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ऋग्वेद मण्डल - 7 के सूक्त 23 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 23/ मन्त्र 5
    ऋषिः - वसिष्ठः देवता - इन्द्र: छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    ते त्वा॒ मदा॑ इन्द्र मादयन्तु शु॒ष्मिणं॑ तुवि॒राध॑सं जरि॒त्रे। एको॑ देव॒त्रा दय॑से॒ हि मर्ता॑न॒स्मिञ्छू॑र॒ सव॑ने मादयस्व ॥५॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ते । त्वा॒ । मदाः॑ । इ॒न्द्र॒ । मा॒द॒य॒न्तु॒ । शु॒ष्मिण॑म् । तु॒वि॒ऽराध॑सम् । ज॒रि॒त्रे । एकः॑ । दे॒व॒ऽत्रा । दय॑से । हि । मर्ता॑न् । अ॒स्मिन् । शू॒र॒ । सव॑ने । मा॒द॒य॒स्व॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ते त्वा मदा इन्द्र मादयन्तु शुष्मिणं तुविराधसं जरित्रे। एको देवत्रा दयसे हि मर्तानस्मिञ्छूर सवने मादयस्व ॥५॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ते। त्वा। मदाः। इन्द्र। मादयन्तु। शुष्मिणम्। तुविऽराधसम्। जरित्रे। एकः। देवऽत्रा। दयसे। हि। मर्तान्। अस्मिन्। शूर। सवने। मादयस्व ॥५॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 23; मन्त्र » 5
    अष्टक » 5; अध्याय » 3; वर्ग » 7; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्ते सर्वसेनेशाः सर्वे सेनाजनाः परस्परं कथं वर्तेरन्नित्याह ॥

    अन्वयः

    हे शूरेन्द्र ! हि यतस्त्वमेको देवत्रा यस्मै जरित्रे येभ्यो भृत्येभ्यश्च दयसे ते मदाः सन्तः शुष्मिणं तुविराधसं त्वा मादयन्तु त्वमस्मिन् सवने तान् मर्तान् मादयस्व ॥५॥

    पदार्थः

    (ते) (त्वा) त्वाम् (मदाः) आनन्दयुक्ताः सुभटाः (इन्द्र) सर्वसेनास्वामिन् (मादयन्तु) हर्षयन्तु (शुष्मिणम्) बहुबलयुक्तम् (तुविराधसम्) बहुधनधान्यम् (जरित्रे) सत्यस्तावकाय (एकः) असहायः (देवत्रा) देवेषु विद्वत्सु (दयसे) (हि) यतः (मर्त्तान्) मनुष्यान् (अस्मिन्) वर्त्तमाने (शूर) निर्भय (सवने) युद्धाय प्रेरणे (मादयस्व) आनन्दयस्व ॥५॥

    भावार्थः

    हे सर्वसेनाऽधिकारिपते ! त्वं सदा सर्वेषामुपरि पक्षपातं विहाय कृपां विदध्याः सर्वांश्च समभावेनानन्दय यतस्ते सुरक्षिताः सत्कृताः सन्तो दुष्टान्निवार्य श्रेष्ठान् रक्षित्वा राज्यं सततं वर्धयेयुः ॥५॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर वे सब सेनापति और सब सेनाजन परस्पर कैसे वर्तें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे (शूर) निर्भय (इन्द्र) सर्व सेना स्वामी ! (हि) जिस कारण आप (एकः) अकेले (देवत्रा) विद्वानों में जिस (जरित्रे) सत्य की स्तुति करनेवाले के लिये जिन भृत्य जनों से (दयसे) दया करते हो (ते) वे (मदाः) आनन्दयुक्त होते हुए अच्छे भट योद्धाजन (शुष्मिणम्) बलयुक्त (तुविराधसम्) बहुत धन-धान्यवाले (त्वा) आप को (मादयन्तु) हर्षित करें आप (अस्मिन्) इस वर्त्तमान (सवने) युद्ध के लिये प्रेरणा में उन (मर्त्तान्) मनुष्यों को (मादयस्व) आनन्दित करो ॥५॥

    भावार्थ

    हे सर्व सेनाधिकारियों के पति ! आप सर्वदैव सब पक्षपात को छोड़ कृपा करो और सब को समान भाव से आनन्दित करो, जिससे वे अच्छी रक्षा और सत्कार पाये हुए दुष्टों का निवारण और श्रेष्ठों की रक्षा करके निरन्तर राज्य बढ़ावें ॥५॥

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    विषय

    रक्षक का वर्णन ।

    भावार्थ

    ( हि ) जिस कारण से हे ( शूर ) शूरवीर ! तू ( देवत्रा ) विजयशील और विद्वान् पुरुषों के बीच, वा उनका त्राता होकर ( एकः ) अकेला, अद्वितीय होकर ( मर्तान् दयसे ) सब मनुष्यों को जीवन देता, उन पर विशेष कृपा करता, उनकी रक्षा करता है ( जरित्रे ) विद्वान् विद्योपदेष्टा के लिये ( तुवि- राधसं ) बहुत सा धन प्रदान करने वाले ( शुष्मिणं ) बलशाली, ( त्वा ) तुझको हे ( इन्द्र ) ऐश्वर्यवन् ! ( ते ) वे ( मदा: ) तृप्तिकारक नाना पदार्थ, और ( मदाः ) हर्षयुक्त नाना सुभट ( मादयन्तु ) तृप्त और प्रसन्न करें ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वसिष्ठ ऋषिः।। इन्द्रो देवता ॥ छन्दः – १, ६ भुरिक् पंक्ति: । ४ स्वराट् पंक्ति:। २, ३ विराट् त्रिष्टुप् । ५ निचृत्त्रिष्टुप् ॥ षडृचं सूक्तम्॥

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    विषय

    शूरवीर प्रजा की रक्षा करता है

    पदार्थ

    पदार्थ - (हि) = जिससे, हे (शूर) = शत्रुओं को शीर्ण करनेवाले वीर! तू (देवत्रा) = विद्वानों के बीच, उनका त्राता होकर (एक:) = अद्वितीय (मर्तान् दयसे) = मनुष्यों को जीवन देता है, अतः (जरित्रे) = विद्वान् के लिये (तुवि-राधसं) = बहुत धन देनेवाले (शुष्मिणं) = बलशाली, (त्वा) = तुझको, हे (इन्द्र) = ऐश्वर्यवन् ! (ते) = तेरे लिये (मदा:) = तृप्तिकारक पदार्थ (मादयन्तु) = हर्षित करें और (अस्मिन्) = इस (सवने) = संग्राम में (मर्तान्) = प्रजा को (मादयस्व) = प्रसन्न कर ।

    भावार्थ

    भावार्थ- सुभट योद्धा विद्वानों का त्राता होकर अद्वितीय राष्ट्र की प्रजा की रक्षा करता है।

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    हे सेनापती! तू सदैव भेदभाव न करता कृपावंत बन. सर्वांशी समभावाने वागून त्यांना आनंदित कर. ज्यामुळे त्यांचे रक्षण व सत्कार होईल. दुष्टांचे निवारण करून श्रेष्ठांचे रक्षण कर व राज्य उन्नत कर. ॥ ५ ॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Indra, lord of might, mercy, magnanimity and giver of all round success, may the devotees blest with joy and vision of action win your pleasure and favour for the gift of strength and power, sure success and excellence in all fields to bless the celebrant. You, the one adorable lord, bless the mortals with love and mercy. Come and share our celebrations of yajnic ecstasy with us in this session.

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