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ऋग्वेद मण्डल - 6 के सूक्त 42 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 42/ मन्त्र 2
    ऋषिः - भरद्वाजो बार्हस्पत्यः देवता - इन्द्र: छन्दः - निचृदनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः

    एमे॑नं प्र॒त्येत॑न॒ सोमे॑भिः सोम॒पात॑मम्। अम॑त्रेभिर्ऋजी॒षिण॒मिन्द्रं॑ सु॒तेभि॒रिन्दु॑भिः ॥२॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ । ई॒म् । ए॒न॒म् । प्र॒ति॒ऽएत॑न । सोमे॑भिः । सो॒म॒ऽपात॑नम् । अम॑त्रेभिः । ऋजी॒षिण॑म् । इन्द्र॑म् । सु॒तेभिः॑ । इन्दु॑ऽभिः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    एमेनं प्रत्येतन सोमेभिः सोमपातमम्। अमत्रेभिर्ऋजीषिणमिन्द्रं सुतेभिरिन्दुभिः ॥२॥

    स्वर रहित पद पाठ

    आ। ईम्। एनम्। प्रतिऽएतन। सोमेभिः। सोमऽपातनम्। अमत्रेभिः। ऋजीषिणम्। इन्द्रम्। सुतेभिः। इन्दुऽभिः ॥२॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 42; मन्त्र » 2
    अष्टक » 4; अध्याय » 7; वर्ग » 14; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनर्मनुष्याः किं कुर्युरित्याह ॥

    अन्वयः

    हे मनुष्या ! यूयं सुतेभिः सोमेभिरिन्दुभिरमत्रेभिः सोमपातममृजीषिणमेनमिन्द्रमीमा प्रत्येतन ॥२॥

    पदार्थः

    (आ) समन्तात् (ईम्) सर्वतः (एनम्) राजानम् (प्रत्येतन) प्रतीतिं कुरुत (सोमेभिः) ऐश्वर्यैरोषधिगणैर्वा (सोमपातमम्) अतिशयेन सोमपातारम् (अमत्रेभिः) उत्तमैः पात्रैः (ऋजीषिणम्) ऋजूनां सरलानां धार्मिकानां जनानामीषितुं शीलम् (इन्द्रम्) ऐश्वर्यप्रदम् (सुतेभिः) निष्पादितैः (इन्दुभिः) आनन्दकरैरुदकैः ॥२॥

    भावार्थः

    हे राजप्रजाजना ! यूयमाप्तेषु राजादिविद्वत्सु च विश्वासं कुरुत ते च युष्मासु विश्वसेयुरेवमुभयत्राऽऽनन्दो वर्धेत ॥२॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर मनुष्य क्या करें, इस विषय को कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे मनुष्यो ! आप लोग (सुतेभिः) उत्पन्न किये गये (सोमेभिः) ऐश्वर्य्यों वा ओषधियों के समूहों से (इन्दुभिः) आनन्दकारक जलों से तथा (अमत्रेभिः) उत्तम पात्रों से (सोमपातमम्) अतिशय सोमरस के पीनेवाले (ऋजीषिणम्) सरल धार्मिक जनों की इच्छा करने के स्वभाववाले (एनम्) इस (इन्द्रम्) ऐश्वर्य्य के देनेवाले राजा की (ईम्) सब ओर से (प्रत्येतन) प्रतीति करिये ॥२॥

    भावार्थ

    हे राजा और प्रजाजनो ! आप लोग यथार्थवक्ता तथा राजा आदि विद्वानों में विश्वास करिये और वे आप लोगों में विश्वास करें, इस प्रकार दोनों और आनन्द बढ़े ॥२॥

