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ऋग्वेद मण्डल - 7 के सूक्त 48 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 48/ मन्त्र 4
    ऋषिः - वसिष्ठः देवता - ऋभवो विश्वे देवा वा छन्दः - विराट्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    नू दे॑वासो॒ वरि॑वः कर्तना नो भू॒त नो॒ विश्वेऽव॑से स॒जोषाः॑। सम॒स्मे इषं॒ वस॑वो ददीरन्यू॒यं पा॑त स्व॒स्तिभिः॒ सदा॑ नः ॥४॥

    स्वर सहित पद पाठ

    नु । दे॒वा॒सः॒ । वरि॑वः । क॒र्त॒न॒ । नः॒ । भू॒त । नः॒ । विश्वे॑ । अव॑से । स॒ऽजोषाः॑ । सम् । अ॒स्मे इति॑ । इष॑म् । वस॑वः । द॒दी॒र॒न् । यू॒यम् । पा॒त॒ । स्व॒स्तिऽभिः॑ । सदा॑ । नः॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    नू देवासो वरिवः कर्तना नो भूत नो विश्वेऽवसे सजोषाः। समस्मे इषं वसवो ददीरन्यूयं पात स्वस्तिभिः सदा नः ॥४॥

    स्वर रहित पद पाठ

    नु। देवासः। वरिवः। कर्तन। नः। भूत। नः। विश्वे। अवसे। सऽजोषाः। सम्। अस्मे इति। इषम्। वसवः। ददीरन्। यूयम्। पात। स्वस्तिऽभिः। सदा। नः ॥४॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 48; मन्त्र » 4
    अष्टक » 5; अध्याय » 4; वर्ग » 15; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुना राजादिभिर्विद्वद्भिः किं कर्त्तव्यमित्याह ॥

    अन्वयः

    हे सजोषा वसवो विश्वे देवासो ! यूयं नो वरिवः कर्त्तन नोऽवसे नु भूताऽस्मे इषं संददीरन् यूयं स्वस्तिभिर्नस्सदा पात ॥४॥

    पदार्थः

    (नु) क्षिप्रम्। अत्र ऋचि तुनुघेति दीर्घः। (देवासः) विद्वांसः (वरिवः) (कर्तना) कुर्यात्। अत्र संहितायामिति दीर्घः। (नः) अस्माकम् (भूत) भवत (नः) अस्माकम् (विश्वे) सर्वे (अवसे) रक्षणाद्याय (सजोषाः) समानप्रीतिसेविनः। अत्र वचनव्यत्ययेन जसः स्थाने सुः। (सम्) (अस्मे) अस्मभ्यम् (इषम्) अन्नं विज्ञानं वा (वसवः) ये विद्यायां वसन्ति ते (ददीरन्) प्रयच्छेयुः (यूयम्) (पात) (स्वस्तिभिः) (सदा) (नः) ॥४॥

    भावार्थः

    हे विद्वांसो ! राजजना यूयमस्मान् प्रजाः सततं रक्षत सर्वदा विज्ञानमन्नाद्यैश्वर्यं च प्रयच्छत एवं कृते सति युष्मान् वयं सततं रक्षेमेति ॥४॥ अत्र विद्वद्गुणकृत्यवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥ इत्यष्टचत्वारिंशत्तमं सूक्तं पञ्चदशो वर्गश्च समाप्तः ॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर राजादिकों से विद्वानों को क्या करना चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे (सजोषाः) समान प्रीति के सेवनेवाले (वसवः) विद्या में निवासकर्त्ता (विश्वे) समस्त (देवासः) विद्वान् जनो ! तुम (नः) हमारा (वरिवः) सेवन (कर्त्तन) करो (नः) हमारी (अवसे) रक्षा आदि के लिये (नु) शीघ्र (भूत) संनद्ध होओ (अस्मे) हमारे लिये (इषम्) अन्न वा विज्ञान को (सम्, ददरीन्) अच्छे प्रकार देओ (यूयम्) तुम (स्वस्तिभिः) सुखों से (नः) हमारी (सदा) सर्वदा (पात) रक्षा करो ॥४॥

