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ऋग्वेद मण्डल - 6 के सूक्त 32 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 32/ मन्त्र 4
    ऋषिः - सुहोत्रः देवता - इन्द्र: छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    स नी॒व्या॑भिर्जरि॒तार॒मच्छा॑ म॒हो वाजे॑भिर्म॒हद्भि॑श्च॒ शुष्मैः॑। पु॒रु॒वीरा॑भिर्वृषभ क्षिती॒नामा गि॑र्वणः सुवि॒ताय॒ प्र या॑हि ॥४॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सः । नी॒व्या॑भिः । ज॒रि॒तार॑म् । अच्छ॑ । म॒हः । वाजे॑भिः । म॒हत्ऽभिः॑ । च॒ । शुष्मैः॑ । पु॒रु॒ऽवीरा॑भिः । वृ॒ष॒भ॒ । क्षि॒ती॒नाम् । आ । गि॒र्व॒णः॒ । सु॒वि॒ताय॑ । प्र । या॒हि॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    स नीव्याभिर्जरितारमच्छा महो वाजेभिर्महद्भिश्च शुष्मैः। पुरुवीराभिर्वृषभ क्षितीनामा गिर्वणः सुविताय प्र याहि ॥४॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सः। नीव्याभिः। जरितारम्। अच्छ। महः। वाजेभिः। महत्ऽभिः। च। शुष्मैः। पुरुऽवीराभिः। वृषभ। क्षितीनाम्। आ। गिर्वणः। सुविताय। प्र। याहि ॥४॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 32; मन्त्र » 4
    अष्टक » 4; अध्याय » 7; वर्ग » 4; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह ॥

    अन्वयः

    हे वृषभ गिर्वण इन्द्र राजन्त्स त्वं नीव्याभिर्वाजेभिर्महद्भिः शुष्मैर्युक्ताभिः पुरुवीराभिः सेनाभिस्सह क्षितीनां सुविताय प्राऽऽयाहि महो जरितारं चाऽच्छा याहि ॥४॥

    पदार्थः

    (सः) (नीव्याभिः) नीविषु प्रापणीयेषु भवाभिः (जरितारम्) स्तावकम् (अच्छा) अत्र संहितायामिति दीर्घः। (महः) महान्तम् (वाजेभिः) वेगविज्ञानादिगुणवद्भिः (महद्भिः) महाशयैः (च) (शुष्मैः) प्रशंसितबलैः (पुरुवीराभिः) पुरवो बहवो वीरा यासु सेनासु ताभिः (वृषभ) बलिष्ठ (क्षितीनाम्) मनुष्याणाम् (आ) (गिर्वणः) य उत्तमाभिर्वाग्भिः सेव्यते तत्सम्बुद्धौ (सुविताय) प्रेरणाय (प्र) (याहि) प्रयाणं कुरु ॥४॥

    भावार्थः

    यो मनुष्यो धार्मिकाणां बलिष्ठानां सुशिक्षितानां सेनाभिर्विजयाय प्रयतेत स ध्रुवं विजयमाप्नुयात् ॥४॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे (वृषभ) बलयुक्त (गिर्वणः) उत्तम वाणियों से सेवा किये गये अत्यन्त ऐश्वर्य्य के करनेवाले राजन् ! (सः) वह आप (नीव्याभिः) प्राप्त कराने योग्य पदार्थों में होनेवाली तथा (वाजेभिः) वेग और विज्ञान आदि गुणवालों तथा (महद्भिः) महाशयों और (शुष्मैः) प्रशंसित बलवालों से युक्त (पुरुवीराभिः) बहुत वीर जिनमें उन सेनाओं के साथ (क्षितीनाम्) मनुष्यों की (सुविताय) प्रेरणा के लिये (प्र,आ,याहि) अच्छे प्रकार यात्रा करिये और (महः) बड़े (जरितारम्, च) और स्तुतिवाले को (अच्छा) उत्तम प्रकार प्राप्त हूजिये ॥४॥

    भावार्थ

    जो मनुष्य धार्मिक, बलिष्ठ और उत्तम प्रकार से शिक्षित पुरुषों की सेनाओं से विजय के लिये प्रयत्न करे, वह निश्चय कर विजय को प्राप्त होवे ॥४॥

