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ऋग्वेद मण्डल - 7 के सूक्त 48 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 48/ मन्त्र 2
    ऋषिः - वसिष्ठः देवता - ऋभवः छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    ऋ॒भुर्ऋ॒भुभि॑र॒भि वः॑ स्याम॒ विभ्वो॑ वि॒भुभिः॒ शव॑सा॒ शवां॑सि। वाजो॑ अ॒स्माँ अ॑वतु॒ वाज॑साता॒विन्द्रे॑ण यु॒जा त॑रुषेम वृ॒त्रम् ॥२॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ऋ॒भुः । ऋ॒भुऽभिः॑ । अ॒भि । वः॒ । स्या॒म॒ । विऽभ्वः॑ । वि॒ऽभुमिः॑ । शव॑सा । शवां॑सि । वाजः॑ । अ॒स्मान् । अ॒व॒तु॒ । वाज॑ऽसातौ । इन्द्रे॑ण । यु॒जा । त॒रु॒षे॒म॒ । वृ॒त्रम् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ऋभुर्ऋभुभिरभि वः स्याम विभ्वो विभुभिः शवसा शवांसि। वाजो अस्माँ अवतु वाजसाताविन्द्रेण युजा तरुषेम वृत्रम् ॥२॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ऋभुः। ऋभुऽभिः। अभि। वः। स्याम। विऽभ्वः। विभुऽभिः। शवसा। शवांसि। वाजः। अस्मान्। अवतु। वाजऽसातौ। इन्द्रेण। युजा। तरुषेम। वृत्रम् ॥२॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 48; मन्त्र » 2
    अष्टक » 5; अध्याय » 4; वर्ग » 15; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    मनुष्याः कथं विद्वांसो भवन्तीत्याह ॥

    अन्वयः

    हे मनुष्या ! यथा वाज ऋभुभिस्सह वाजसातावृभुर्वो युष्मानस्माँश्चावतु युजेन्द्रेण वृत्रं प्राप्नुयात् तथा विभ्वो वयं विभुभिः शवसा च सह शवांस्यभि तरुषेम यतो वयं सुखिनः स्याम ॥२॥

    पदार्थः

    (ऋभुः) मेधावी विद्वान् (ऋभुभिः) मेधाविभिराप्तैर्विद्वद्भिस्सह। ऋभुरिति मेधाविनाम। (निघं०३.१५)(अभि) आभिमुख्ये (वः) युष्मान् (स्याम) (विभ्वः) सकलशुभगुणकर्मस्वभावव्यापिनः (विभुभिः) सद्गुणादिषु व्याप्तैः (शवसा) बलेन (शवांसि) सङ्ग्रामे (इन्द्रेण) विद्युदाद्यस्त्रेण (युजा) युक्तेन (तरुषेम) प्राप्नुयाम। तरुष्यतीति पदनाम। (निघं०४.२) (वृत्रम्) धनम्। वृत्रमिति धननाम। (निघं०२.१०) ॥२॥

    भावार्थः

    अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। त एव विद्वांसो व्याप्तविद्याशुभगुणस्वभावा भवन्ति ये संग्रामेऽपि सर्वान्रक्षयित्वा धनं बलं च दातु शक्नुवन्ति ॥२॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    मनुष्य कैसे विद्वान् होते हैं, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे मनुष्यो ! जैसे (वाजः) विज्ञानवान् वा ऐश्वर्य्ययुक्त जन (ऋभुभिः) बुद्धिमान् उत्तम विद्वानों के साथ (वाजसातौ) संग्राम में (ऋभुः) बुद्धिमान् (वः) तुम्हें और (अस्मान्) हमें (अवतु) पाले रक्खे वा (युजा) योग किये हुए (इन्द्रेण) बिजुली आदि शस्त्र से (वृत्रम्) धन को प्राप्त हो, वैसे (विभ्वः) सकल शुभ गुण, कर्म और स्वभावों में व्याप्त हम लोग (विभुभिः) अच्छे गुणादिकों में व्याप्त जन और (शवसा) बल के साथ (शवांसि) बलों को (अभि, तरुषेम) प्राप्त हों जिससे हम लोग सुखी (स्याम) हों ॥२॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है । वे ही विद्वान् जन विद्याओं में व्याप्त शुभ गुण-कर्म-स्वभाव युक्त हैं, जो संग्राम में भी सब की रक्षा करके धन और बल दे सकते हैं ॥२॥