    भावार्थ

    हे विद्वान् राजजनो ! तुम हम लोगों की और प्रजाजनों की निरन्तर रक्षा करो, सर्वदा विज्ञान और अन्न आदि ऐश्वर्य को देओ, ऐसा करो तो तुम लोगों की हम निरन्तर रक्षा करें ॥४॥ इस मन्त्र में विद्वानों के गुण और कर्मों का वर्णन होने से इस सूक्त के अर्थ की इससे पूर्व सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥ यह अड़तालीसवाँ सूक्त और पन्द्रहवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥

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    विषय

    यान, रथ, युद्ध-शस्त्र यन्त्र आदि निर्माण ।

    भावार्थ

    ( देवासः ) विद्वान्, दानशील पुरुष (नः) हमारे (वरिवः) उत्तम ऐश्वर्य की वृद्धि ( कर्त्तन ) करें । ( विश्वे देवासः ) सब वीर पुरुष ( स-जोषाः ) समान प्रीतियुक्त होकर ( नः अवसे भूत ) हमारी रक्षा के लिये तैयार रहें । ( वसवः ) समस्त वसु, बसे प्रजाजन, बसाने वाले शासक और पृथिवी, वायु सूर्यादि ( अस्मे ) हमें ( इषं ददीरन् ) अन्न और इच्छानुकूल ऐश्वर्य प्रदान करें । हे विद्वानो ! ( यूयं ) आप सब लोग (नः सदा स्वस्तिभिः पात) हमारा सदा कल्याणकारी उपायों द्वारा पालन करें । इति पञ्चदशो वर्गः ॥

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वसिष्ठ ऋषिः॥ १–३ ऋभवः। ४ ऋभवो विश्वेदेवा वा देवताः ॥ छन्दः—१ भुरिक् पंक्तिः। २ निचृत्त्रिष्टुप्। ३ त्रिष्टुप् । ४ विराट् त्रिष्टुप्॥ चतुर्ऋचं सूक्तम् ॥

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    विषय

    ऐश्वर्यशाली प्रजा

    पदार्थ

    पदार्थ - (देवासः) = विद्वान् (नः) = हमारी (वरिवः) = ऐश्वर्य वृद्धि कर्तन करें। (विश्वे देवासः) = सब वीर (स-जोषाः) = प्रीतियुक्त होकर (नः अवसे भूत) = हमारी रक्षार्थ तैयार रहें। (वसवः) = बसे प्रजाजन, बसानेवाले शासक (अस्मे) = हमें (इषं ददीरन्) = इच्छानुकूल ऐश्वर्य दें। हे विद्वानो! (यूयं) = आप लोग (नः सदा स्वस्तिभिः पात) = हमारी सदा कल्याणकारी उपायों से रक्षा करें।

    भावार्थ

    भावार्थ- राजा अपनी प्रजा को रक्षा प्रदान करने के लिए वीर पुरुषों को नियुक्त करे जो हर समय तैयार रहें। और प्रजा के लिए सरकारी सेवा, व्यापार तथा कृषि आदि की समुचित व्यवस्था करे जिससे प्रजा ऐश्वर्यशाली बने । अगले सूक्त का ऋषि वसिष्ठ और देवता आपः है।

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    हे विद्वान राजजनांनो ! तुम्ही आमचे व प्रजेचे निरंतर रक्षण करा. सदैव विज्ञान व अन्न इत्यादी ऐश्वर्य द्या. असे करण्याने आम्ही तुमचे निरंतर रक्षण करू. ॥ ४ ॥

    टिप्पणी

    या मंत्रात विद्वानांच्या गुण कर्माचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची या पूर्वीच्या सूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    O divine brilliant Rbhus, wondrous scientists, artists and craftsmen of the world, creators of wealth and providers of settlement at peace, create the best of comfort and prosperity for us. Loving and cooperative all, be for our safety, security and progress. Eminent masters of knowledge and expertise, provide the best of food, energy and sustenance for us. O Rbhus, O Vasus, pray always protect and promote us with all the good fortune for life’s well being all round, all time.

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