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ऋग्वेद मण्डल - 7 के सूक्त 80 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 80/ मन्त्र 2
    ऋषिः - वसिष्ठः देवता - उषाः छन्दः - विराट्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    ए॒षा स्या नव्य॒मायु॒र्दधा॑ना गू॒ढ्वी तमो॒ ज्योति॑षो॒षा अ॑बोधि । अग्र॑ एति युव॒तिरह्र॑याणा॒ प्राचि॑कित॒त्सूर्यं॑ य॒ज्ञम॒ग्निम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ए॒षा । स्या । नव्य॑म् । आयुः॑ । दधा॑ना । गू॒ध्वी । तमः॑ । ज्योति॑षा॑ । उ॒षाः । अ॒बो॒धि॒ । अग्रे॑ । ए॒ति॒ । यु॒व॒तिः । अह्र॑याणा । प्र । अ॒चि॒कि॒त॒त् । सूर्य॑म् । य॒ज्ञम् । अ॒ग्निम् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    एषा स्या नव्यमायुर्दधाना गूढ्वी तमो ज्योतिषोषा अबोधि । अग्र एति युवतिरह्रयाणा प्राचिकितत्सूर्यं यज्ञमग्निम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    एषा । स्या । नव्यम् । आयुः । दधाना । गूध्वी । तमः । ज्योतिषा । उषाः । अबोधि । अग्रे । एति । युवतिः । अह्रयाणा । प्र । अचिकितत् । सूर्यम् । यज्ञम् । अग्निम् ॥ ७.८०.२

    ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 80; मन्त्र » 2
    अष्टक » 5; अध्याय » 5; वर्ग » 27; मन्त्र » 2
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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (अग्रे) सृष्टिरचनायाः प्राक् (एषा गूढ्वी) एषा परमात्मनो गुह्यशक्तिः (ज्योतिषा तमः) प्रकाशात्मकज्योतिषा तमो निरस्य (सूर्यम् यज्ञम् अग्निम्) सूर्यं यज्ञमग्निं च (प्र) सम्यक् (अचिकितत्)   रचितवती तथा (उषाः अबोधि) उषःकालं बोधयन्ती सा (अह्रयाणा युवतिः) प्रकाशवती सदा यौवनसम्पन्नेव विराजते (स्या) सा शक्तिः (नव्यम् आयुः दधाना) नूतनमायुर्धारयन्ती (एति) तस्मिन्नेव परमात्मनि लीयते ॥२॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (अग्रे) सृष्टिरचना से प्रथम (एषा गूढ्वी) यह परमात्मा की गुह्यशक्ति (ज्योतिषा तमः) प्रकाशरूप ज्योति से तम का नाश करके (सूर्यं यज्ञं अग्निं) सूर्य, यज्ञ तथा अग्नि को (प्र) भले प्रकार (अचिकितत्) रचती और (उषाः अबोधि) उषःकाल का बोधन करती हुई वह (अह्रयाणा युवतिः) प्रकाशवती सदा युवावस्थासम्पन्न रहती है, (स्या) वह शक्ति (नव्यं आयुः दधाना) नवीन आयु को धारण करती हुई (एति) उसी परमात्मा में लय हो जाती है ॥२॥

    भावार्थ

    परमात्मा की दिव्य शक्ति, जिससे सृष्टि के आदिकाल में पुनः रचना होती है, वह परमात्मा की प्रकाशरूप ज्योति से प्रथम अन्धकार का नाश करती है, क्योंकि प्रलयकाल में यह सब संसार अन्धकारमय होता है, तत्पश्चात् सूर्य्य, अग्नि और यज्ञ को रचकर उषःकाल का बोधन कराती है, जिससे सब प्रजागण परमात्मा का स्तवन करते हुए अपने कार्यों में प्रवृत्त होते हैं। परमात्मा की उस दिव्य शक्ति में कभी विकार उत्पन्न नहीं होता, वह युवावस्था को प्राप्त हुई मनुष्यों को कर्मानुसार सदा बल-बुद्धि आदि नूतन भावों को प्रदान करती रहती है और अन्त में उसी परमात्मा में लय हो जाती है ॥२॥