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    विषय

    यान, रथ, युद्ध-शस्त्र यन्त्र आदि निर्माण ।

    भावार्थ

    (वः ) आप लोगों में से ( ऋभुः ) सत्य व्यवहार, यज्ञ, धन और बल से चमकने वाला वा महान् सामर्थ्यवान् पुरुष ( ऋभुभिः ) उसी प्रकार सत्य धनादि से समृद्ध, अधिक सामर्थ्यवान् पुरुषों के साथ मिलकर और ( वाजः ) बलवान् पुरुष भी ( वाज-सातौ ) युद्ध काल में ( अस्मान् अवतु ) हमारी रक्षा करे। हम लोग ( विभ्वः ) विशेष बलशाली होकर ( विभुभिः ) विशेष सामर्थ्यवान् पुरुषों के साथ मिलकर ( शवसा ) अपने बल से ( शवांसि ) शत्रु के सैन्यों को ( अभि स्याम ) पराजित करें। और ( युजा ) सहयोगी ( इन्द्रेण ) ऐश्वर्यवान् राजा के साथ मिलकर ( वृत्रं तरूषेम ) बढ़ते हुए शत्रु को नाश करें।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वसिष्ठ ऋषिः॥ १–३ ऋभवः। ४ ऋभवो विश्वेदेवा वा देवताः ॥ छन्दः—१ भुरिक् पंक्तिः। २ निचृत्त्रिष्टुप्। ३ त्रिष्टुप् । ४ विराट् त्रिष्टुप्॥ चतुर्ऋचं सूक्तम् ॥

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    विषय

    अस्त्र-शस्त्र निर्माण

    पदार्थ

    पदार्थ- (वः) = आप में से (ऋभुः) = सत्य, यज्ञ, धन से चमकनेवाला पुरुष (ऋभुभिः) = वैसे ही सत्य धनादि-समृद्ध पुरुषों के साथ मिलकर और (वाज:) = बलवान् पुरुष भी (वाज-सातौ) = युद्ध-काल में (अस्मान् अवतु) = हमारी रक्षा करे। हम (विभ्वः) = विशेष बलशाली होकर (विभुभिः) = विशेष सामर्थ्यवान् पुरुषों से मिलकर (शवसा) = बल से (शवांसि) = शत्रु सैन्यों को (अभि स्याम) = हरायें और (युजा) = सहयोगी (इन्द्रेण) = ऐश्वर्यवान् राजा से मिलकर (वृत्रं तरुषेम) = बढ़ते शत्रु का नाश करें।

    भावार्थ

    भावार्थ- राजा को योग्य है कि राष्ट्र की रक्षा हेतु युद्ध सामग्री अर्थात् अस्त्र-शस्त्रों का निर्माण करावे जिससे युद्धकाल में शत्रु को पराजित करके राष्ट्र की प्रजा, ऐश्वर्य तथा सीमाओं की रक्षा कर सके। बिना उन्नत अस्त्र-शस्त्रों के शत्रु का नाश सम्भव नहीं।

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जे युद्धात सर्वांचे रक्षण करून धन व बल देऊ शकतात तेच विद्वान विद्या व शुभ गुण-कर्म-स्वभावाने युक्त असतात. ॥ २ ॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Let us be scientists with the great scientists, let us be experts with the experts and command powers and forces with the power and knowledge of the scientists and technologists. May the warriors of power and speed protect you and us in the battles of life’s freedom and success in excellence. And let us join Indra, lord of power and excellence and cross over evil, darkness and want to light, freedom and prosperity.

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