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ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 48/ मन्त्र 3
ते चि॒द्धि पू॒र्वीर॒भि सन्ति॑ शा॒सा विश्वाँ॑ अ॒र्य उ॑प॒रता॑ति वन्वन्। इन्द्रो॒ विभ्वाँ॑ ऋभु॒क्षा वाजो॑ अ॒र्यः शत्रो॑र्मिथ॒त्या कृ॑णव॒न्वि नृ॒म्णम् ॥३॥
स्वर सहित पद पाठते । चि॒त् । हि । पू॒र्वीः । अ॒भि । सन्ति॑ । शा॒सा । विश्वान् । अ॒र्यः । उ॒प॒रऽता॑ति । व॒न्व॒न् । इन्द्रः॑ । विऽभ्वा॑ । ऋ॒भु॒क्षाः । वाजः॑ । अ॒र्यः । शत्रोः॑ । मि॒थ॒त्या । कृ॒ण॒व॒न् । वि । नृ॒म्णम् ॥
स्वर रहित मन्त्र
ते चिद्धि पूर्वीरभि सन्ति शासा विश्वाँ अर्य उपरताति वन्वन्। इन्द्रो विभ्वाँ ऋभुक्षा वाजो अर्यः शत्रोर्मिथत्या कृणवन्वि नृम्णम् ॥३॥
स्वर रहित पद पाठते। चित्। हि। पूर्वीः। अभि। सन्ति। शासा। विश्वान्। अर्यः। उपरऽताति। वन्वन्। इन्द्रः। विऽभ्वा। ऋभुक्षाः। वाजः। अर्यः। शत्रोः। मिथत्या। कृणवन्। वि। नृम्णम् ॥३॥
ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 48; मन्त्र » 3
अष्टक » 5; अध्याय » 4; वर्ग » 15; मन्त्र » 3
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अष्टक » 5; अध्याय » 4; वर्ग » 15; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनः को राजा विजयी राज्यवर्धको भवतीत्याह ॥
अन्वयः
हे मनुष्या ! यो वाजोऽर्य ऋभुक्षाः स इन्द्रः शत्रोर्मिथत्या नृम्णमिच्छन् यान् विश्वान् विभ्वान् स्वकीयान् करोति त उपरताति विजयं कृणवन् ते चिद्धि शासा पूर्वीरभि सन्ति सोऽर्यो सुखी विजयी जायते ॥३॥
पदार्थः
(ते) विद्वांसः (चित्) अपि (हि) यतः (पूर्वीः) सनातन्यः प्रजाः (अभि) (सन्ति) (शासा) शासनेन (विश्वान्) सर्वान् (अर्यः) स्वामी (उपरताति) उपरतातौ पलैः मेघास्त्रादिभिः संग्रामे (वन्वन्) याचन्ते (इन्द्रः) परमैश्वर्ययुक्तः (विभ्वान्) विभून् विद्याव्याप्तानमात्यान् (ऋभुक्षाः) य ऋभून् मेधाविनः क्षियति निवासयति स महान् (वाजः) बलविज्ञानान्नयुक्तः (अर्यः) स्वामी (शत्रोः) (मिथत्या) हिंसया (कृणवन्) कुर्वन्ति (वि) (नृम्णम्) नृणां रमणीयं धनम् ॥३॥
भावार्थः
स एव राजा महान् विजयी भवति यो धार्मिकानुत्तमान् विदुषः संगृह्णाति ॥३॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर कौन राजा विजयशील राज्य का बढ़ानेवाला होता है, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
पदार्थ
हे मनुष्यो ! जो (वाजः) बल विज्ञान और अन्नयुक्त (अर्यः) स्वामी (ऋभुक्षाः) उत्तम बुद्धिमानों को निरन्तर बसावे वह (इन्द्रः) परमैश्वर्ययुक्त महान् राजा (शत्रोः) शत्रु की (मिथत्या) हिंसा से (नृम्णम्) जो मनुष्यों में रमणीय ऐसे धन की इच्छा करता हुआ जिन (विश्वान्) समस्त (विभ्वान्) विद्या में व्याप्त अमात्य जनों को अपना करता है (ते) वे विद्वान् जन (उपरताति) मेघास्त्रादिकों से संग्राम में विजय (कृणवन्) करते हैं वे (चित्) ही (हि) निश्चय कर (शासा) शासन से (पूर्वीः) सनातन प्रजाजन (अभि, सन्ति) सब ओर से विद्यमान हैं तथा वह स्वामी (वि) विजयी होता है ॥३॥
