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ऋग्वेद मण्डल - 5 के सूक्त 6 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 6/ मन्त्र 8
    ऋषिः - वसुश्रुत आत्रेयः देवता - अग्निः छन्दः - निचृत्पङ्क्ति स्वरः - पञ्चमः

    नवा॑ नो अग्न॒ आ भ॑र स्तो॒तृभ्यः॑ सुक्षि॒तीरिषः॑। ते स्या॑म॒ य आ॑नृ॒चुस्त्वादू॑तासो॒ दमे॑दम॒ इषं॑ स्तो॒तृभ्य॒ आ भ॑र ॥८॥

    स्वर सहित पद पाठ

    नवाः॑ । नः॒ । अ॒ग्ने॒ । आ । भ॒र॒ । स्तो॒तृऽभ्यः॑ । सु॒ऽक्षि॒तीः । इषः॑ । ते । स्या॒म॒ । ये । आ॒नृ॒चुः । त्वाऽदू॑तासः । दमे॑ऽदमे । इष॑म् । स्तो॒तृऽभ्यः॑ । आ । भ॒र॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    नवा नो अग्न आ भर स्तोतृभ्यः सुक्षितीरिषः। ते स्याम य आनृचुस्त्वादूतासो दमेदम इषं स्तोतृभ्य आ भर ॥८॥

    स्वर रहित पद पाठ

    नवाः। नः। अग्ने। आ। भर। स्तोतृऽभ्यः। सुऽक्षितीः। इषः। ते। स्याम। ये। आनृचुः। त्वाऽदूतासः। दमेऽदमे। इषम्। स्तोतृऽभ्यः। आ। भर ॥८॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 6; मन्त्र » 8
    अष्टक » 3; अध्याय » 8; वर्ग » 23; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ राजविषयमाह ॥

    अन्वयः

    हे अग्ने ! ये त्वादूतासो वयं त्वामानृचुस्तेभ्य नः स्तोतृभ्यस्त्वं सुक्षितीर्नवा इष आ भर येन ते वयमुत्साहिताः स्याम त्वं स्तोतृभ्यो दमेदम इषमा भर ॥८॥

    पदार्थः

    (नवाः) नवीनाः (नः) अस्मभ्यम् (अग्ने) राजन् (आ) (भर) (स्तोतृभ्यः) धार्मिकेभ्यो विद्वद्भ्यः (सुक्षितीः) शोभना क्षितयः पृथिव्यो मनुष्या वा यासु ताः (इषः) अन्नाद्याः (ते) (स्याम) (ये) (आनृचुः) अर्चामः (त्वादूतासः) त्वं दूतो येषां ते (दमेदमे) गृहेगृहे (इषम्) उत्तमामिच्छाम् (स्तोतृभ्यः) सुपात्रेभ्यो विपश्चिद्भ्यः (आ) (भर) ॥८॥

    भावार्थः

    स एव राजा श्रेयान् भवति य उत्तमान् भृत्यानतुलमैश्वर्यं सर्वसुखाय दधाति दूतचारैः सर्वस्य राजस्य सर्वं समाचारं विदित्वा यथायोग्यं प्रबन्धं करोति ॥८॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    अब राजविषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे (अग्ने) राजन् ! (ये) जो (त्वादूतासः) त्वादूतास अर्थात् आप दूत जिनके ऐसे हम लोग आपका (आनृचुः) सत्कार करते हैं उन (नः) हम (स्तोतृभ्यः) धार्मिक विद्वानों के लिये आप (सुक्षितीः) सुन्दर पृथिवी वा मनुष्य विद्यमान जिनमें ऐसे (नवाः) नवीन (इषः) अन्न आदि को (आ, भर) धारण कीजिये जिससे (ते) वे हम लोग उत्साहित (स्याम) होवें और आप (स्तोतृभ्यः) सुपात्र अर्थात् सज्जन विद्वानों के लिये (दमेदमे) घर-घर में (इषम्) उत्तम इच्छा को (आ, भर) धारण कीजिये ॥८॥

    भावार्थ

    वही राजा प्रशंसनीय होता है, जो उत्तम भृत्य और अतुल ऐश्वर्य्य को सब के सुख के लिये धारण करता है और दूत और चारों अर्थात् गुप्त संदेश देनेवालों से सब राज्य का समाचार जान के यथायोग्य प्रबन्ध करता है ॥८॥

