ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 70/ मन्त्र 5
शु॒श्रु॒वांसा॑ चिदश्विना पु॒रूण्य॒भि ब्रह्मा॑णि चक्षाथे॒ ऋषी॑णाम् । प्रति॒ प्र या॑तं॒ वर॒मा जना॑या॒स्मे वा॑मस्तु सुम॒तिश्चनि॑ष्ठा ॥
स्वर सहित पद पाठशु॒श्रु॒वांसा॑ । चि॒त् । अ॒श्वि॒ना॒ । पु॒रूणि॑ । अ॒भि । ब्रह्मा॑णि । च॒क्षा॒थे॒ इति॑ । ऋषी॑णाम् । प्रति॑ । प्र । या॒त॒म् । वर॑म् । आ । जना॑य । अ॒स्मे इति॑ । वा॒म् । अ॒स्तु॒ । सु॒ऽम॒तिः । चनि॑ष्ठा ॥
स्वर रहित मन्त्र
शुश्रुवांसा चिदश्विना पुरूण्यभि ब्रह्माणि चक्षाथे ऋषीणाम् । प्रति प्र यातं वरमा जनायास्मे वामस्तु सुमतिश्चनिष्ठा ॥
स्वर रहित पद पाठशुश्रुवांसा । चित् । अश्विना । पुरूणि । अभि । ब्रह्माणि । चक्षाथे इति । ऋषीणाम् । प्रति । प्र । यातम् । वरम् । आ । जनाय । अस्मे इति । वाम् । अस्तु । सुऽमतिः । चनिष्ठा ॥ ७.७०.५
ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 70; मन्त्र » 5
अष्टक » 5; अध्याय » 5; वर्ग » 17; मन्त्र » 5
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अष्टक » 5; अध्याय » 5; वर्ग » 17; मन्त्र » 5
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(शुश्रुवांसा, चित्, अश्विना) हे श्रुतज्ञाना विद्वांसः ! (ऋषीणाम्) ऋषीणां सम्बन्धीनि (पुरूणि) अनेकानि (अभि, ब्रह्माणि) वैदिकज्ञानानि अस्मान् प्रति (आ) सम्यक् (चक्षाथे) निशामयत, यूयमिति शेषः, (वाम्) युष्माकं (चनिष्ठा) कमनीयतरा (सुमतिः) सुबुद्धिः (अस्मे, जनाय) मदर्थं (अस्तु) कल्याणरूपा भवतु, भवन्तः (वरम्) श्रेष्ठं अस्मदीयं यज्ञस्थानं (प्रति) प्रति (प्र, यातम्) आगच्छन्तु ॥५॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(शुश्रुवांसा, अश्विना) हे सुशिक्षित विद्वानों ! (ऋषीणां, पुरूणि, अभि, ब्रह्माणि) ऋषियों सम्बन्धी अनेक वैदिक ज्ञानों को हमारे प्रति (आ) भले प्रकार (चक्षाथे) कथन करो, (वां) तुम्हारी (चनिष्ठा, सुमतिः) अनुष्ठानिक उत्तम बुद्धि (अस्मे, जनाय) हम लोगों के लिए (अस्तु) शुभ हो और (वरं, प्रति) हमारे श्रेष्ठ यज्ञस्थान को आप (प्र, यातं) गमन करें ॥५॥
भावार्थ
हे याज्ञिक लोगो ! तुम उन वेदविद्यापारग विद्वानों से यह प्रार्थना करो कि आप उन पूर्वकालिक मन्त्रद्रष्टा ऋषियों से उपलब्ध किये ज्ञान का हमें उपदेश करें, जिससे हमारी बुद्धि निष्ठायुक्त होकर वेद के गूढ भावों को ग्रहण करने योग्य हो। कृपा करके आप हमारे यज्ञीय पवित्र स्थान को सुशोभित करें, ताकि हम आपसे वेदविषयक ज्ञान श्रवण करके पवित्र भावोंवाले हों ॥५॥
विषय
ज्ञान प्राप्त्यर्थं प्रेरणा ।
भावार्थ
