ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 58/ मन्त्र 2
ज॒नूश्चि॑द्वो मरुतस्त्वे॒ष्ये॑ण॒ भीमा॑स॒स्तुवि॑मन्य॒वोऽया॑सः। प्र ये महो॑भि॒रोज॑सो॒त सन्ति॒ विश्वो॑ वो॒ याम॑न्भयते स्व॒र्दृक् ॥२॥
स्वर सहित पद पाठज॒नूः । चि॒त् । वः॒ । म॒रु॒तः॒ । त्वे॒ष्ये॑ण । भीमा॑सः । तुवि॑ऽमन्यवः । अया॑सः । प्र । ये । महः॑ऽभिः । ओज॑सा । उ॒त । सन्ति॑ । विश्वः॑ । वः॒ । याम॑न् । भ॒य॒ते॒ । स्वः॒ऽदृक् ॥
स्वर रहित मन्त्र
जनूश्चिद्वो मरुतस्त्वेष्येण भीमासस्तुविमन्यवोऽयासः। प्र ये महोभिरोजसोत सन्ति विश्वो वो यामन्भयते स्वर्दृक् ॥२॥
स्वर रहित पद पाठजनूः। चित्। वः। मरुतः। त्वेष्येण। भीमासः। तुविऽमन्यवः। अयासः। प्र। ये। महःऽभिः। ओजसा। उत। सन्ति। विश्वः। वः। यामन्। भयते। स्वःऽदृक् ॥२॥
ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 58; मन्त्र » 2
अष्टक » 5; अध्याय » 4; वर्ग » 28; मन्त्र » 2
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अष्टक » 5; अध्याय » 4; वर्ग » 28; मन्त्र » 2
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनः के अविश्वसनीया इत्याह ॥
अन्वयः
हे मरुतो ! ये महोभिरोजसा त्वेष्येण सह वर्त्तमानाः भीमासस्तुविमन्यवोऽयासो वो युष्माकं जनूः प्रसन्त्युत यो विश्वः स्वर्दृग्जनो यामन् वो भयते ताँस्तं चिद्यूयं विज्ञाय युक्त्या सेवध्वम् ॥२॥
पदार्थः
(जनूः) जनन्यः प्रकृतयः (चित्) अपि (वः) युष्माकम् (मरुतः) वायव इव मनुष्याः (त्वेष्येण) त्विषि प्रदीपने भवेन (भीमासः) बिभ्यति येभ्यस्ते (तुविमन्यवः) बहुक्रोधाः (अयासः) ज्ञातारो गन्तारो वा (प्र) प्रकाशयन्तः (ये) (महोभिः) महद्भिः पराक्रमैर्गुणैर्वा (ओजसा) बलेन सह (उत) अपि (सन्ति) (विश्वः) सर्वः (वः) युष्मान् (यामन्) यान्ति येन यस्मिन् वा तस्मिन् (भयते) भयं करोति (स्वर्दृक्) यः स्वः सुखं पश्यति सः ॥२॥
भावार्थः
अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे विद्वांसो मनुष्याः ! ये भयङ्करा मनुष्यादयः प्राणिनः सन्ति तेषां विश्वासमकृत्वा तान् महता बलेन पराक्रमेण च वशं नयत ॥२॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर कौन नहीं विश्वास करने योग्य हैं, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
पदार्थ
हे (मरुतः) पवनों के समान मनुष्यो ! (ये) जो (महोभिः) बड़े पराक्रमों वा गुणों के और (ओजसा) बल (त्वेष्येण) प्रकाश में हुए के साथ वर्त्तमान (भीमासः) डरते हैं जिन से वे (तुविमन्यवः) बहुत क्रोधयुक्त (अयासः) जानने वा जानेवाले जन (वः) आप लोगों को (जनूः) स्वभाव (प्रसन्ति) प्रकाश करते हुए हैं और (उत) भी जो (विश्वः) सम्पूर्ण (स्वर्दृक्) सुख को देखनेवाला मनुष्य (यामन्) लाते हैं जिससे वा जिस में उस में (वः) आप लोगों को (भयते) भय देता है उनको और उस को (चित्) भी आप लोग जान कर युक्ति से सेवा करिये ॥२॥
