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ऋग्वेद मण्डल - 5 के सूक्त 22 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 22/ मन्त्र 3
    ऋषिः - विश्वसामा आत्रेयः देवता - अग्निः छन्दः - स्वराडुष्निक् स्वरः - ऋषभः

    चि॒कि॒त्विन्म॑नसं त्वा दे॒वं मर्ता॑स ऊ॒तये॑। वरे॑ण्यस्य॒ तेऽव॑स इया॒नासो॑ अमन्महि ॥३॥

    स्वर सहित पद पाठ

    चि॒कि॒त्वित्ऽम॑नसम् । त्वा॒ । दे॒वम् । मर्ता॑सः । ऊ॒तये॑ । वरे॑ण्यस्य । ते॒ । अव॑सः । इ॒या॒नासः॑ । अ॒म॒न्म॒हि॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    चिकित्विन्मनसं त्वा देवं मर्तास ऊतये। वरेण्यस्य तेऽवस इयानासो अमन्महि ॥३॥

    स्वर रहित पद पाठ

    चिकित्वित्ऽमनसम्। त्वा। देवम्। मर्तासः। ऊतये। वरेण्यस्य। ते। अवसः। इयानासः। अमन्महि ॥३॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 22; मन्त्र » 3
    अष्टक » 4; अध्याय » 1; वर्ग » 14; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह ॥

    अन्वयः

    हे विद्वन् ! वरेण्यस्याऽवसस्ते सङ्गेनेयानासो मर्त्तासो वयमूतये चिकित्विन्मनसं देवं त्वाऽग्निमिवामन्महि ॥३॥

    पदार्थः

    (चिकित्विन्मनसम्) चिकित्वितां विज्ञानवतां मन इव मनो यस्य तम् (त्वा) त्वाम् (देवम्) विद्वांसम् (मर्त्तासः) मनुष्याः (ऊतये) रक्षणाद्याय (वरेण्यस्य) वरितुमर्हस्य (ते) तव (अवसः) कमनीयस्य (इयानासः) प्राप्नुवन्तः (अमन्महि) विजानीयाम ॥३॥

    भावार्थः

    मनुष्यैः सदैव विद्वत्सङ्गेन पदार्थविद्यान्वेषणीया ॥३॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे विद्वन् ! (वरेण्यस्य) स्वीकार करने और (अवसः) कामना करने योग्य (ते) आपके सङ्ग से (इयानासः) प्राप्त होते हुए (मर्त्तासः) मनुष्य हम लोग (ऊतये) रक्षा आदि के लिये (चिकित्विन्मनसम्) विज्ञानयुक्त पुरुषों के मन के सदृश मन से युक्त (देवम्) विद्वान् (त्वा) आपको अग्नि के सदृश (अमन्महि) विशेष करके जानें ॥३॥

    भावार्थ

    मनुष्यों को चाहिये कि सदा ही विद्वानों के सङ्ग से पदार्थविद्या का खोज करें ॥३॥

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    विषय

    अग्रणी पुरुष का आदर सत्कार ।

    भावार्थ

    भा०-हे विद्वन् ! राजन् ! नायक ! प्रभो ! ( वरेण्यस्य ) सबसे श्रेष्ठ, वरण करने योग्य, वा श्रेष्ठ मार्ग में ले जाने वाले, ( श्रवसः ) सर्व रक्षक, (ते) तेरे शरण ( इयानासः ) आते हुए ( मर्त्तासः ) मनुष्य हम लोग ( ऊतये ) ज्ञान और रक्षा के लिये ( चिकित्विन्-मनसं ) विज्ञान युक्त विद्वानों के समान ज्ञान और मनन शक्ति वाले (त्वा देवं ) तुझ तेजस्वी को हम (अमन्महि ) मान आदर करते हैं ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    आत्रेय ऋषिः । अग्निर्देवता । १ विराडनुष्टुप छन्दः २, ३ स्वराडुष्णिक् । ४ बृहती || चतुऋचं सूक्तम् ॥

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    विषय

    प्रभु के वरणीय रक्षण का ध्यान ऋषभः ॥

    पदार्थ

    [१] (मर्तासः) = मनुष्य (ऊतये) = रक्षण के लिये (चिकित्विन्मनसम्) = ज्ञानयुक्त मनवाले, अथवा हमारे मनों को ज्ञानयुक्त करनेवाले (देवम्) = प्रकाशमय (त्वा) = आपको (इयानासः) = प्राप्त होनेवाले होते हैं। आपकी उपासना ही हमें वासनाओं के आक्रमण से बचाती है और हम आपके ही छोटे रूपदेवतुल्य बन पाते हैं । [२] (वरेण्यस्य) = वरने के योग्य (ते) = आपके (अवस:) = रक्षण का ही हम (अमन्महि) = मनन करते हैं। किस प्रकार अद्भुत उपायों से आप हमारा रक्षण करते हैं। उस आपके रक्षण का स्मरण करते हुए हम आपके उपासक बनते हैं।

    भावार्थ

    भावार्थ- प्रभु हमारे हृदयों को प्रकाशमय व दिव्यवृत्तिवाला बनाते हैं। प्रभु का रक्षण ही वरणीय है।

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    माणसांनी सदैव विद्वानांच्या संगतीने पदार्थविद्येचे संशोधन करावे. ॥ ३ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Agni, refulgent lord of life and giver of light, we mortals, approaching the generous lord of supreme intelligence worthy of choice for protection and enlightenment, meditate on your presence and pray for the favour of your grace.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    The subject of Agni is further described.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O learned person! let us the mortals know you well, because you are endowed with enlightened mind. We approach you by the association of your desirable protective cover shining and purifying.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    Men should carry out research into sciences by the association of highly learned scientists.

    Translator's Notes

    Even the translation of Prof. Wilson of चिकित्वञ्जनासम् as “who are of intelligent mind" clearly shows that by Agni, material fire is not meant but a highly learned leader. Strangely and erroneously Prof. Wilson and many western scholars like him think that fire is glorified in such mantras.

    Foot Notes

    (चिकित्वन्मनासम्) चिकित्विमाविज्ञानवतां मनइव मनो यस्य तम् । चिती-संज्ञाने (भ्वा.) अव धातोरनेकार्थष्वक्त्र कान्त्यर्थं ग्रहणम्। = Whose mind is like the mind of great scholars or scientists, (अवस:) कमनीयस्य । कान्तिः कामना । = Of desirable protection. (इयानासः) प्राप्नुवन्तः इणगतौ (अदा.) । = Approaching.

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