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ऋग्वेद मण्डल - 6 के सूक्त 57 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 57/ मन्त्र 4
    ऋषिः - भरद्वाजो बार्हस्पत्यः देवता - इन्द्रापूषणौ छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    यदिन्द्रो॒ अन॑य॒द्रितो॑ म॒हीर॒पो वृष॑न्तमः। तत्र॑ पू॒षाभ॑व॒त्सचा॑ ॥४॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यत् । इन्द्रः॑ । अन॑यत् । रितः॑ । म॒हीः । अ॒पः । वृष॑न्ऽतमः । तत्र॑ । पू॒षा । अ॒भ॒व॒त् । सचा॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यदिन्द्रो अनयद्रितो महीरपो वृषन्तमः। तत्र पूषाभवत्सचा ॥४॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यत्। इन्द्रः। अनयत्। रितः। महीः। अपः। वृषन्ऽतमः। तत्र। पूषा। अभवत्। सचा ॥४॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 57; मन्त्र » 4
    अष्टक » 4; अध्याय » 8; वर्ग » 23; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनर्मनुष्यैः किं वेदितव्यमित्याह ॥

    अन्वयः

    हे मनुष्या ! यद्यो वृषन्तम इन्द्रोरितो महीरपोऽनयत्तत्र पूषा सचाऽभवत्तं यूयं विजानीत ॥४॥

    पदार्थः

    (यत्) यः (इन्द्रः) विद्युत् (अनयत्) नयति (रितः) गन्त्रीः (महीः) भूमीः (अपः) जलानि (वृषन्तमः) अतिशयेन वृष्टिकर्त्ता (तत्र) (पूषा) भूमिः (अभवत्) भवति (सचा) समवेता ॥४॥

    भावार्थः

    हे मनुष्या ! या विद्युत् पृथिव्युदकस्था सर्वं यथासमयं यथास्थानं नयति यया संयुक्ता पृथिवी वर्त्तते तां विज्ञाय कलायन्त्रैरुद्घाट्य सर्वाणि कार्याणि साध्नुवन्तु ॥४॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर मनुष्यों को क्या जानना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे मनुष्यो ! (यत्) जो (वृषन्तमः) अतीव वर्षा करनेवाला (इन्द्रः) बिजुली रूप अग्नि (रितः) अपनी कक्षाओं में घूमनेवाली (महीः) भूमि और (अपः) जलों को (अनयत्) पहुँचाता है (तत्र) वहाँ (पूषा) भूमि (सचा) संयुक्त (अभवत्) होती है, उसको तुम लोग जानो ॥४॥

    भावार्थ

    हे मनुष्यो ! जो बिजुली पृथिवी और जल के बीच स्थिर हुई सबको समय समय पर प्रतिस्थान पहुँचाती है, उसके साथ पृथिवी वर्त्तमान है, उसको जान कलायन्त्रों से उसे उठा सब कामों को सिद्ध करो ॥४॥

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    विषय

    इन्द्र राजवर्ग, प्रजा पूषा ।

    भावार्थ

    जिस प्रकार ( वृषन्तमः ) खूब वर्षा करने वाला सूर्य ( महीः अपः ) बहुत जलों को सर्वत्र फैला देता है ( पूषा सचा अभवत् ) पोषक वायु सहायक होता है। उसी प्रकार ( यत् ) जब ( इन्द्रः ) ऐश्वर्यवान् वा शत्रुहन्ता राजवर्ग, ( वृषन्तमः ) खूब बलवान्, भूमिसेचक । होकर ( रितः ) सब ओर जाने वाली गाड़ियों, वा (मही:) बड़ी अन्न सम्पद् देने वाली भूमि भूमियों को ( अनयत् ) प्राप्त करावे । ( तत्र ) वहां ( सचा) सहायक रूप से ( पूषा अभवत् ) पोषक कृषक वर्ग होता है ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    भरद्वाजो बार्हस्पत्य ऋषिः ॥ इन्द्र-पूषणौ देवते ॥ छन्दः – १, ६ विराड् गायत्री । २, ३ निचृद्गायत्री । ४, ५ गायत्री ॥ पञ्चर्चं सूक्तम् ॥

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    विषय

    प्राण-साधना

    पदार्थ

    [१] इन्द्रियों को वश में करनेवाला साधक 'इन्द्र' है । प्राणों की साधना करनेवाला 'पूषा' है। (यत्) = जब (इन्द्रः) = यह जितेन्द्रिय पुरुष (रितः) = गतिमय, गति के स्वभाववाले (महीः) = अत्यन्त महत्त्वपूर्ण (अपः) = इन रेतःकणों को अनयत् शरीर के अन्दर प्राप्त कराता है, तो वह वृषन्तमः = अतिशयेन शक्तिशाली बनता है । [२] (तत्र) = वहाँ इन रेतः कणों के शरीर में ही प्राप्त कराने के कार्य मे(पूषा) = प्राणसाधना करनेवाला यह देव (सचा) = इन्द्र का साथी (अभवत्) = होता है। प्राणसाधना इन रेतः कणों की ऊर्ध्वगति में अतिशयेन सहायक होती है।

    भावार्थ

    भावार्थ- हम जितेन्द्रियता व प्राणसाधना द्वारा रेत: कणों का रक्षण करें। यह रक्षण हमें अतिशयेन शक्तिशाली बनाये ।

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    हे माणसांनो ! जी विद्युत पृथ्वी व जलामध्ये स्थिर असून सर्वांना वेळोवेळी प्रत्येक स्थानी पोचविते. तिच्याबरोबर पृथ्वी असतेच हे जाणून कलायंत्रातून तिचा उपयोग करून सर्व काम सिद्ध करा. ॥ ४ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    When most generous Indra moves and brings about heavy showers of rain, then Pusha too is the corporate power of natural energy. (Thus making and breaking, consumption and creation are simultaneous processes of natural metabolism in life.)

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    What should men know is further told.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O men ! electricity, which causes rain provides water to the moving earth also. Water and earth are connected with it. So you should know.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    O men ! electricity, which is in the earth and waters, conveys all objects in due course and the earth is connected with it. You should know the nature and application of electricity, use it in various machines and accomplish all works.

    Foot Notes

    (वृषन्तमः) अतिशयेन वृष्टिकर्त्ता । वृषु सेचने (भ्वा.) । = Which causes rain. (रितः) गम्बी: । रि-गतौ (दु.)। = Moving, circling. (पुषा) भूमि:। = Earth.

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