ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 62/ मन्त्र 2
स सू॑र्य॒ प्रति॑ पु॒रो न॒ उद्गा॑ ए॒भिः स्तोमे॑भिरेत॒शेभि॒रेवै॑: । प्र नो॑ मि॒त्राय॒ वरु॑णाय वो॒चोऽना॑गसो अर्य॒म्णे अ॒ग्नये॑ च ॥
स्वर सहित पद पाठसः । सू॒र्य॒ । प्रति॑ । पु॒रः । नः॒ । उत् । गाः॒ । ए॒भिः । स्तोमे॑भिः । ए॒त॒शेभिः॑ । एवैः॑ । प्र । नः॒ । मि॒त्राय॑ । वरु॑णाय । वो॒चः॒ । अना॑गसः । अ॒र्य॒म्णे । अ॒ग्नये॑ । च॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
स सूर्य प्रति पुरो न उद्गा एभिः स्तोमेभिरेतशेभिरेवै: । प्र नो मित्राय वरुणाय वोचोऽनागसो अर्यम्णे अग्नये च ॥
स्वर रहित पद पाठसः । सूर्य । प्रति । पुरः । नः । उत् । गाः । एभिः । स्तोमेभिः । एतशेभिः । एवैः । प्र । नः । मित्राय । वरुणाय । वोचः । अनागसः । अर्यम्णे । अग्नये । च ॥ ७.६२.२
ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 62; मन्त्र » 2
अष्टक » 5; अध्याय » 5; वर्ग » 4; मन्त्र » 2
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अष्टक » 5; अध्याय » 5; वर्ग » 4; मन्त्र » 2
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
अधुना तत्साधनान्युपदिश्यन्ते।
पदार्थः
(सूर्य्य) सरति=सर्वत्र व्याप्नोतीति सूर्य्य=हे परमात्मन् ! (सः) प्रसिद्धस्त्वम् (एभिः, स्तोमेभिः) एतैर्यज्ञैः (नः) अस्माकं (प्रति, पुरः) हृदये (उद्गाः) आगच्छ (एतशेभिः) निष्कामकर्मभिः (एवैः) निश्चयेन (नः) अस्माकं (मित्राय) अध्यापकाय (वरुणाय) उपदेशकाय (अर्यम्णे) न्यायकारिणे (अग्नये) विज्ञानवते च (प्रवोचः) धर्ममुपदिश, यतः (अनागसः) निष्कामकर्मणां संसारे प्रचारो भवेत् ॥२॥
भावार्थः
जपयज्ञो योगयज्ञो ध्यानयज्ञश्चैवंविधाः प्रचुराः यज्ञाः परमात्मप्राप्तेः साधनत्वेन विवक्षिताः यैः यज्ञैः निष्कामकर्मद्वारेण परमात्मप्राप्तिर्भवति, अस्मिन् मन्त्रे परमात्मा अध्यापकानुपदेशकान् सत्कर्मणो विज्ञानिनश्च इदमुपदिशति यद्भवद्भिः यज्ञकर्मोपदेश्यं यतो जगति सर्वत्र निष्कामकर्मणां प्रचारो भवेत् ॥२॥
हिन्दी (3)
विषय
अब परमात्मप्राप्ति के साधन कथन करते हैं।
पदार्थ
(सूर्य) हे ! (सः) आप (एभिः, स्तोमेभिः) इन यज्ञों से (नः) हमारे (प्रति, पुरः) हृदय में (उद्गाः) प्रकट हों (एतशेभिः) जो निष्कामकर्म द्वारा साधन किये जाते हैं, उनका (एवैः) निश्चय करके (नः) हमारे (मित्राय, वरुणाय) अध्यापक, उपदेशक (अर्यम्णे) न्यायकारी (च) और (अग्नये) विज्ञानी पुरुषों के लिए (प्र, वोचः) उपदेश करें कि तुम (अनागसः) संसार में निष्कामता का प्रचार करो, जिससे विद्वानों के समक्ष निर्दोष सिद्ध हो ॥२॥
भावार्थ
जपयज्ञ, योगयज्ञ तथा ध्यानयज्ञ, इत्यादि यज्ञ परमात्मप्राप्ति के साधन हैं, जिनके द्वारा निष्कामकर्मी को परमात्मा की प्राप्ति होती है। इस मन्त्र में परमात्मा अध्यापक, उपदेशक तथा विज्ञानी पुरुषों को उपदेश करते हैं कि तुम लोग इन यज्ञों का प्रचार करो, ताकि निष्कामता फैलकर संसार का उपकार हो ॥२॥
विषय
किरणोंवत् सज्जनों सहित उदय को प्राप्त हो ।
भावार्थ
