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ऋग्वेद मण्डल - 7 के सूक्त 13 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 13/ मन्त्र 3
    ऋषिः - वसिष्ठः देवता - वैश्वानरः छन्दः - भुरिक्पङ्क्तिः स्वरः - पञ्चमः

    जा॒तो यद॑ग्ने॒ भुव॑ना॒ व्यख्यः॑ प॒शून्न गो॒पा इर्यः॒ परि॑ज्मा। वैश्वा॑नर॒ ब्रह्म॑णे विन्द गा॒तुं यू॒यं पा॑त स्व॒स्तिभिः॒ सदा॑ नः ॥३॥

    स्वर सहित पद पाठ

    जा॒तः । यत् । अ॒ग्ने॒ । भुव॑ना । वि । अख्यः॑ । प॒शून् । न । गो॒पाः । इर्यः॑ । परि॑ऽज्मा । वैश्वा॑नर । ब्रह्म॑णे । वि॒न्द॒ । गा॒तुम् । यू॒यम् । पा॒त॒ । स्व॒स्तिऽभिः॑ । सदा॑ । नः॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    जातो यदग्ने भुवना व्यख्यः पशून्न गोपा इर्यः परिज्मा। वैश्वानर ब्रह्मणे विन्द गातुं यूयं पात स्वस्तिभिः सदा नः ॥३॥

    स्वर रहित पद पाठ

    जातः। यत्। अग्ने। भुवना। वि। अख्यः। पशून्। न। गोपाः। इर्यः। परिऽज्मा। वैश्वानर। ब्रह्मणे। विन्द। गातुम्। यूयम्। पात। स्वस्तिऽभिः। सदा। नः ॥३॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 13; मन्त्र » 3
    अष्टक » 5; अध्याय » 2; वर्ग » 16; मन्त्र » 3
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    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्ते यतयः कीदृशा भवेयुरित्याह ॥

    अन्वयः

    हे वैश्वानराग्ने यते ! यथा जातोऽग्निर्भुवना व्यख्यस्तथा यद्यस्त्वं विद्यासु प्रसिद्धजनानामात्मनः प्रकाशय पशून् गोपा नेर्यः परिज्मा भव स त्वं ब्रह्मणे गातुं विन्द यूयं संन्यासिनः सर्वे स्वस्तिभिः सत्योपदेशनैर्नः सदा पात ॥३॥

    पदार्थः

    (जातः) उत्पन्नः (यत्) यः (अग्ने) अग्निरिव विद्वन् (भुवना) लोकलोकान्तरान् (वि) विशेषेण (अख्यः) प्रकाशयति (पशून्) गवादीन् (न) इव (गोपाः) गोपालाः पशुरक्षकाः (इर्यः) सत्यमार्गे प्रेरकः (परिज्मा) परितः सर्वतोऽजति गच्छति (वैश्वानर) विश्वेषु नरेषु प्रकाशक (ब्रह्मणे) परमेश्वराय वेदाय वाऽथवा चतुर्वेदविदे (विन्द) प्राप्नुहि (गातुम्) प्रशंसितां भूमिम् (यूयम्) (पात) (स्वस्तिभिः) स्वास्थ्यकारिणीभिः क्रियाभिः (सदा) सर्वदा (नः) अस्मान् ॥३॥

    भावार्थः

    अत्रोपमावाचकलुप्तोपमालङ्कारौ। ये सूर्यवत्प्रख्यातपरोपकारविद्योपदेशा वत्सान् गाव इव विद्यादानेन सर्वेषां रक्षकाः सर्वदा भ्रमन्तो वेदेश्वरविज्ञानाय राज्यरक्षणाय नृप इव न्यायशीला भूत्वा सर्वानज्ञान् बोधयन्ति ते सदैव सर्वैः सत्कर्त्तव्या भवन्तीति ॥३॥ अत्राग्निदृष्टान्तेन संन्यासिगुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥ इति त्रयोदशं सूक्तं षोडशो वर्गश्च समाप्तः ॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर वे संन्यासी कैसे हों, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे (वैश्वानर) सब मनुष्यों में प्रकाश करनेवाले (अग्ने) अग्नि के तुल्य तेजस्वि विद्वन् संन्यासिन् ! जैसे (जातः) उत्पन्न हुआ अग्नि (भुवना) लोक-लोकान्तरों को (वि, अख्यः) विशेष कर प्रकाशित करता है, वैसे (यत्) जो आप विद्याओं में प्रसिद्ध मनुष्यों के आत्माओं को प्रकाशित कीजिये तथा (पशून्) गौ आदि को (गोपाः) पशुरक्षकों के (न) तुल्य (इर्यः) सत्य मार्ग में प्रेरक और (परिज्मा) सब ओर से प्राप्त होनेवाले हूजिये वह आप (ब्रह्मणे) परमेश्वर, वेद वा चार वेदों के ज्ञाता के लिये (गातुम्) प्रशस्त भूमि को (विन्द) प्राप्त हूजिये (यूयम्) तुम संन्यासी लोग सब (स्वस्तिभिः) स्वस्थता के हेतु क्रियाओं और सत्य उपदेशों से (नः) हमारी (सदा) (पात) रक्षा करो ॥३॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में उपमावाचकलुप्तोपमालङ्कार हैं। जो सूर्य के तुल्य, परोपकार, विद्या और उपदेश जिनके प्रसिद्ध हैं, वे जैसे गौएँ बछड़ों की रक्षा करती, वैसे विद्यादान से सब की रक्षा करनेवाले सर्वदा घूमते हुए वेद, ईश्वर को जानने के लिये राज्यरक्षणार्थ राजा के तुल्य न्यायशील होकर सब सुखों को बोध कराते वे सदा सब को सत्कार करने योग्य होते हैं ॥३॥ इस सूक्त में अग्नि के दृष्टान्त से संन्यासियों के गुणों का वर्णन होने से इस सूक्त के अर्थ की इससे पूर्व सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥ यह तेरहवाँ सूक्त और सोलहवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥

