ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 93/ मन्त्र 2
ता सा॑न॒सी श॑वसाना॒ हि भू॒तं सा॑कं॒वृधा॒ शव॑सा शूशु॒वांसा॑ । क्षय॑न्तौ रा॒यो यव॑सस्य॒ भूरे॑: पृ॒ङ्क्तं वाज॑स्य॒ स्थवि॑रस्य॒ घृष्वे॑: ॥
स्वर सहित पद पाठता । सा॒न॒सी इति॑ । श॒व॒सा॒ना॒ । हि । भू॒तम् । सा॒क॒म्ऽवृधा॑ । शव॑सा । शू॒शु॒ऽवांसा॑ । क्षय॑न्तौ । रा॒यः । यव॑सस्य । भूरेः॑ । पृ॒ङ्क्तम् । वाज॑स्य । स्थवि॑रस्य । घृष्वेः॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
ता सानसी शवसाना हि भूतं साकंवृधा शवसा शूशुवांसा । क्षयन्तौ रायो यवसस्य भूरे: पृङ्क्तं वाजस्य स्थविरस्य घृष्वे: ॥
स्वर रहित पद पाठता । सानसी इति । शवसाना । हि । भूतम् । साकम्ऽवृधा । शवसा । शूशुऽवांसा । क्षयन्तौ । रायः । यवसस्य । भूरेः । पृङ्क्तम् । वाजस्य । स्थविरस्य । घृष्वेः ॥ ७.९३.२
ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 93; मन्त्र » 2
अष्टक » 5; अध्याय » 6; वर्ग » 15; मन्त्र » 2
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अष्टक » 5; अध्याय » 6; वर्ग » 15; मन्त्र » 2
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(हि) यतः (ता, सानसी) तादृशौ भवन्तौ सर्वैर्भजनीयौ स्तः (शवसाना, भूतम्) ज्ञानबलेन विराजन्तौ च (साकंवृधा) स्वाभाविकबलोपपन्नौ च (शूशुवांसा) ज्ञानवृद्धौ (भूरेः, रायः) भूरिधनस्य (यवसस्य) ऐश्वर्यस्य च (क्षयन्तौ) निवासौ स्तः (स्थविरस्य) परिपक्वज्ञानस्य (वाजस्य) यद्बलं तस्येश्वरौ स्तः (घृष्वेः) शत्रून् घर्षयितुं (पृङ्क्तम्) नियुज्येते भवन्तौ ॥२॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(हि) क्योंकि आप (सानसी) प्रत्येक पुरुष के सत्सङ्ग करने योग्य हैं और (शवसाना) ज्ञान-विज्ञान की विद्या के बल से सुशोभित (भूतं) हो और (साकंवृधा) स्वाभाविक बलवाले हो, (शूशुवांसा) ज्ञानवृद्ध हो, (भूरेः रायः) बहुत धन और (यवसस्य) ऐश्वर्य्य के (क्षयन्तौ) ईश्वर हो, (स्थविरस्य) परिपक्क ज्ञान का जो (वाजस्य) बल है, उसके स्वामी हो, (घृष्वेः) अन्यायकारी दुष्टों के दमन के लिये (पृङ्क्तम्) आकर आप हमारे यज्ञ को भोगो ॥२॥
भावार्थ
यजमानों को चाहिये कि वे अपने भौतिक तथा आध्यात्मिक यज्ञों में अनुभवी विद्वानों को बुला कर उनसे शिक्षा ग्रहण करें और उनसे ज्ञान और विज्ञान की विद्याओं का काम करायें। यज्ञ का वास्तव में यही फल है कि उससे ज्ञान तथा विज्ञान की वृद्धि हो तथा विद्वानों की सत्सङ्गति और उनका सत्कार हो ॥२॥
विषय
इन्द्र-अग्नि माता-पितृवत् ऐश्वर्यवान् और ज्ञानीजनों के कर्त्तव्य ।
भावार्थ
( ता ) वे दोनों ( सानसी ) सब से सेवा करने योग्य, सब के शरणीय, सब के दान देने वाले और ( शवसाना ) बलपूर्वक ऐश्वर्य का भोग करने वाले, ( साकं-बृधा ) एक साथ वृद्धि को प्राप्त और ( शवसा ) बल से ( शुशुवांसा ) बढ़ते ( भूतम् ) रहो । और ( भूरेः यवसस्य ) बहुत से अन्न और ( राय: ) दान देने योग्य धन पर ( क्षयन्तौ ) ऐश्वर्य, प्रभुत्व करते हुए ( भूरेः ) बहुत बड़े ( स्थविरस्य ) चिरस्थायी ( घृष्वे: ) शत्रुनाशक ( वाजस्य ) बल, सैन्य को ( पृक्तम् ) अपने साथ मिलाये रक्खो ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वसिष्ठ ऋषिः ॥ इन्द्राग्नी देवते ।। छन्दः –१, ८ निचृत् त्रिष्टुप् । २,५ आर्षी त्रिष्टुप् । ३, ४, ६, ७ विराट् त्रिष्टुप् ॥ अष्टर्चं सूक्तम् ॥
विषय
राष्ट्र की समृद्धि
पदार्थ
पदार्थ - (ता) = वे दोनों (सानसी) = सेवा योग्य, दानदाता और (शवसाना) = बलपूर्वक ऐश्वर्य भोगनेवाले, (साकं-वृधा) = एक साथ वृद्धि को प्राप्त और (शवसा) = बल से (शूशुवांसा भूतम्) = बढ़ते रहें और (भूरेः यवसस्य) = बहुत से अन्न और (रायः) = दान-योग्य धन पर (क्षयन्तौ) = प्रभुत्व करते हुए (भूरे:) = बहुत बड़े (स्थविरस्य) = चिरस्थायी (घृष्वे:) = शत्रुनाशक (वाजस्य) = बल को (पृक्तम्) = साथ मिलाये रक्खो।
भावार्थ
भावार्थ- राष्ट्र को समृद्ध व सुदृढ़ बनाने के लिए सेवा करनेवाले, दान देनेवाले तथा ऐश्वर्य भोगनेवाले सभी जन राष्ट्र में वृद्धि को प्राप्त करें। राजा व सेनानायक पड़ौसी राष्ट्रों के साथ मित्रता बनाकर युद्ध काल व आपातकाल के लिए उनके बल को अपने साथ मिलावें।
इंग्लिश (1)
Meaning
Universally adored and victorious, you rise together, mighty with force and power. You command treasures of boundless wealth and grandeur. Pray grant us abundance of stable strength, sustenance and inviolable power for success and victory.
मराठी (1)
भावार्थ
यजमानांनी आपल्या भौतिक व आध्यात्मिक यज्ञात अनुभवी विद्वानांना आमंत्रित करून त्यांच्याकडून शिक्षण ग्रहण करावे व त्यांच्याकडून ज्ञान विज्ञानाचे काम करवून घ्यावे. यज्ञाचे वास्तविक फळ हेच आहे, की त्यापासून ज्ञान-विज्ञानाची वृद्धी व्हावी. विद्वानांची सत्संगती व त्यांचा सत्कार व्हावा. ॥२॥
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