ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 70/ मन्त्र 6
यो वां॑ य॒ज्ञो ना॑सत्या ह॒विष्मा॑न्कृ॒तब्र॑ह्मा सम॒र्यो॒३॒॑ भवा॑ति । उप॒ प्र या॑तं॒ वर॒मा वसि॑ष्ठमि॒मा ब्रह्मा॑ण्यृच्यन्ते यु॒वभ्या॑म् ॥
स्वर सहित पद पाठयः । वा॒म् । य॒ज्ञः । ना॒स॒त्या॒ । ह॒विष्मा॑न् । कृ॒तऽब्र॑ह्मा । स॒ऽम॒र्यः॑ । भवा॑ति । उप॑ । प्र । या॒त॒म् । वर॑म् । आ । वसि॑ष्ठम् । इ॒मा । ब्रह्मा॑णि । ऋ॒च्य॒न्ते॒ । यु॒वऽभ्या॑म् ॥
स्वर रहित मन्त्र
यो वां यज्ञो नासत्या हविष्मान्कृतब्रह्मा समर्यो३ भवाति । उप प्र यातं वरमा वसिष्ठमिमा ब्रह्माण्यृच्यन्ते युवभ्याम् ॥
स्वर रहित पद पाठयः । वाम् । यज्ञः । नासत्या । हविष्मान् । कृतऽब्रह्मा । सऽमर्यः । भवाति । उप । प्र । यातम् । वरम् । आ । वसिष्ठम् । इमा । ब्रह्माणि । ऋच्यन्ते । युवऽभ्याम् ॥ ७.७०.६
ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 70; मन्त्र » 6
अष्टक » 5; अध्याय » 5; वर्ग » 17; मन्त्र » 6
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अष्टक » 5; अध्याय » 5; वर्ग » 17; मन्त्र » 6
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(नासत्या) हे सत्यवादिनो विद्वांसः ! (समर्यः) स्मरणीयस्येश्वरस्य सम्बन्धी (हविष्मान्) हविषा युक्तः (वाम्) युष्माकं (यः, यज्ञः) यो यज्ञोऽस्ति, अन्यच्च यत्र (कृतब्रह्मा) वेदवेत्ता ब्रह्मा (भवाति) विधीयमानोऽस्ति, तत्र यज्ञे (युवभ्याम्) युष्माभिः (इमा) इमाः (ब्रह्माणि) वेदवाण्यः (आ) सम्यक्तया (ऋच्यन्ते) स्तोतव्याः, अतो यूयं (वरम्) श्रेष्ठं (वसिष्ठम्, उप) एनं यज्ञं प्रति (प्र, यातम्) आगच्छत ॥६॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(नासत्या) हे सत्यवादी विद्वानों ! (समर्यः) ईश्वर की उपासनायुक्त (हविष्मान्) हविवाला (वां) तुम्हारा (यः) जो (यज्ञः) यज्ञ जिसमें (कृतब्रह्मा) वेदवेत्ता ब्रह्मा (भवाति) बनाया गया है, इस यज्ञ में (युवभ्यां) तुम्हारे द्वारा (इमा) इन (ब्रह्माणि, ऋच्यन्ते) वेदों का प्रचार (आ) भले प्रकार किया जायगा, इसलिए (वरं, वसिष्ठं) अतिश्रेष्ठ इस यज्ञ को (उप, प्रयातं) आप आकर सुशोभित करें ॥६॥
भावार्थ
ब्रह्मप्रतिपादक वेद के प्रचारक विद्वानों ! आप इस श्रेष्ठ यज्ञ में आकर इसकी शोभा को बढ़ावें, जो परमात्मा की उपासना के निमित्त किया गया है। हे आध्यात्मिक ज्ञान के प्रचारक विज्ञानी देवो ! आप हमको इस पवित्र यज्ञ में परमात्मविषयक उपदेश करें, जो मनुष्यजीवन का एकमात्र लक्ष्य है ॥६॥
विषय
वर-वधू दोनों को उत्तम उपदेश।
भावार्थ