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    विषय

    यज्ञाग्निवत् अग्नि, राजाग्नि का वर्णन

    भावार्थ

    भा०-जिस प्रकार अग्नि विद्वानों को ( सुक्षितीः इषः) उत्तम भूमि में उत्पन्न अन्न प्रदान करता है, और विद्वान् लोग घर घर में उसी को तापप्रद रूप से प्राप्त करके ज्वलित करते हैं उसी प्रकार है (अग्ने) ज्ञानवन् ! हे तेजस्विन् ! नायक ! तू (नः स्तोतृभ्यः) हमारे विद्वान् स्तुति- कर्त्ता पुरुषों को (सुक्षितीः ) उत्तम निवास योग्य ( इष: ) इच्छानुकूल अन्नादि सामिग्री और उत्तम भूमियों में उत्पन्न अन्न और उत्तम निवास गृह वा भूमि की स्वामिनी प्रजाएं ( आ भर ) प्राप्त करा । ( ये ) जो (त्वा-दूतासः ) तुझ को उपास्य, या प्रमुख बनाकर (दमे-दमे ) प्रत्येक दमन या शासन के कार्य में या प्रतिगृह (आनृचुः ) तेरी स्तुति और आदर करते हैं वे हम ( ते स्याम ) तेरे ही उपासक वा अनुगामी होकर रहें, तू उन ( स्तोतृभ्यः इषं आ भर ) उन स्तुतिशील पुरुषों को अन्नादि प्राप्त करा ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वसुश्रुत आत्रेय ऋषिः ॥ अग्निदेवता ॥ छन्द:- १, ८, ९ निचृत्पंक्ति: । २, ५ पंक्ति: । ७ विराट् पंक्ति: । ३, ४ स्वराड्बृहती । ६, १० भुरिग्बृहती ॥

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    विषय

    त्वादूतासः

    पदार्थ

    [१] हे (अग्ने) = परमात्मन् ! (नः) = हम (स्तोतृभ्यः) = स्तोताओं के लिये (नवा:) = [नव गतौ] हमारे जीवन को गतिमय बनानेवाली (सुक्षितीः) = गति के द्वारा हमारे निवास को उत्तम बनानेवाली (इषः) = प्रेरणाओं को (आभर) = प्राप्त कराइये। [२] आपकी प्रेरणाओं को प्राप्त करके (ते स्याम) = हम वे बनें, (ये आनृचुः) = जो सदा पूजा की वृत्तिवाले हों और (दमे दमे) = प्रत्येक गृह में (त्वादूतासः) = आपके दूत हों, आपके ज्ञान सन्देश को पहुँचानेवाले हों। इन (स्तोतृभ्यः) = स्तोताओं के लिये (इषं आभर) = आप प्रेरणा को प्राप्त कराइये। आप से प्रेरणा को प्राप्त करके ही सप्तम मन्त्र के अनुसार ब्रह्मचर्याश्रम में हम पुरुषार्थ से ज्ञान की वाणियों को प्राप्त करते हैं। अष्टम मन्त्र के पूर्वार्ध के अनुसार गृहस्थ में गतिशील बनकर अपने निवास को उत्तम बनाते हैं। उत्तरार्ध के अनुसार वानप्रस्थ में निरन्तर आपका अर्चन करते हुए संन्यास में आपके ज्ञान के सन्देश को घर-घर में पहुँचाते हैं।

    भावार्थ

    भावार्थ- प्रभु प्रेरणा से हम अपने जीवन को उत्तम बनायें । निरन्तर प्रभु की उपासना से शक्तिशाली बनकर प्रभु के सन्देश को फैलानेवाले हों ।

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जो उत्तम नोकर व अतुल ऐश्वर्य सर्वांच्या सुखासाठी धारण करतो व दूताद्वारे सर्व राज्याचे वर्तमान जाणून यथायोग्य व्यवस्थापन करतो तोच राजा प्रशंसनीय असतो. ॥ ८ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Agni, mighty power and light of knowledge, bring us new forms of food and energy and give us new revelations of blissful earths and stars in existence. And we pray, may we, who worship and celebrate you, be your messengers in every home. O lord, bring us the food and energy of life and light of knowledge ever new for us, your celebrants and supplicants.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    The duties of a ruler are told.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O learned king ! we honor you because of your acting as our messenger. Give us righteous and learned men, fresh food materials and other things grown on good lands or by good farmers. Thus we may get desired encouragement, fulfil the noble desires of all deserving righteous and highly learned persons at their doors.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    He alone is a very good ruler, who has good servants and unparalleled wealth for making all happy and makes all proper arrangements in his State. He collects all information of the whole kingdom through his intelligence service and messengers.

    Foot Notes

    (सुक्षिती:) शोभना: क्षितयः पृथिव्यो मनुष्या वा यासु ताः । क्षितिरिति पृथिवीनाम (NG 1, 1) (क्षितयः इति मनुष्यनाम (NG 2, 3) । = Containing good lands or good men. (दमे दमे ) गृहे गृहे । दम इति गृहनाम (NG 3, 4) = At every home.

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