ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 36/ मन्त्र 5
यज॑न्ते अस्य स॒ख्यं वय॑श्च नम॒स्विनः॒ स्व ऋ॒तस्य॒ धाम॑न्। वि पृक्षो॑ बाबधे॒ नृभिः॒ स्तवा॑न इ॒दं नमो॑ रु॒द्राय॒ प्रेष्ठ॑म् ॥५॥
स्वर सहित पद पाठयज॑न्ते । अ॒स्य॒ । स॒ख्यम् । वयः॑ । च॒ । न॒म॒स्विनः॑ । स्वे । ऋ॒तस्य॑ । धाम॑न् । वि । पृक्षः॑ । बा॒ब॒धे॒ । नृऽभिः॑ । स्तवा॑नः । इ॒दम् । नमः॑ । रु॒द्राय॑ । प्रेष्ठ॑म् ॥
स्वर रहित मन्त्र
यजन्ते अस्य सख्यं वयश्च नमस्विनः स्व ऋतस्य धामन्। वि पृक्षो बाबधे नृभिः स्तवान इदं नमो रुद्राय प्रेष्ठम् ॥५॥
स्वर रहित पद पाठयजन्ते। अस्य। सख्यम्। वयः। च। नमस्विनः। स्वे। ऋतस्य। धामन्। वि। पृक्षः। बाबधे। नृऽभिः। स्तवानः। इदम्। नमः। रुद्राय। प्रेष्ठम् ॥५॥
ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 36; मन्त्र » 5
अष्टक » 5; अध्याय » 4; वर्ग » 1; मन्त्र » 5
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अष्टक » 5; अध्याय » 4; वर्ग » 1; मन्त्र » 5
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
के सङ्गन्तुमर्हा भवन्तीत्याह ॥
अन्वयः
ये स्वे नमस्विन ऋतस्य धामन् वर्तमानस्यास्य सख्यं वयः पृक्षश्च यजन्ते यो हि नृभिस्सह स्तवानो रुद्राय इदं प्रेष्ठं नमो वि बाबधे तं ताँश्च वयं सङ्गमयेम ॥५॥
पदार्थः
(यजन्ते) सङ्गच्छन्ते (अस्य) (सख्यम्) मित्रत्वम् (वयः) जीवनम् (च) (नमस्विनः) बह्वन्नादियुक्तः (स्वे) स्वकीयाः (ऋतस्य) सत्यस्य (धामन्) धामनि (वि) (पृक्षः) सम्पर्चनीयमन्नम् (बाबधे) बध्नाति (नृभिः) नायकैर्मनुष्यैः (स्तवानः) स्तूयमानः (इदम्) सुसंस्कृतम् (नमः) अन्नादिकम् (रुद्राय) (प्रेष्ठम्) अतिशयेन प्रियम् ॥५॥
भावार्थः
ये सत्पुरुषा अभिसंधिनः सर्वस्य सुहृदस्सर्वेषां दीर्घं जीवनं अन्नाद्यैश्वर्यं चिकीर्षन्ति त एव लोके प्रियतमा जायन्ते ॥५॥
हिन्दी (3)
विषय
कौन सङ्ग करने योग्य होते हैं, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
पदार्थ
जो (स्वे) अपने (नमस्विनः) बहुत अन्नयुक्त जन (ऋतस्य) सत्य के (धामन्) धाम में वर्त्तमान (अस्य) इस की (सख्यम्) मित्रता को (वयः) जीवन को तथा (पृक्षः) अच्छे प्रकार सङ्ग करने योग्य अन्न को (यजन्ते) सङ्ग करते हैं जो निश्चय से (नृभिः) नायक मनुष्यों के साथ (स्तवानः) स्तुति किया हुआ (रुद्राय) रुलानेवाले के लिये (इदम्) इस (प्रेष्ठम्) अत्यन्त प्रिय और (नमः) अन्न आदि पदार्थ को (वि, बाबधे) विशेषता से बाँधता है उस (च) और उन को हम लोग सङ्ग करावें ॥५॥
भावार्थ
जो अच्छे पुरुष सङ्ग करनेवाले, सब के मित्र और सब का दीर्घ जीवन अन्नादि ऐश्वर्य्य को करना चाहते हैं, वे ही लोक में अत्यन्त प्यारे होते हैं ॥५॥
विषय
उसको अधिकार
भावार्थ
( ऋतस्य धामन् ) सत्य या न्याय के भवन में (स्वे) उसके अपने जन ( नमस्विनः ) नमस्कार युक्त, अति विनीत होकर ( अस्य ) इस रुद्र के ( सख्यं ) मित्रभाव और ( वयः च ) जीवन वृत्ति को भी ( यजन्ते ) प्राप्त करते हैं वह ( नृभिः स्तवानः ) मनुष्यों से स्तुति किया जाता हुआ (पृक्षः) अन्नादि की ( वि बाबधे ) विविध प्रकार से व्यवस्था करता है । ( रुद्राय ) दुष्टों को रुलाने वाले उस महापुरुष को ( इदं ) उस प्रकार ( प्रेष्ठं) अतिप्रिय, अतिश्रेष्ठ ( नमः ) अधिकार वा शक्ति प्राप्त हो । इति प्रथमो वर्गः ॥
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वसिष्ठ ऋषि: ।। विश्वेदेवा देवताः ॥ छन्दः – २ त्रिष्टुप् । ३, ४, ६ निचृत्त्रिष्टुप् । ८, ९ विराट् त्रिष्टुप् । ५ पंक्तिः । १, ७ भुरिक् पंक्तिः ॥
विषय
नमस्विनः
पदार्थ
पदार्थ - (ऋतस्य धामन्) = न्याय-भवन में (स्वे) = उसके जन (नमस्विनः) = नमस्कार युक्त होकर (अस्य) = इस रुद्र के (सख्यं) = मित्रभाव और (वयः च) = जीवन-वृत्ति को (यजन्ते) = प्राप्त करते हैं, (नृभिः स्तवानः) = मनुष्यों से स्तुत हुआ (पृक्षः) = अन्नादि की (वि बाबधे) = विशेष व्यवस्था करता है। (रुद्राय) = दुष्टों को रुलानेवाले उसको (इदं) = इस प्रकार (प्रेष्ठं) = अतिप्रिय (नमः) = नमस्कार हो ।
भावार्थ
भावार्थ- अपनी न्याय व्यवस्था से दुष्टों को रुलानेवाले राजा के न्याय भवन में विनयभाव से अपनी समस्या का समाधान कराने के लिए प्रजाजन आया करें। राजा प्रजाजनों की जीवन वृत्ति को सुचारू रूप से चलाने के लिए अन्नादि की उत्तम व्यवस्था करे ।
मराठी (1)
भावार्थ
जे सत्पुरुषांचा संग करणारे, सर्वांचे मित्र, दीर्घ जीवन व अन्न इत्यादी ऐश्वर्य देऊ इच्छितात तेच या जगात प्रिय असतात. ॥ ५ ॥
इंग्लिश (1)
Meaning
In their own house of truth, justice and yajna, devotees with reverence and homage pray for life energy and the friendship and company of this Rudra, destroyer of suffering and injustice, and giver of pranic energy. Loved and adored by the people, he releases for them nourishment and energy in abundance. This cherished homage and adoration is offered to Rudra.
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