ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 91/ मन्त्र 2
उ॒शन्ता॑ दू॒ता न दभा॑य गो॒पा मा॒सश्च॑ पा॒थः श॒रद॑श्च पू॒र्वीः । इन्द्र॑वायू सुष्टु॒तिर्वा॑मिया॒ना मा॑र्डी॒कमी॑ट्टे सुवि॒तं च॒ नव्य॑म् ॥
स्वर सहित पद पाठउशन्ता॑ । दू॒ता । न । दभा॑य । गो॒पा । मा॒सः । च॒ । पा॒थः । श॒रदः॑ । च॒ । पू॒र्वीः । इन्द्र॑वायू॒ इति॑ । सु॒ऽस्तु॒तिः । वा॒म् । इ॒या॒ना । मा॒र्डी॒कम् । ई॒ट्टे॒ । सु॒वि॒तम् । च॒ । नव्य॑म् ॥
स्वर रहित मन्त्र
उशन्ता दूता न दभाय गोपा मासश्च पाथः शरदश्च पूर्वीः । इन्द्रवायू सुष्टुतिर्वामियाना मार्डीकमीट्टे सुवितं च नव्यम् ॥
स्वर रहित पद पाठउशन्ता । दूता । न । दभाय । गोपा । मासः । च । पाथः । शरदः । च । पूर्वीः । इन्द्रवायू इति । सुऽस्तुतिः । वाम् । इयाना । मार्डीकम् । ईट्टे । सुवितम् । च । नव्यम् ॥ ७.९१.२
ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 91; मन्त्र » 2
अष्टक » 5; अध्याय » 6; वर्ग » 13; मन्त्र » 2
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अष्टक » 5; अध्याय » 6; वर्ग » 13; मन्त्र » 2
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(इन्द्रवायू) हे कर्मज्ञानयोगसम्पन्ना विद्वांसः ! (उशन्ता) अस्मत्कल्याणं वाञ्छन्तः (दूता) शुभमार्गस्य दर्शितारः (न) इव (दभाय) अस्मत्कल्याणाय (गोपाः) नो रक्षका भवन्तो भवन्तु (शरदश्च पूर्वीः) बहूनि वर्षाणि यावत् (पाथः) अस्मत्सन्मार्गं (मासश्च) शुभसमयं च रक्षन्तु (सुस्तुभिः) अस्मत्कृता शोभनस्तुतिः (वाम्) युष्मान् (इयाना) प्राप्नुवती सती (मार्डीकम्) सुखं (ईट्टे) प्रार्थयते (च) तथा च (नव्यम्) नूतनं (सुवितम्) सुष्ठु प्राप्यं धनं च याचते ॥२॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(इन्द्रवायू) हे कर्मयोग और ज्ञानयोगसम्पन्न विद्वानों ! (उशन्ता) आप हमारे कल्याण की इच्छा करते हुए (दूता) शुभ मार्ग दिखलानेवाले दर्शक के (न) समान (दभाय) हमारे कल्याण के लिये (गोपाः) आप हमारे रक्षक बनें (शरदश्च, पूर्वीः) और अनन्त काल तक (पाथः) हमारे शुभ मार्ग की ओर (मासश्च) शुभ समयों की आप रक्षा करें, (सुस्तुतिः) हमारी स्तुति (वाम्) आप लोगों को (इयाना) प्राप्त होती हुई (मार्डीकम्) सुख की (ईट्टे) याचना करती है (च) और (नव्यं) नवीन (सुवितं) धन की याचना करती है ॥२॥
भावार्थ
परमात्मा उपदेश करते हैं कि जो लोग कर्मयोगी और ज्ञानयोगी विद्वानों को अपना नेता बनाते हैं, वे सुख को प्राप्त होते हैं और उनको नवीन से नवीन धनादि वस्तुओं की सदैव प्राप्ति होती है ॥२॥
विषय
बलवानों के कर्त्तव्य ।
भावार्थ
( उशन्ता ) सब को चाहने वाले ( दूता ) शत्रुओं को सन्तप्त करने वाले, ( गोपा ) प्रजा के रक्षक, ( इन्द्रवायू ) ऐश्वर्यवान् बलवान् पुरुष ( मासः च शरदः च ) वर्षों और मासों तक ( पूर्वी: ) पूर्व विद्यमान ( पाथः ) प्रजा की रक्षा करें । हे ( इन्द्र-वायू ) ऐश्वर्यवन् ! हे बलवन् ! (वाम् इयाना) आप दोनों को प्राप्त होता हुआ, ( सुस्तुतिः ) उत्तम उपदेश ( मार्डीकम् ) सुख और ( सुवितं ) उत्तम और (नव्यम्) स्युत्य आचार ( इट्टे ) चाहता है ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वसिष्ठ ऋषिः ॥ १, ३ वायुः । २, ४–७ इन्द्रवायू देवते। छन्दः—१, ४,७ विराट् त्रिष्टुप् । २, ५, ६ आर्षी त्रिष्टुप् ॥ ३ निचृत् त्रिष्टुप् ॥ सप्तर्चं सूक्तम् ॥
विषय
राजा व सेनापति का कर्त्तव्य
पदार्थ
पदार्थ- (उशन्ता) = सबको चाहनेवाले (दूता) = शत्रु सन्तापक, (गोपा) = प्रजा- रक्षक, (इन्द्रवायू) = ऐश्वर्यवान्, बलवान् पुरुष (मासः च शरदः च) = वर्षों और मासों तक (पूर्वी:) = पूर्व विद्यमान प्रजा की (पाथः) = रक्षा करें। हे (इन्द्र-वायू) = ऐश्वर्यवन्! हे बलवन् ! (वाम् इयाना) = आप दोनों को प्राप्त होता हुआ, (सुस्तुतिः) = उत्तम उपदेश (मार्डीकम्) = सुख और (सुवितं) = उत्तम, (नव्यम्) = स्तुत्य आचार (ईट्टे) = चाहता है।
भावार्थ
भावार्थ- राजा और सेनापति दोनों प्रजा की अच्छी प्रकार से रक्षा करें तथा शत्रु को नष्ट करें। इससे राष्ट्र में विद्वान् लोग ज्ञान का उपदेश देकर प्रजाओं को धर्म कार्य में लगा सकेंगे।
इंग्लिश (1)
Meaning
Indra and Vayu, leaders of power and vibrancy of passion motivated like prophets, you are not for oppression but for the defeat of oppression. You are protectors of humanity and pioneers over paths of progress for many many months, seasons and years. O harbingers of power and progress, our song of adoration addressed to you seeks compassion and prays for a new rise in wealth and well being.
मराठी (1)
भावार्थ
परमात्मा उपदेश करतो, की जे लोक कर्मयोगी व ज्ञानयोगी विद्वानांना आपला नेता बनवितात त्यांना सुख मिळते व धन इत्यादी नवनवीन वस्तूंची सदैव प्राप्ती होते. ॥२॥
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