भावार्थ
वही राजा महान् विजयी होता है, जो धार्मिक उत्तम विद्वानों का संग्रह करता है ॥३॥
विषय
यान, रथ, युद्ध-शस्त्र यन्त्र आदि निर्माण ।
भावार्थ
( इन्द्रः ) ऐश्वर्यवान्, शत्रुहन्ता, (ऋभु-क्षाः) अति तेजस्वी पुरुषों को अपने अधीन बसाने हारा ( वाजः ) संग्राम-कुशल ( अर्यः ) स्वामी, ( शन्नोः मिथत्या ) शत्रु के मारने के लिये ( विभ्वान् ) बड़े २ सामर्थ्यवान् पुरुषों को प्राप्त करे । और वे सब मिलकर ( नृम्णम् ) धनैश्वर्य को ( वि कृण्वन् ) विविध प्रकारों से उत्पन्न करें । ( उपर-ताति ) मेघादि के समान शरवर्षी अस्त्रों से करने योग्य युद्ध काल में ( ते चित् हि ) वे ही ( विश्वान् अर्यः ) सब बढ़ते शत्रुओं को मारे और ( शासा ) शासन और शस्त्र-बल से ( पूर्वी: ) अपने से पूर्व विद्यमान सेनाओं को भी ( अभि सन्ति ) मात करें ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वसिष्ठ ऋषिः॥ १–३ ऋभवः। ४ ऋभवो विश्वेदेवा वा देवताः ॥ छन्दः—१ भुरिक् पंक्तिः। २ निचृत्त्रिष्टुप्। ३ त्रिष्टुप् । ४ विराट् त्रिष्टुप्॥ चतुर्ऋचं सूक्तम् ॥
विषय
युद्धकौशल
पदार्थ
पदार्थ- (इन्द्रः) = ऐश्वर्यवान्, (ऋभुः क्षा:) = तेजस्वी पुरुषों को बसाने (हारा वाज:) = संग्रामकुशल (अर्यः) = स्वामी, (शत्रोः मिथत्या) = शत्रु को मारने के लिये (विभ्वान्) = बड़े समर्थ पुरुषों को प्राप्त करे। वे (नृम्णम्) = धनैश्वर्य को (वि कृण्वन्) = विविध प्रकारों से उत्पन्न करें। (उपरताति) = मेघादि के तुल्य शरवर्षी अस्त्रों से करने योग्य युद्ध में (ते चित् हि) = वे ही (विश्वान् अर्यः) = सब बढ़ते शत्रुओं को मारें और (शासा) = शस्त्र बल से (पूर्वी:) = पहले की सेनाओं को भी (अभि सन्ति) = मात- करें।
भावार्थ
भावार्थ- राजा वा सेनापति तेजस्वी व संग्राम कुशल होवे। जो वीर सैनिकों तथा बलवान् योद्धाओं के सहयोग से रणकौशल योजनाएं बनाकर, मेघ के समान गोलियों की बौछार करते हुए शत्रु सेना संहार कर आगे बढ़ें तथा शासन और शस्त्रबल से युक्त सेना की टुकड़ियों को इधरउधर भेजकर सामञ्जस्य बनाए रखे। जिससे शत्रु श्रीहीन होकर अधीनता स्वीकार कर लेवे।
मराठी (1)
भावार्थ
जो धार्मिक विद्वानांना बाळगतो तोच राजा महान विजयी होतो. ॥ ३ ॥
इंग्लिश (1)
Meaning
They, the Rblus, eternal presences, surely excel and advance the borders of knowledge and power by discipline, being attached to their master with loyalty in all battles for progress. And Indra, the ruler vested with power, having settled eminent scientists, artists and craftsmen, and, having scattered out all enmities in conflicts, they develop new wealth and prosperity for the nation.
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