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    विषय

    प्रजा जन के कर्त्तव्य। राजा प्रजा के परस्पर के सम्बन्ध।

    भावार्थ

    हे विद्वान् पुरुषो ! ( एनं ) इस ( ऋजीषिणम् ) ऋजु, सरल, धर्म मार्ग पर प्रजाजन को चलाने में समर्थ, तथा ऋजीष, अर्थात् बल वाले ( इन्द्रं ) ऐश्वर्यवान्, शत्रुहन्ता ( सोमपातमं ) उत्पन्न पुत्रवत् प्रजा तथा ऐश्वर्य के उत्तम पालक पुरुष को, ( सुतेभिः ) नाना पदों पर अभिषिक्त ( इन्दुभिः ) ऐश्वर्यवान्, दयार्द्र हृदय (अमत्रेभिः) सहायकारी ( सोमेभिः ) सौम्य गुण युक्त पुरुषों सहित ( प्रति एतन ) प्राप्त होवो !

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    भरद्वाजो बार्हस्पत्य ऋषिः ।। इन्द्रो देवता ॥ छन्दः – १ स्वराडुष्णिक् । २ निचृदनुष्टुप् । ३ अनुष्टुप् । ४ भुरिगनुष्टुप् ।। चतुऋर्चं सूक्तम् ॥ ।

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    विषय

    सोमरक्षण व प्रभु प्राप्ति

    पदार्थ

    [१] (सोमपातमम्) = हमारे सोमों का (अतिशयेन) = रक्षण करनेवाले (एनम्) = इस प्रभु को (ईन्) = निश्चय से (सोमेभिः) = इन सोमों के द्वारा (आ प्रत्येतन) = आभिमुख्येन जानेवाले बनो। सोमरक्षण से ही, बुद्धि की तीव्रता होकर, प्रभु का दर्शन होता है। प्रभु की उपासना ही सोमरक्षण का साधन बनती है। [२] उस प्रभु की ओर चलो जो (अमत्रेभिः) = बलों के साथ [अमत्र-strength] (ऋजीषिणम्) = ऋजुता की प्रेरणा देनेवाले हैं। इस (इन्द्रम्) = परमैश्वर्यशाली प्रभु को (सुतेभिः) = उत्पन्न (इन्दुभिः) = सोमों के द्वारा प्राप्त होनेवाले होवो । सुरक्षित सोम ही प्रभु प्राप्ति का साधन बनता है।

    भावार्थ

    भावार्थ- प्रभु की उपासना सोमरक्षण का साधन बनती है। सुरक्षित सोम प्रभु प्राप्ति कराने में सहायक होता है।

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    हे राजा व प्रजाजनांनो ! तुम्ही विद्वान व राजा इत्यादी लोकांवर विश्वास करा व त्यांनीही तुमच्यावर विश्वास ठेवावा. या प्रकारे दोघांनीही आनंदाने राहावे. ॥ २ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    In consequence and return, O scholars and citizens of the land, be grateful to this Indra, brilliant ruler, lover of the peace and pleasure of the soma of knowledge and enlightenment and promoter of scholars and men of truth and naturalness. Do all possible homage to him with ample measures of work and knowledge distilled like soma in the essence from your brilliant work and noble conduct.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    What should men do is further told.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O men ! trust this king, who is giver of wealth, who desires to have upright and righteous persons, who is Chief among the drinkers of Soma (the juice of invigorating herb) and go to him with the juice of the herbs or wealth (in the form of revenues etc.) with delighting water, and good vessels (in which those waters or juices are stored).

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    O officers and subjects of the State! you should trust truthful and enlightened king, and his ministers and they should trust you, so that bliss and joy may grow on both sides.

    Foot Notes

    (प्रत्येतन) प्रतीति कुरुत । प्रति एतन इण गतौ प्रतीतिः विश्वासः । = Trust. (इन्दुभि:), आनन्दकरैरुदकैः । इन्दुरिति उदकनाम (NG 1 : 12) । = With delighting water (ऋजीषिणम्) ऋजून सरलानां धार्मिका जनानामषितु शीलम् (ऋजीषिणम् ) ईष- गतिहिंसा दर्शनेषु (भ्वा.) गतेरिस्त्रस्वर्थेषु प्राप्त्यर्थम् आदाय व्याख्यात, शक्यते । = Approaching the upright and righteous persons.

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