भावार्थ
इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे विद्वान् मनुष्यो ! जो भयङ्कर मनुष्य आदि प्राणी हैं, उनका विश्वास नहीं करके उन को बड़े बल और पराक्रम से वश में करिये ॥ २ ॥
विषय
अध्यक्षों के कर्त्तव्य, उनको उत्तम २ उपदेश ।
भावार्थ
जिस प्रकार वायु गण की उत्पत्ति ( त्वेष्येण ) प्रखर तेज से है और वे ताप पाकर बड़े वेग से प्रकट होते हैं कि सब कोई कांप जाते हैं, उसी प्रकार हे ( मरुतः ) विद्वान् वीर जनो ! ( ये ) जो आप लोग ( त्वेष्येण ) अति तीक्ष्ण तेज से और ( महोभिः ) बड़े २ गुणों और ( ओजसा ) बड़े बल पराक्रम से युक्त होकर ( भीमासः ) अति भयंकर और (तुवि-मन्यवः ) अति क्रोध युक्त और बहुज्ञान युक्त ( अयासः ) आगे बढ़ने वाले हो ( वः जनूः चित् ) आप लोगों की उत्पादक माताएं, वा प्रकृतियें भी ( प्र सन्ति ) उत्तम कोटि की हैं । ( यामन् ) अपने २ मार्ग में चलते हुए भी ( विश्वः ) सभी ( स्वर्दृक् ) सुख से देखने वाले कुशल के इच्छुक, लोग ( वः भयते ) आप लोगों से अधर्म करने से भय करते हैं ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वसिष्ठ ऋषिः॥ मरुती देवताः॥ छन्दः –३, ४ निचृत्त्रिष्टुप् । ५ त्रिष्टुप् । १ विराट् त्रिष्टुप् । २, ६ भुरिक्पंक्तिः ॥ षडर्चं सूकम् ॥
विषय
दुष्टों को दण्ड दो
पदार्थ
पदार्थ- हे (मरुतः) = विद्वान्, वीर जनो! (ये) = जो आप लोग (त्वेष्येण) = अति तीक्ष्ण तेज, (महोभिः) = बड़े गुणों और (ओजसा) = पराक्रम से युक्त होकर (भीमासः) = भयंकर और (तुविमन्यवः) = अति क्रोधयुक्त (अयासः) = आगे बढ़नेवाले हो। (वः जनूः चित्) = आप की उत्पादक माताएँ भी (प्र सन्ति) = उत्तम कोटि की हैं। (यामन्) = अपने अपने मार्ग में चलते हुए भी (विश्वः) = सभी (स्वर्दृक्) = सुख से देखनेवाले लोग (वः भयते) = आप से अधर्म करने से भय करते हैं ।
भावार्थ
भावार्थ- राष्ट्र के रक्षक उत्तम वीरों के पराक्रम, दुष्टों के प्रति भयंकर क्रोध तथा नीतिज्ञान से दुष्ट व अत्याचारी लोग भयभीत रहते हैं। क्योंकि वे वीर, दुष्टों को कठोर दण्ड देते हैं।
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे विद्वान माणसांनो ! जी भयंकर माणसे असतात त्यांच्यावर विश्वास न ठेवता त्यांना मोठ्या बल व पराक्रमाने वश करून ठेवावे. ॥ २ ॥
इंग्लिश (1)
Meaning
O vital energies, mighty heroes, your very birth and nature is vested with splendour. Fearsome of mien, overwhelming in passion, you are like dynamites in action. You are instantly proclaimed by your grandeur and majesty, and the world that looks up to the sun and the skies looks at you with awe on way to the higher life.
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