साइडबार
ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 13/ मन्त्र 2
त्वम॑ग्ने शो॒चिषा॒ शोशु॑चान॒ आ रोद॑सी अपृणा॒ जाय॑मानः। त्वं दे॒वाँ अ॒भिश॑स्तेरमुञ्चो॒ वैश्वा॑नर जातवेदो महि॒त्वा ॥२॥
स्वर सहित पद पाठत्वम् । अ॒ग्ने॒ । शो॒चिषा॑ । शोशु॑चानः । आ । रोद॑सी॒ इति॑ । अ॒पृ॒णाः॒ । जाय॑मानः । त्वम् । दे॒वान् । अ॒भिऽश॑स्तेः । अ॒मु॒ञ्चः॒ । वैश्वा॑नर । जा॒त॒ऽवे॒दः॒ । म॒हि॒ऽत्वा ॥
स्वर रहित मन्त्र
त्वमग्ने शोचिषा शोशुचान आ रोदसी अपृणा जायमानः। त्वं देवाँ अभिशस्तेरमुञ्चो वैश्वानर जातवेदो महित्वा ॥२॥
स्वर रहित पद पाठत्वम्। अग्ने। शोचिषा। शोशुचानः। आ। रोदसी इति। अपृणाः। जायमानः। त्वम्। देवान्। अभिऽशस्तेः। अमुञ्चः। वैश्वानर। जातऽवेदः। महिऽत्वा ॥२॥
ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 13; मन्त्र » 2
अष्टक » 5; अध्याय » 2; वर्ग » 16; मन्त्र » 2
Acknowledgment
अष्टक » 5; अध्याय » 2; वर्ग » 16; मन्त्र » 2
Acknowledgment
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्ते सन्न्यासिनः किंवत् किं कुर्वन्तीत्याह ॥
अन्वयः
हे अग्ने ! त्वं यथाग्निः शोशुचानो जायमान शोचिषा रोदसी आपृणाति तथाऽस्माँस्त्वमापृणाः। हे वैश्वानर जातवेदस्त्वं महित्वाऽस्मान् देवानभिशस्तेरमुञ्चः ॥२॥
पदार्थः
(त्वम्) (अग्ने) अग्निरिव वर्त्तमान सन्न्यासिन् (शोचिषा) प्रकाशेन (शोशुचानः) शोधयन् (आ) (रोदसी) द्यावापृथिव्यौ (अपृणाः) पूरय (जायमानः) उत्पद्यमानः (त्वम्) (देवान्) विदुषः (अभिशस्तेः) आभिमुख्येन स्वप्रशंसां कुर्वतो दम्भिनः (अमुञ्च) मोचय (वैश्वानर) विश्वेषु नरेषु राजमान (जातवेदः) जातविद्य (महित्वा) महिम्ना ॥२॥
भावार्थः
अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे मनुष्या ! यथाग्निः स्वयं शुद्धः सर्वांच्छोधयति तथैव सन्न्यासिनः स्वयं पवित्राचरणाः सन्तः सर्वान् पवित्रयन्ति ॥२॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर वे सन्न्यासी किसके तुल्य क्या करते हैं, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
पदार्थ
हे (अग्ने) अग्नि के तुल्य वर्त्तमान तेजस्विन् सन्न्यासिन् ! आप जैसे अग्नि (शोशुचानः) शुद्ध करता और (जायमानः) उत्पन्न होता हुआ (शोचिषा) प्रकाश से (रोदसी) सूर्य भूमिको अच्छे प्रकार पूरित करता, वैसे हम लोगों को (त्वम्) आप (आ, अपृणाः) अच्छे प्रकार पूर्ण कीजिये। हे (वैश्वानर) सब मनुष्यों के नायक (जातवेदः) विद्या को प्राप्त विद्वन् ! (त्वम्) आप (महित्वा) अपनी महिमा से (देवान्) हम विद्वानों को (अभिशस्तेः) सम्मुख प्रशंसा करनेवाले दम्भी से (अमुञ्चः) छुड़ाइये ॥२॥
भावार्थ
इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे मनुष्यो ! जैसे अग्नि आप शुद्ध हुआ सब को शुद्ध करता है, वैसे संन्यासी लोग स्वयं पवित्र हुए सब को पवित्र करते हैं ॥२॥
विषय
उससे मुक्ति की याचना ।
भावार्थ
हे (अग्ने ) अग्नि के समान तेजस्विन् ! प्रकाशस्वरूप ! ज्ञानवन् ! जिस प्रकार अग्नि या सूर्य ( जायमानः ) प्रकट होता हुआ ( शोचिषा शोशुचानः रोदसी अपृणात् ) स्वयं प्रदीप्त होकर आकाश, पृथिवी दोनों को तेज से पूर्ण कर देता है उसी प्रकार तू भी (जायमानः) प्रकट होकर ( शोशुचान: ) शुद्ध पवित्र होकर ( शोचिषा ) अपने तेज से ( रोदसी ) स्त्री पुरुषों को ( अपृणा: ) पूर्ण कर । ( त्वं ) तू ( देवान्) उत्तम मनुष्यों को हे ( जातवेदः ) विद्यावन् ! ( महित्वा ) अपने महान् सामर्थ्य से ( अभि-शस्तेः ) अभिमुख प्रशंसा करने वाले दम्भी और सन्मुख शस्त्रादि के प्रयोक्ता घातक से, मिथ्याभियोगी पुरुष से ( अमुञ्चः ) छुड़ा ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वसिष्ठ ऋषिः॥ वैश्वानरो देवता ॥ छन्दः – १, २ स्वराट् पंक्ति: । ३ भुरिक् पंक्तिः ॥
विषय
अभिशस्ति-मोचन
पदार्थ
[१] हे (अग्ने) = अग्रेणी प्रभो ! (त्वम्) = आप (शोचिषा) = दीप्ति से (शोशुचान:) = अत्यन्त ही दीप्त होते हुए, (जायमानः) = प्रादुर्भूत होते हुए (रोदसी) = द्यावापृथिवी को (आ अपृणा:) = पूरित करते हैं, सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को आप दीप्त करते हैं। [२] हे (जातवेदः) - सर्वज्ञ (वैश्वानर) = विश्व-नर-हित प्रभो ! (त्वम्) = आप (महित्वा) = अपनी महिमा से (देवान्) = देववृत्ति के पुरुषों को (अभिशस्तेः) = हिंसक शत्रु से (अमुञ्चः) = मुक्त करते हैं। आपकी कृपा से ही देव काम-क्रोध-लोभ आदि हिंसक शत्रुओं का शिकार नहीं होते।
भावार्थ
भावार्थ-प्रभु सारे संसार को दीप्ति दे रहे हैं। प्रभु ही देवों को काम-क्रोध आदि हिंसक शत्रुओं से बचाते हैं।
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे माणसांनो ! जसा अग्नी स्वतः शुद्ध असून सर्वांना शुद्ध करतो तसे संन्यासी स्वतः पवित्र असून इतरांना पवित्र करतात. ॥ २ ॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Agni, bright purifier of the world with light and inspiration, rising in action you fill the heaven and earth with light and purity. O spirit all pervasive and all knowing, leading light of humanity, with your might and majesty, protect the noble people from pride, calumny and imprecation.
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
N/A
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
Shri Virendra Agarwal
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal