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ऋग्वेद मण्डल - 6 के सूक्त 38 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 38/ मन्त्र 4
    ऋषिः - भरद्वाजो बार्हस्पत्यः देवता - इन्द्र: छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    वर्धा॒द्यं य॒ज्ञ उ॒त सोम॒ इन्द्रं॒ वर्धा॒द्ब्रह्म॒ गिर॑ उ॒क्था च॒ मन्म॑। वर्धाहै॑नमु॒षसो॒ याम॑न्न॒क्तोर्वर्धा॒न्मासाः॑ श॒रदो॒ द्याव॒ इन्द्र॑म् ॥४॥

    स्वर सहित पद पाठ

    वर्धा॑त् । यम् । य॒ज्ञः । उ॒त । सोमः॑ । इन्द्र॑म् । वर्धा॑त् । ब्रह्म॑ । गिरः॑ । उ॒क्था । च॒ । मन्म॑ । वर्ध॑ । अह॑ । ए॒न॒म् । उ॒षसः॑ । याम॑न् । अ॒क्तोः । वर्धा॑न् । मासाः॑ । श॒रदः॑ । द्यावः॑ । इन्द्र॑म् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    वर्धाद्यं यज्ञ उत सोम इन्द्रं वर्धाद्ब्रह्म गिर उक्था च मन्म। वर्धाहैनमुषसो यामन्नक्तोर्वर्धान्मासाः शरदो द्याव इन्द्रम् ॥४॥

    स्वर रहित पद पाठ

    वर्धात्। यम्। यज्ञः। उत। सोमः। इन्द्रम्। वर्धात्। ब्रह्म। गिरः। उक्था। च। मन्म। वर्ध। अह। एनम्। उषसः। यामन्। अक्तोः। वर्धान्। मासाः। शरदः। द्यावः। इन्द्रम् ॥४॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 38; मन्त्र » 4
    अष्टक » 4; अध्याय » 7; वर्ग » 10; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ मनुष्याः किं वर्धयेयुरित्याह ॥

    अन्वयः

    हे मनुष्या ! यमिन्द्रं यज्ञ उत सोमो वर्धाद् ब्रह्म वर्धादुक्था मन्म गिरश्च वर्धाहैनमुषसोऽक्तोर्यामन् मासाः शरदो द्यावश्चेन्द्रं वर्धान् तेऽस्मान् वर्धयन्तु ॥४॥

    पदार्थः

    (वर्धात्) वर्धयेत् (यम्) (यज्ञः) सत्सङ्गत्यादिस्वरूपः (उत) अपि (सोमः) प्रेरको विद्वान् (इन्द्रम्) विद्युदादिविद्याम् (वर्धात्) (ब्रह्म) धनम् (गिरः) वाचः (उक्था) प्रशंसनीयानि वचांसि (च) (मन्म) विज्ञानादि (वर्ध) (अह) (एनम्) (उषसः) प्रभातात् (यामन्) यान्ति यस्मिंस्तस्मिन् मार्गे (अक्तोः) रात्रेः (वर्धान्) वर्धयेरन् (मासाः) (शरदः) ऋतवः (द्यावः) प्रकाशयुक्ता दिवसाः प्रकाशा वा (इन्द्रम्) परमैश्वर्यम् ॥४॥

    भावार्थः

    हे मनुष्या ! यथा विद्वत्सत्कारसङ्गतिमयो व्यवहारो विद्युदादिविद्यां परमैश्वर्य्यं पुष्कलमायुश्च वर्धयति तथैव यूयं सर्वाञ्छुभान् व्यवहारानहर्निशं वर्धयत ॥४॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    अब मनुष्य क्या बढ़ावें, इस विषय को कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे मनुष्यो ! (यम्) जिस (इन्द्रम्) बिजुली आदि की विद्या को (यज्ञः) श्रेष्ठों की सङ्गति आदि स्वरूप और (उत) भी (सोमः) प्रेरणा करनेवाला विद्वान् (वर्धात्) बढ़ावे और (ब्रह्म) धन को (वर्धात्) बढ़ावे तथा (उक्था) प्रशंसा करने योग्य वचनों और (मन्म) विज्ञानों और (गिरः) वाणियों को (च) भी (वर्ध) बढ़ावे और (अह) इसके अनन्तर (एनम्) इस (उषसः) प्रभात से और (अक्तोः) रात्रि से (यामन्) चलते हैं जिसमें उस मार्ग में (मासाः) महीने (शरदः) ऋतुएँ और (द्यावः) प्रकाशयुक्त दिन वा प्रकाश (इन्द्रम्) अत्यन्त ऐश्वर्य को (वर्धान्) बढ़ावें, वे हम लोगों को बढ़ावें ॥४॥

    भावार्थ

    हे मनुष्यो ! जैसे विद्वानों का सत्कार और सङ्गतिस्वरूप व्यवहार, बिजुली आदि की विद्या को तथा अत्यन्त ऐश्वर्य्य और पूर्ण आयु को बढ़ाता है, वैसे ही आप लोग सम्पूर्ण श्रेष्ठ व्यवहारों को दिनरात्रि बढ़ाइये ॥४॥