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    विषय

    पत्नी के गृहोचित शिष्टाचारों का वर्णन पक्षान्तर में उषा, सेना का वर्णन ।

    भावार्थ

    जिस प्रकार ( उषा ) प्रभात बेला, ( ज्योतिषा तमः ) प्रकाश अन्धकार को दूर करती ( नव्यम् आयुः दधाना ) सब प्राणियों को नया जीवन देती, जगाती, ( अग्रे ) सूर्य के आगे आती फिर सूर्य, यज्ञ और यज्ञाग्नि को प्रबुद्ध कराती है उसी प्रकार ( उषा स्या युवतिः ) वह यह युवति, वधू ( नव्यम् आयुः दधाना) अपनी नयी आयु धारण करती हुई ( ज्योतिषा ) अपनी कान्ति से ( गूढ़ीतमः ) गहरे शोक मोहादि को दूर करके (अबोधि) जागे और पति को जागृत करे । वह ( अह्रयाणा ) लज्जा वा निद्रा को त्यागकर ( युवतिः ) नवयुवति गृहिणी, (अग्रे एति) आगे आवे ( सूर्यम् ) सूर्यवत् अपने पति को ( प्राचिकितत् ) जगावे, ( यज्ञम् अग्निम् ) और बाद वही यज्ञ अर्थात् पूज्य देव परमेश्वर और अग्निहोत्र की अग्नि को भी जागृत करे ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वसिष्ठ ऋषिः ॥ उषा देवता ॥ छन्दः—१ त्रिष्टुप्। २ विराट् त्रिष्टुप्। ३ निचृत्त्रिष्टुप्॥ तृचं सूक्तम्॥

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    विषय

    नव गृहिणी का जागरण

    पदार्थ

    पदार्थ- जैसे (उषा) = प्रभात-वेला, (ज्योतिषा तमः) = प्रकाश से अन्धकार को दूर करती, (नव्यम् आयुः दधाना) = सब प्राणियों को नया जीवन देती, (अग्रे) = सूर्य के आगे आती, फिर सूर्य, यज्ञ और यज्ञाग्नि को प्रबुद्ध कराती है वैसे ही (उषा स्या युवतिः) = वह यह युवति, वधू (नव्यम् आयुः दधाना) = नयी आयु धारण करती हुई (ज्योतिषा) = कान्ति से (तमः गृव्ढी) = गहरे शोक, मोहादि को दूर करके (अबोधि) = जागे और पति को जागृत करे। वह (अह्रयाणा) = लज्जा वा प्रमाद त्यागकर (युवतिः) = नवयुवति गृहिणी, (अग्रे एति) = आगे आवे, (सूर्यम्) = सूर्यवत् अपने पति को (प्राचिकितत्) = जगावे, (यज्ञम् अग्निम्) = और बाद में वही यज्ञ अर्थात् परमेश्वर और अग्निहोत्र की अग्नि को भी जगावे।

    भावार्थ

    भावार्थ - नवयुवति गृहिणी अपने ज्ञान व कान्ति से रोग-शोक आदि को दूर करके प्रमाद रहित होकर पति से पहले जागे। फिर पति को जगावे। उसके बाद नित्य प्रति ब्रह्मयज्ञ में आत्म अग्नि तथा देवयज्ञ में भौतिक अग्नि को जागृत किया करे।

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    This is the dawn bearing and bringing new life and energy, that deep and sublime light of divinity which enlightens ignorance with knowledge and informs even darkness with light. It goes forward first before sunrise, youthful, bold, enlightened, unrestrained and free, and gives light to the sun and life to the yajna fire.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    परमात्म्याच्या दिव्यशक्तीमुळे सृष्टीच्या प्रारंभी सृजन होते. ती परमेश्वराची प्रकाशज्योती प्रथम अंधकाराचा नाश करते. कारण प्रलयकाळी हे सर्व जग अंधकारमय असते. त्यानंतर सूर्य, अग्नी व यज्ञ निर्माण करून उष:कालाचे बोधन करविते. त्यामुळे सर्व प्रजा परमेश्वराचे स्तवन करून आपल्या कार्यात प्रवृत्त होते. परमेश्वराच्या दिव्य शक्तीत कधी विकार उत्पन्न होत नाही. ती चिरतरुण असून, माणसांना कर्मानुसार सदैव बलबुद्धी इत्यादी नवीन भाव प्रदान करते व अंतिम वेळी त्याच परमात्म्यात लय पावते ॥२॥

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