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    विषय

    ज्ञान की याचना ।

    भावार्थ

    हे ( अग्ने ) अग्रणी ! अग्निवत् तेजस्विन् ! संन्यासिन् ! जिस प्रकार अग्नि ( जातः भुवना वि-अख्यः ) उत्पन्न होकर नाना उत्पन्न पदार्थों को प्रकाशित करता है, उसी प्रकार तू भी ( जातः ) विद्यादि गुणों से प्रकाशित होकर ( भुवना ) नाना ज्ञानों को ( वि-अख्यः ) विशेष रूप से उपदेश कर । तू ( परिज्मा ) सब ओर भ्रमण करने वाला होकर ( गोपाः पशून् न ) गौओं का पालक जिस प्रकार पशुओं को दण्ड के बल से सीधे रास्ते चलाता है उसी प्रकार पशु सदृश अज्ञानी जनों का (गोपाः ) रक्षक होकर ( इर्यः ) उनको सन्मार्ग में चलाने वाला है । ( वैश्वानरः ) समस्त मनुष्यों के हितैषिन् ! सब के बीच सत्य ज्ञानका, प्रकाश करने हारे ! तू ( ब्रह्मणे ) प्रभु परमेश्वर को प्राप्त करने के लिये ( गातुम् ) सन्मार्ग ( विन्द ) प्राप्त कर, उसी का उपदेश कर । हे विद्वान् लोगो ! ( यूयं ) आप लोग भी (स्वस्तिभिः) उत्तम, उपायों से ( नः पात ) हमारी रक्षा करो । राज्य में राजा और विश्व में परमेश्वर भी त्याग वृत्ति से सब के रक्षक और सत्पथ में चलाने से सबके द्रष्टा, पालक, हैं । राजा (ब्रह्मणे ) धनैश्वर्य की प्राप्ति के मार्ग को सदा जाने, जनावे । राजा के चमकते पीले केसरिये वस्त्र और संन्यासी के गेरुए वस्त्र अग्नि के अनुकरण में होते हैं । इति षोडशो वर्गः ॥

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वसिष्ठ ऋषिः॥ वैश्वानरो देवता ॥ छन्दः – १, २ स्वराट् पंक्ति: । ३ भुरिक् पंक्तिः ॥

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    विषय

    उस महान् गोप का पशुपालन

    पदार्थ

    [१] हे (अग्ने) = अग्रेणी प्रभो! आप (यद्) = जब (जात:) = हृदयदेश में प्रादुर्भूत होते हैं, तो (भुवना) = सब प्राणियों का (व्यख्यः) = विशेषरूप से ध्यान करते हैं, (न) = जैसे कि (गोपाः) = एक ग्वाला (पशून्) = पशुओं का ध्यान करता है। (इर्यः) = आप ही प्रेरित करनेवाले हैं, (परिज्मा) = परितः (गन्ता) = सब ओर गतिवाले हैं। [२] हे वैश्वानर सब मनुष्यों का हित करनेवाले प्रभो ! (ब्रह्मणे) = ज्ञान प्राप्ति के लिये (गातुं विन्द) = हमें मार्ग प्राप्त कराइये। आप से उपदिष्ट मार्ग पर चलते हुए हम निरन्तर अपने ज्ञान में वृद्धि के करनेवाले हों। (यूयम्) = आप (स्वस्तिभिः) = कल्याण के मार्गों के द्वारा (नः) = हमें (सदा) = सदा (पात) = रक्षित करिये।

    भावार्थ

    भावार्थ - प्रभु हमारा इस प्रकार रक्षण करते हैं जैसे कि एक ग्वाला अपने पशुओं का प्रभु हमें ज्ञान प्राप्ति के मार्ग का उपदेश करें। उस मार्ग से चलते हुए हम कल्याण को प्राप्त करें। अगले सूक्त में वसिष्ठ 'अग्नि' नाम से ही प्रभु का स्तवन करते हैं -

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात उपमा व वाचकलुप्तोपमालंकार आहेत. जे (संन्यासी) सूर्याप्रमाणे परोपकार, विद्या व उपदेशात प्रसिद्ध असून गाई जशा वासरांचे रक्षण करतात तसे विद्यादान करून सर्वांचे रक्षक व सदैव भ्रमन्ती करणारे, वेद व ईश्वराला जाणण्यासाठी व राज्यरक्षणासाठी राजाप्रमाणे न्यायाधीश बनून सर्वांना बोध करवितात ते सदैव सत्कार करण्यायोग्य असतात. ॥ ३ ॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Agni, rising, manifesting and moving all round every where freely, you shine and fill all regions of the world with light and inspiration, and, as a shepherd looks after, protects and guides his flock so, O leading light of humanity, all knowing and all pervasive, find ample appreciation and comfortable settlement for the scholar and teacher of the universal Vedic knowledge of existence. O scholars and leading lights of humanity, always protect and promote us with peace, prosperity and all round well being of life.

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