को कहते हैं ॥
पदार्थ
हे (अग्ने) विद्वन् राजन् ! जो (सबाधसः) बाध के सहित वर्त्तमान (च) और (अस्माकासः) हम लोगों के सम्बन्धी (सूरयः) विद्वान् जन (नः) हम लोगों की (ऊतये) रक्षा आदि के लिये और (रातये) दान के लिये (च) भी (विश्वाः) सम्पूर्ण (आशाः) दिशाओं को (तरीषणि) तरण में, हम लोगों को (नू) शीघ्र पहुँचावें, वे परोपकारी होते हैं ॥६॥
भावार्थ
वे ही चतुर विद्वान् हैं, जो विमान आदि वाहनों को रच के भूगोल में चारों ओर घुमाते हैं, वे प्रशंसित दानवाले होते हैं ॥६॥
विषय
अग्निवत् तेजस्वी विद्वान् पुरुष का वर्णन । उससे प्रजा की उपयुक्त याचनाएं ।
भावार्थ
भा०-हे (अग्ने) अग्रणी नायक ! ( सबाधसः) शत्रुपीड़क उपायों में कुशल, ( अस्माकासः ) हमारे वीर लोग ( नः अतये ) हमारी रक्षा ( रातये च ) और ऐश्वर्य दान के लिये हों और ( सूरयः ) विद्वान् लोग भी ( विश्वाः आशाः) सब दिशाओं और सब कामनाओं को (तरीषणि) पार करने में समर्थ हों ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
गय अत्रेय ऋषिः॥ अग्निर्देवता ॥ छन्द:-- १, ६ निचृदनुष्टुप् । ५ अनुष्टुप् । २, ३ भुरिगुष्णिक् । ४ स्वराड्बृहती । ७ निचृत् पंक्तिः ॥ सप्तर्चं सूक्तम् ॥
विषय
इच्छाओं से ऊपर
पदार्थ
[१] हे (अग्ने) = परमात्मन् ! आप (नु) = अब (नः) = हमारे (ऊतये) = रक्षण के लिये होइये । (च) = और (सबाधसः) = दारिद्र्यजनित दुःखों के बाधन से युक्त धनों के (रातये) = दान के लिये होइये । [२] (च) = और (अस्माकास:) = हमारे ये (सूरयः) = विद्वान् पुरुष (विश्वा आशा:) = सब आशाओं को, इच्छाओं को (तरीषणि) = तैरने में समर्थ हों। सब आशाओं से ऊपर उठकर ही वास्तविक सुख का लाभ होता है। इन आशाओं से ऊपर उठना तभी होता है, जब कि हम प्रभु-दर्शन कर पाते हैं 'रसोऽप्यस्य परं दृष्ट्वा निवर्तते' ।
भावार्थ
भावार्थ- प्रभु हमारे रक्षक हों, प्रथमाश्रम में प्रभु-रक्षण में हम शक्ति व ज्ञान का संचय करें। द्वितीयाश्रम में प्रभु हमें दारिद्र्य दुःखनिवारक धनों को दें। तृतीय में हम इच्छाओं से ऊपर उठने की साधना करें ।
मराठी (1)
भावार्थ
जे विमान इत्यादी याने निर्माण करून भूगोलाच्या सर्व बाजूंनी भ्रमण करतात ते प्रशंसित दानदाते असतात व तेच चतुर विद्वान असतात. ॥ ६ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
And now Agni, for our protection and progress and for the relief and advancement bound in limitations, come so that all our leaders, bright and bold, may cross over all the bounds in all the directions of space.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The same subject of technocrat is continued well.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O learned king ! those enlightened persons who are facing similar difficulties and are our part and parcel (kith and kin) help us in overcoming all types of the ocean of misery for our protection and are benevolent.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
They are scholars or scientists who manufacture aircraft and other vehicles soon and make us travel around the world. They are called as men of admirable charity.
Foot Notes
(रातये) दानाय । = For charity, donation. (तरीषणि) तरणे | = In crossing over or overcoming.
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