हे (अश्विना ) जितेन्द्रिय स्त्री पुरुष, युगल जनो ! आप दोनों (चित् ) ही ( ऋषीणां ) मन्त्रों का साक्षात् दर्शन करने वाले विद्वान् पुरुषों के साक्षात् किये हुए ( पुरूणि ) बहुत से ( ब्रह्माणि ) वेद मन्त्रों को ( शुश्रुवांसा ) श्रवण मनन करते हुए ( अभि चक्षाथे ) उनके तत्व ज्ञान का साक्षात् अनुभव प्राप्त किया करो। आप लोग ( जनाय ) मनुष्य मात्र के उपकार के लिये (वरम् ) उत्तम उद्देश्य को ( प्रति यातम् ) लक्ष्य करके चलो। ( वरम् प्र यातम् ) उत्तम ज्ञान और उत्तम फल प्राप्त करो, ( वरम् आ यातम् ) वरण करने योग्य श्रेष्ठ पुरुष और स्थान को ही आओ । ( अस्मे ) हमारे उपकार के लिये (वाम् ) आप दोनों की (चनिष्ठा) अति उत्तम, प्रशंसनीय ( सुमतिः अस्तु ) शुभमति हो।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वसिष्ठ ऋषिः ॥ अश्विनौ देवते ॥ छन्दः— १, ३, ४, ६ निचृत् त्रिष्टुप् । २, ५, ७ विराट् त्रिष्टुप् ॥ सप्तर्चं सूक्तम् ॥
विषय
ज्ञान प्राप्ति
पदार्थ
पदार्थ- हे (अश्विना) = जितेन्द्रिय स्त्री-पुरुषो! आप दोनों (चित्) = ही (ऋषीणां) = मन्द्रद्रष्टा पुरुषों के साक्षात् किये (पुरूणि) = बहुत (ब्रह्माणि) = वेद-मन्त्रों को (शुश्रुवांसा) = श्रवण करते हुए (अभि चक्षाथे) = उनके तत्त्वज्ञान को प्राप्त करो। आप लोग (जनाय) = मनुष्य के उपकारार्थ (वरम्) = उत्तम उद्देश्य को (प्रति यातम्) = लक्ष्य करके चलो। (वरम् प्र यातम्) = उत्तम ज्ञान प्राप्त करो, (वरम् आ यातम्) = वरण-योग्य श्रेष्ठ पुरुष और स्थान को ही आओ। (अस्मे) = हमारे लिये (वाम्) = आप दोनों की (चनिष्ठा) = प्रशंसनीय (सुमतिः अस्तु) = शुभमति हो ।
भावार्थ
भावार्थ- जितेन्द्रिय स्त्री-पुरुष वेद मन्त्रों को सुनकर उनके तत्त्व ज्ञान को प्राप्त करें तथा उस ज्ञान को अन्यों के लिए भी उपदेश करें।
इंग्लिश (1)
Meaning
Ashvins, learned scholars of knowledge and practical application of knowledge, speak to us of the earlier and eternal knowledge and formulations of the seers of Divinity and nature. Come and grace our yajna, and may your knowledge and wisdom be appropriately good and beneficial for our people.
मराठी (1)
भावार्थ
हे याज्ञिकांनो! तुम्ही त्या वेदपारंगत विद्वानांना ही प्रार्थना करा, की तुम्ही प्राचीन मंत्रद्रष्ट्या ऋषींकडून मिळालेल्या ज्ञानाचा आम्हाला उपदेश करा. ज्यामुळे आमची बुद्धी निष्ठायुक्त बनून वेदाच्या गूढभावांना ग्रहण करण्यायोग्य व्हावी. कृपा करून तुम्ही आमचे यज्ञीय पवित्र स्थान सुशोभित करा. त्यामुळे आम्ही तुमच्याकडून वेदविषयक ज्ञान ऐकून पवित्र भाव बनवावे. ॥५॥
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