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    विषय

    समृद्धि की वृद्धि का उपदेश ।

    भावार्थ

    ( यं ) जिस ( इन्द्रं ) ऐश्वर्यवान् राजा विद्वान् को ( यज्ञ:) परस्पर का सत्संग, आदर, मान, प्रतिष्ठा, और करादि देना, ( वर्धात् ) बढ़ाता है, (यं सोमः वर्धात् ) जिसको सोम्य विद्वान् शिष्य, पुत्र, ऐश्वर्य, ओषधि अन्नादि, बढ़ाते हैं, और जिसको ( ब्रह्म ) बड़ा धन, बड़ा ज्ञान, बड़ा राष्ट्र तथा ( गिरः ) वाणियां और ( मन्म उक्थ च ) मनन करने योग्य उत्तम २ वचन भी ( वर्धात् ) बढ़ाते हैं । ( अक्तो: यामन् ) रात्रि के बीतने या सर्वप्रकाशक सूर्य के आगमन पर ( एनम् उषसः ) उस सूर्य को उषाओं के समान ( उषसः ) शत्रु को दग्ध करने वा सन्तप्त, पीड़ित करने वाली सेनाएं (अक्तोः यामन्) तेजस्वी राजा के प्रयाण के समय में ‘अक्तु’ अर्थात् स्नेहयुक्त राष्ट्र के शासन काल में (वर्ध अह) निश्चय से बढ़ाता है । और ( मासाः ) मास ( शरदः ) वर्ष और ( द्यावः ) दिन में वर्ष के अवयव ये ( इन्द्रं वर्धान्) उसके ऐश्वर्य को बढ़ावें । गुरु और शिष्य के पक्ष में—सोम शिष्य है, ‘यज्ञ’ अर्थात् ज्ञान का दान, वेदवाणियां, मननयोग्य वचन को बढ़ाते हैं । और प्रातः सायं, दिन रात, मास, ऋतु, वर्ष आदि विद्यार्थी को बालकवत् बढ़ावें ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    भरद्वाजो बार्हस्पत्य ऋषिः ॥ इन्द्रो देवता ॥ छन्दः - १, २, ३, ५, निचृत् त्रिष्टुप् । ४ त्रिष्टुप् ।। पञ्चर्चं सूक्तम् ।।

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    विषय

    प्रभु की प्राप्ति के साधन

    पदार्थ

    [१] (यम्) = जिस प्रभु को (यज्ञः वर्धात्) = यज्ञ बढ़ाता है, अर्थात् जब एक मनुष्य यज्ञशील बनता है तो उसके अन्दर प्रभु के प्रकाश की वृद्धि होती है। (उत) = और (इन्द्रम्) = उस परमैश्वर्यशाली प्रभु को (सोमः) = सोम (वर्धात्) = बढ़ाता है। सोमरक्षण से हम बुद्धि की तीव्रता के द्वारा प्रभु के समीप पहुँचते हैं। उस प्रभु को ब्रह्म [ब्रह्म वेदस्तपः त्वम्] तप बढ़ाता है, (गिरः) = ज्ञान की वाणियाँ बढ़ाती हैं, (च) = और (मन्म उक्था) = मननीय स्तोत्र बढ़ाते हैं। तप, ज्ञान व स्तवन के द्वारा हम प्रभु के उपासक बनते हैं। [२] (अक्तोः यामन्) = रात्रि के जाने पर (उषसः) = उषाएँ (अह) = निश्चय से (एनं वर्ध) = इस प्रभु को बढ़ाती हैं। (मासा:) = महीने (शरदः) = संवत्सर व (द्यावः) = दिन उस (इन्द्रम्) = परमैश्वर्यशाली प्रभु को (वर्धान्) = बढ़ाते हैं। इन सब कालचक्रों में प्रभु की महिमा दिखती है।

    भावार्थ

    भावार्थ- प्रभु की उपासना के लिये 'यज्ञ, सोमरक्षण, तप, ज्ञान की वाणियाँ व मननीय स्तोत्र' साधन बनते हैं। उषाएँ मास संवत्सर व दिन सभी प्रभु की महिमा का वर्धन करते हैं।

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    हे माणसांनो ! जसा विद्वानांचा सत्कार व संगतिरूपी व्यवहार, विद्युत इत्यादींची विद्या व अत्यंत ऐश्वर्यपूर्ण आयुष्य वाढविते तसेच तुम्ही संपूर्ण व्यवहार रात्रंदिवस वाढवा. ॥ ४ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Let yajna, corporate programmes of research and development, advance Indra, power and application of the electric energy of nature. Let soma, positive creations and the scholar dedicated to peace and universal happiness extend the possibilities of power. Let the divine words of the Veda and the achievement of food and energy of universal value exalt Indra, lord of divine energy. And let the dawns, days and nights, hours, months, seasons, earth and heaven, all glorify Indra, lord of the universe. Let our thought and chants of holy word glorify him.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    What should men increase-is told.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    I glorify the Lord of the world, whose glory is multiplied or manifested by the Yajna (consisting of the association with good) and enlightened men urging others to do good deeds. Whose glory is sung by the Vedas, admirable words of the wise, wealth and true knowledge. The dawn, nights, months, autumn and other seasons, days or eights all manifest the glory of that God.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

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    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    O men! as the dealing consisting of honor to the enlightened persons and association with them on the path of righteousness increases the knowledge of electricity and other objects, great wealth and span of life, in the same manner, you should increase all good dealings day and night.

    Foot Notes

    (यज्ञः) सत्सङ्गत्यादिस्वरूप: । (यज्ञः ) यज देवपूजा सङ्गतिकरण दानेषु (भ्वा० ) अत्र संगतिकरणार्थ:। = Yajna consisting of the association with good and enlightened persons. (सोम) प्र ेरको-विद्वान् । षु-प्रसवेश्वयो: (अ०) अत्र प्रसवार्थः प्रसवः । = An enlightened man who urges others to do good deeds. (अक्तोः) रात्रेः । अत्तुरिति रात्रिनाम (NG 1,7)।= Of the night. (यामन्) यान्ति यस्मिंस्तस्मिन्मार्गे | = On the path of righteousness.

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