Loading...
ऋग्वेद मण्डल - 7 के सूक्त 85 के मन्त्र
1 2 3 4 5
मण्डल के आधार पर मन्त्र चुनें
अष्टक के आधार पर मन्त्र चुनें
  • ऋग्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 85/ मन्त्र 4
    ऋषिः - वसिष्ठः देवता - इन्द्रावरुणौ छन्दः - आर्षीत्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    स सु॒क्रतु॑ॠत॒चिद॑स्तु॒ होता॒ य आ॑दित्य॒ शव॑सा वां॒ नम॑स्वान् । आ॒व॒वर्त॒दव॑से वां ह॒विष्मा॒नस॒दित्स सु॑वि॒ताय॒ प्रय॑स्वान् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सः । सु॒ऽक्रतुः॑ । ऋ॒त॒ऽचित् । अ॒स्तु॒ । होता॑ । यः । आ॒दि॒त्या॒ । शव॑सा । वा॒म् । नम॑स्वान् । आ॒ऽव॒वर्त॑त् । अव॑से । वा॒म् । ह॒विष्मा॑न् । अस॑त् । इत् । सः । सु॒वि॒ताय॑ । प्रय॑स्वान् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    स सुक्रतुॠतचिदस्तु होता य आदित्य शवसा वां नमस्वान् । आववर्तदवसे वां हविष्मानसदित्स सुविताय प्रयस्वान् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सः । सुऽक्रतुः । ऋतऽचित् । अस्तु । होता । यः । आदित्या । शवसा । वाम् । नमस्वान् । आऽववर्तत् । अवसे । वाम् । हविष्मान् । असत् । इत् । सः । सुविताय । प्रयस्वान् ॥ ७.८५.४

    ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 85; मन्त्र » 4
    अष्टक » 5; अध्याय » 6; वर्ग » 7; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (सः) स पुरुषः (सुक्रतुः) शुभकर्मकर्त्ता (ऋतचित्) तथा सत्यवादी (होता) च पुनः स एव यज्ञकर्ता (अस्तु) अस्तु=स्यात् (यः) यः पुरुषः (आदित्या) आदित्य इव तेजस्वी भूत्वा (शवसा) स्वसामर्थ्येन (वाम्) इन्द्रावरुणौ (नमस्वान्) लोकोत्तरतेजस्कौ नमस्करणीयौ मन्यते, तथा यः (वाम्) तावेव (अवसे) रक्षायै (आववर्तत्) आवर्तयेत् (हविष्मान्) यश्च हविर्भिर्युक्तो भवति (सः) स पुरुषः (इत्) निश्चयम् (प्रयस्वान्) ऐश्वर्यसम्पन्नो भूत्वा (सुविताय) शोभनफलप्राप्त्यै (असत्) भवतु ॥४॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (सः) वह पुरुष (सुक्रतुः) उत्तम कर्मों के करनेवाला (ऋतचित्) वही सत्यवादी (होता) वही यज्ञ करनेवाला (अस्तु) है, (यः) जो (आदित्या) आदित्य के समान तेजस्वी होकर (शवसा) अपने सामर्थ्य से (वां) इन्द्र तथा वरुण की शक्ति को (नमस्वान्) सबसे बड़ी समझता और जो (वां) इन्द्र तथा वरुण की शक्ति को (अवसे) रक्षा के लिए (आववर्तत्) वर्ताव में लाता है और जो (हविष्मान्) सदैव यज्ञादि कर्म करता है, (सः) वह (इत्) निश्चय करके (प्रयस्वान्) ऐश्वर्य्ययुक्त होकर (सुविताय) संसार में यशस्वी (असत्) होता है ॥४॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में परमात्मा उपदेश करते हैं कि हे मनुष्यों ! तुम इन्द्र=विद्युत् तथा वरुण=वायुरूप शक्ति को काम में लाओ। जो इन शक्तियों को व्यवहार में लाता है, वह ऐश्वर्य्यसम्पन्न होकर सम्पूर्ण संसार में फैलता अर्थात् उसकी अतुल कीर्ति होती है और वही पुरुष तेजस्वी बनकर अमित्र सेना का हनन करनेवाला होता है ॥४॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    इन्द्र, वरुण राजा के कर्तव्य ।