हे (सूर्य) सूर्य के समान तेजस्विन् ! जिस प्रकार ( एतशेभिः एवैः स्तोमेभिः पुरः प्रति उद्गच्छति ) सूर्य शुक्ल किरण-समूहों से पूर्व दिशा में प्रति दिन उदय को प्राप्त होता है उसी प्रकार हे राजन् ! विद्वन् ! तू भी ( एतशेभिः ) उन अश्वों से ( एभिः स्तोमैः ) इन स्तुत्य जन संघों सहित वा ( एतशेभिः एवैः स्तोमेभिः ) शुक्ल, शुद्ध, ज्ञानदायक, स्तुतियोग्य मन्त्रसमूहों सहित ( प्रति ) प्रतिदिन ( नः पुरः ) हमारे समक्ष उदय को प्राप्त हो । वा ( नः पुरः ) प्रति ( उद् गाः ) हमारे नगरों के प्रति आ । और ( नः ) हमारे में से ( मित्राय) स्नेहवान् ( वरुणाय ) दुःखों के वारक, श्रेष्ठ, ( अर्यम्णे ) न्यायकारी, दुष्ट जनों के नियन्ता और ( अग्नये ) अग्रणी नेता जन के हित ( नः ) हम (अनागसः ) निरपराध जनों को ( प्र वोचः ) उत्तम उपदेश कर ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वसिष्ठ ऋषिः ॥ १–३ सूर्यः। ४-६ मित्रावरुणौ देवते ॥ छन्दः–१, २, ६ विरात्रिष्टुप् । ३, ४, ५ निचृत्त्रिष्टुप् ॥ षडृचं सूक्तम् ॥
विषय
ज्ञानोदय
पदार्थ
पदार्थ- हे (सूर्य) = तेजस्विन् ! जैसे (एतशेभिः एवैः स्तोमेभिः पुरः प्रति उद्गच्छति) = सूर्य शुक्ल किरण समूहों से पूर्व दिशा में प्रतिदिन उदय होता है वैसे ही राजन् ! विद्वान् ! तू भी (एतशेभिः) = अश्वों से (एभिः स्तोमैः) = इन स्तुत्य जन-संघों सहित वा (एतशेभिः एवैः स्तोमेभिः) = ज्ञानदायक, स्तुत्य मन्त्रसमूहों सहित प्रति प्रतिदिन (नः पुरः) = हमारे समक्ष (उद् गाः) = उदय हो। और (नः) = हमारे में से (मित्राय) = स्नेहवान् (वरुणाय) = दुःखों के वारक, (अर्यम्णे) = न्यायकारी, और (अग्नये) = अग्रणी नेता जन के हित (नः) = हम (अनागसः) = निरपराध जनों को (प्र वोचः) = उपदेश कर।
भावार्थ
भावार्थ- राजा को योग्य है कि वह ऐसे उत्तम तेजस्वी विद्वानों को राज्य में नियुक्त करे जो प्रजा में उगते सूर्य के समान वेद ज्ञान का प्रकाश करे। इससे प्रजा ज्ञानी होकर सुखी होगी। साथ ही राजा उत्तम लोगों के विभिन्न संघों को भी संगठित करने में विद्वानों का सहयोग लेवे जिससे नेता लोग निरपराध जनों को सुखी करने में सहयोगी होवें।
इंग्लिश (1)
Meaning
O Sun, self refulgent lord giver of light and life, come in response to these songs of adoration and specified waves of thought energy stimulated by our songs. Let the light arise in our heart and mind, and speak to Mitra, Varuna, Aryama and Agni, powers of love and friendship, judgement, discrimination and integration, guidance and leadership with rectitude, and energy and enlightenment in our human community. Speak to us so that we may maintain a state of purity and freedom from sin and crime.
मराठी (1)
भावार्थ
जपयज्ञ, योगयज्ञ व ध्यानयज्ञ इत्यादी यज्ञ परमेश्वर प्राप्तीची साधने आहेत. त्यामुळेच निष्कामकर्मी लोकांना परमेश्वराची प्राप्ती होते. या मंत्रात परमेश्वर, अध्यापक, उपदेशक व विज्ञानी पुरुषांना उपदेश करतो, की तुम्ही यज्ञाचा प्रचार करा त्यामुळे निष्कामता पसरून जगावर उपकार व्हावा ॥२॥
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