हे ( नासत्या ) कभी असत्याचरण न करने वाले, सदा सत्य व्यवहार के पालक और नासिकावत् मुख्य स्थान पर विराजमान स्त्री पुरुषो ! ( यः ) जो ( यज्ञः ) पूजा सत्संग-योग्य ( हविष्मान् ) उत्तम ज्ञान अन्न से सम्पन्न ( कृत-ब्रह्मा ) वेदाध्ययन में कृतश्रम और धनादि में समृद्ध ( वां ) आप दोनों के प्रति ( समर्यः ) नाना पुरुषों सहित (भवति) होता है आप दोनों ऐसे ( वरम् ) वरण करने योग्य ( वसिष्ठं ) सर्वोत्तम 'वसु', विद्वान् वा राजा को (उप आ यातम् ) प्राप्त होओ, उसके पास और उसी के गृह पर आया जाया करो । हे स्त्री पुरुषो ! ( युवभ्याम् ) आप दोनों के हितार्थ ही ( इमा ब्रह्माणि ) ये नाना वेदोक्त ज्ञान, अन्न नाना धन ( ऋच्यन्ते ) ऋचाओं के रूप में प्रकट होते हैं, आदरपूर्वक प्रस्तुत किये जाते हैं ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वसिष्ठ ऋषिः ॥ अश्विनौ देवते ॥ छन्दः— १, ३, ४, ६ निचृत् त्रिष्टुप् । २, ५, ७ विराट् त्रिष्टुप् ॥ सप्तर्चं सूक्तम् ॥
विषय
गृहस्थी को उपदेश
पदार्थ
पदार्थ- हे (नासत्या) = असत्याचरण न करनेवाले स्त्री-पुरुषो! (यः) = जो (यज्ञः) = पूजा-सत्संग= योग्य (हविष्मान्) = उत्तम ज्ञान अन्न से सम्पन्न (कृत-ब्रह्मा) = वेदाध्यन में कृतश्रम और धनादि में समृद्ध (वां) = आप दोनों के प्रति (समर्य:) = नाना पुरुषों सहित (भवति) = होता है आप दोनों ऐसे वरणयोग्य (वसिष्ठं) = सर्वोत्तम ‘वसु', विद्वान् वा राजा को (उप आ यातम्) = प्राप्त होओ, हे स्त्री-पुरुषो ! (युवभ्याम्) = आप दोनों के हितार्थ ही (इमा ब्रह्माणि) = ये वेदोक्त ज्ञान, अन्न, धन (ऋच्यन्ते) = ऋचाओं के रूप में प्रकट होते और प्रस्तुत किये जाते हैं।
भावार्थ
भावार्थ- सदाचारी गृहस्थ स्त्री-पुरुष यज्ञ तथा वेदाध्ययन के द्वारा ज्ञान प्राप्त करके पुरुषार्थ पूर्वक ऐश्वर्य को प्राप्त करें। इस प्रकार वे धनादि व सम्मान से समृद्ध बनें ।
इंग्लिश (1)
Meaning
Ashvins, observers of truth and law in theory and practice, this yajna of adoration and liberal havi presided over by Vedic scholars and conducted with Vedic hymns for you in honour of Divinity is dedicated to the unity and victory of humanity over want and suffering. Come and join this holy programme of brilliance, peace and settlement for all. These words of song are chanted for you and radiate for you in living vibrations.
मराठी (1)
भावार्थ
हे ब्रह्मप्रतिपादक वेदप्रचारक विद्वानांनो! जो यज्ञ परमेश्वर उपासनेच्या निमित्ताने केलेला आहे. अशा यज्ञात येऊन तुम्ही त्याची शोभा वाढवा. हे आध्यात्मिक ज्ञानप्रचारक विज्ञानी देवांनो! तुम्ही आम्हाला या पवित्र यज्ञात परमात्मविषयक उपदेश करा. जो जीवनाचा एकमात्र उद्देश आहे. ॥६॥
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