    भावार्थ

    हे ( आदित्याः ) अदिति, अखण्ड राजनीति और भूमि के हितैषी जनो ! ( यः ) जो ( होता ) दानशील पुरुष ( शवसा ) अपने बल से तुम दोनों के प्रति ( नमस्वान् ) उत्तम अन्नादि सत्कार से युक्त होता है ( सः ) वह ( सु-क्रतुः ) शुभ कर्म करने हारा और ( ऋतचित् अस्तु ) सत्य ज्ञान और पुण्य ज्ञान को उपार्जन करने वाला हो। और जो ( अवसे ) अपनी रक्षा के लिये ( वां आववर्त्तत् ) तुम दोनों को प्राप्त होता है, वह ( प्रयस्वान् ) प्रयत्नशील होकर ( सुविताय इत् आत् ) सुख प्राप्त करने में समर्थ ( हविष्मान् ) उत्तम अन्नसम्पन्न हो। इसी प्रकार जो आहुतिदाता ज्ञान और बल से अन्नवान् होकर उत्तम यज्ञ का कर्त्ता और ( ऋत-चित् ) वेद द्वारा यज्ञचयन करता है सूर्य, वायु और वेद से हविष्मान् हो उत्तम फल प्राप्त करने में समर्थ और यत्नशील होता है ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वसिष्ठ ऋषिः॥ इन्द्रावरुणौ देवते। छन्दः—१, ४ आर्षी त्रिष्टुप् । २, ३, ५ निचृत् त्रिष्टुप्॥ पञ्चर्चं सूक्तम्॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    समृद्ध राष्ट्र का निर्माण

    पदार्थ

    पदार्थ- हे (आदित्या:) = अखण्ड राजनीति और भूमि के (हितैषी) = जनो ! (यः) = जो (होता) = दानशील पुरुष (शवसा) = स्व बल से तुम दोनों के प्रति (नमस्वान्) = अन्नादि सत्कार से युक्त होता है (सः) = वह (सु-क्रतुः) = शुभ-कर्मकारी और (ऋतचित् अस्तु) = सत्य ज्ञान का उपार्जक हो और जो (अवसे) = रक्षा के लिये (वां आववर्त्तत्) = तुम दोनों को प्राप्त होता है, वह (प्रयस्वान्) = प्रयत्नशील होकर (सुविताय इत् आत्) = सुख प्राप्त करने में समर्थ, (हविष्मान्) = अन्नसम्पन्न हो ।

    भावार्थ

    भावार्थ- राष्ट्र भक्त धनी जन राष्ट्र के लिए कर के रूप में धन का दान करें तथा राष्ट्र के पालन एवं समृद्धि में सहयोगी बनें। वीर पुरुष राष्ट्र रक्षा के लिए सेना में भर्ती होकर मातृभूमि की सेवा करे। कर्मचारी लोग परिश्रम और पुरुषार्थ से कृषि एवं उद्योग को बढ़ावें ।

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Surely that individual is a good citizen of noble action, a true yajaka, dedicated to universal values of truth and law, who, of his own free will, with his power and potential and high degree of endeavour and application, turns to you, O brilliant Indra and Varuna, with sincere loyalty and homage for the sake of protection and advancement. And surely he deserves all round happiness and well being.

    इस भाष्य को एडिट करें

    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात परमात्मा उपदेश करतो, की हे माणसांनो! तुम्ही इंद्र = विद्युत व वरुण = वायुरूपशक्तीचा वापर करा. जो या शक्तींना व्यवहारात आणतो तो ऐश्वर्यसंपन्न होऊन संपूर्ण जगात प्रसृत होतो. अर्थात, त्याला अतुल कीर्ती प्राप्त होते व तोच पुरुष तेजस्वी बनून शत्रूसेनेचे हनन करतो. ॥४॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top