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    विषय

    पंक्तिबद्ध पुरुवीर सेनाओं का उपदेश ।

    भावार्थ

    ( सः ) वह राजा तू सदा ( नीव्याभिः ) प्राप्त करने योग्य उद्देश्यों को लक्ष्य में रखने वाली वा ‘नीवी’ अर्थात् नामावलि या पंक्तियों में सुव्यवस्थित सेनाओं तथा ( महद्भिः वाजेभिः ) बड़े २ ज्ञानवान्, और बलवान् पुरुषों तथा ( महद्भिः शुष्मैः ) बड़े २ बलों सहित (जरितारम् ) स्तुतिशील तथा, स्वपक्ष को हानि करने वाले शत्रु जन को क्रम से पालन और हनन के लिये ( अच्छ ) सन्मुख होकर प्राप्त हो । हे ( वृषभ ) बलवन् ! हे (गिर्वणः) वाणियों, और आज्ञाओं के देने वाले और स्तुतियों के योग्य ! तू ( क्षितीनाम् सुविताय ) प्रजाओं के सुख प्राप्त और ऐश्वर्य वृद्धि के लिये ( पुरु-वीराभिः ) बहुत से वीर पुरुषों से बनी सेनाओं सहित ( प्र याहि ) आगे बढ़ ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    सुहोत्र ऋषिः ।। इन्द्रो देवता ॥ छन्दः - १ भुरिक पंक्ति: । २ स्वराट् पंक्ति:। ३, ५ त्रिष्टुप् । ४ निचृत्त्रिष्टुप् । पञ्चर्चं सूक्तम् ॥

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    विषय

    नीव्याभिः-पुरुवीराभिः

    पदार्थ

    [१] हे प्रभो ! (स) = वे आप (नीव्याभिः) = नीवि में उत्तम, मूलधन को प्राप्त कराने में उत्तम, वास्तविक ऐश्वर्य को प्राप्त कराने में उत्तम, स्तुतियों से (जरितारम्) = स्तवन करनेवाले की (अच्छा) = ओर (प्रयाहि) = प्राप्त होइये। इस स्तोता की ओर (महो वाजेभिः) = महत्त्वपूर्ण शक्तियों के साथ (च) = तथा (महद्भिः शुष्मैः) = महान् शत्रुशोषक बलों के साथ प्राप्त होइये । [२] हे (वृषभ) = सब कल्याणों का वर्षण करनेवाले प्रभो (गिर्वणः) = स्तुति-वाणियाँ से सम्भजनीय प्रभो! (पुरुवीराभिः) = खूब ही शत्रुओं को कम्पित करनेवाली [वि+ईर] इन स्तुतियों के द्वारा (क्षितीनाम्) = इन मनुष्यों के (सुविताय) = शुभ मार्ग पर चलने के लिये [प्रयाहि =] प्राप्त होइये ।

    भावार्थ

    भावार्थ- स्तुति से 'महान् बल, शत्रुशोषक शक्ति व शुभ मार्ग पर चलने की वृत्ति' प्राप्त होती है। स्तुति नीव्या है, वास्तविक ऐश्वर्य को प्राप्त कराने में उत्तम है तथा पुरुवीरा है, खूब ही शत्रुओं को कम्पित करनेवाली है।

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जी माणसे धार्मिक, बलवान व प्रशिक्षित सेनेद्वारे विजयासाठी प्रयत्न करतात ती निश्चित विजय प्राप्त करतात. ॥ ४ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Indra, mighty brave and generous ruler, sung and celebrated in song, come well to the celebrant for the well being of the people and bless them with high spirits and ambition for victory and latest great powers and forces manned by many heroic leaders and warriors of the rising generation.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    The same subject of king and his friendship --is continued.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O mightiest king ! served or honored with good words, come forward for the peoples' welfare along with great and mighty men who are endowed with impetus, knowledge and other virtues and with armies consisting of many heroes and bearing in mind their goal to urge on them to discharge their duties. Come to your admirers when invited by them.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    That man who tries to achieve victory with the help of the armies of righteous, mighty and well-trained persons is surely victorious.

    Foot Notes

    (नीव्याभिः) नीविषु प्रापणीयेषु भवाभिः । मीञ्-प्रापणे (भ्वा०) | = With the armies bearing in mind the desired goal. (क्षितीनाम्) मनुष्याणाम् । क्षितयः इति मनुष्यनाम (NG 2, 3)। = Of men. (सुविताय) प्र ेरणाय । = To urge upon people to discharge their duties. (जरितारम्) स्तावकम् । - प्रसवैश्वर्ययो: (स्वा०) अत्रप्रसवः प्रेणाम् जरिता इति स्तोतृनाम (NG 3,16)। = Mighty person.

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