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ऋग्वेद मण्डल - 7 के सूक्त 97 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 97/ मन्त्र 10
    ऋषिः - वसिष्ठः देवता - इन्द्राबृहस्पती छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    बृह॑स्पते यु॒वमिन्द्र॑श्च॒ वस्वो॑ दि॒व्यस्ये॑शाथे उ॒त पार्थि॑वस्य । ध॒त्तं र॒यिं स्तु॑व॒ते की॒रये॑ चिद्यू॒यं पा॑त स्व॒स्तिभि॒: सदा॑ नः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    बृह॑स्पते । यु॒वम् । इन्द्रः॑ । च॒ । वस्वः॑ । दि॒व्यस्य॑ । ई॒शा॒थे॒ इति॑ । उ॒त । पार्थि॑वस्य । ध॒त्तम् । र॒यिम् । स्तु॒व॒ते । की॒रये॑ । चि॒त् । यू॒यम् । पा॒त॒ । स्व॒स्तिऽभिः॑ । सदा॑ । नः॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    बृहस्पते युवमिन्द्रश्च वस्वो दिव्यस्येशाथे उत पार्थिवस्य । धत्तं रयिं स्तुवते कीरये चिद्यूयं पात स्वस्तिभि: सदा नः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    बृहस्पते । युवम् । इन्द्रः । च । वस्वः । दिव्यस्य । ईशाथे इति । उत । पार्थिवस्य । धत्तम् । रयिम् । स्तुवते । कीरये । चित् । यूयम् । पात । स्वस्तिऽभिः । सदा । नः ॥ ७.९७.१०

    ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 97; मन्त्र » 10
    अष्टक » 5; अध्याय » 6; वर्ग » 22; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ परमात्मानं स्तुवन् सुक्तमुपसंहरति।

    पदार्थः

    (बृहस्पते) हे सर्वस्वामिन् ! (यूवम्) भवान् (इन्द्रः) परमैश्वर्यवानस्ति (दिव्यस्य, उत, पार्थिवस्य) द्युलोकजस्य पृथिवीलोकजस्य च (वस्वः) रत्नस्य (ईशाथे, च) ईश्वरो हि, (स्तुवते, कीरये) अतः व्ययार्थं स्वस्तोतृभ्यः (रयिम्, धत्तम्) विविधधनं वितरतु (चित्) निश्चयं (यूयम्) भवान् (स्वस्तिभिः) स्वस्तिवाग्भिः (सदा) शश्वत् (नः) अस्मान् (पात) रक्षतु ॥१०॥ इति सप्तनवतितमं सूक्तं द्वाविंशो वर्गश्च समाप्तः ॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    अब उक्त बृहस्पति परमात्मा की प्रार्थना द्वारा इस सूक्त का उपसंहार कहते हैं।

    पदार्थ

    (बृहस्पते) हे सबके स्वामी परमेश्वर ! (युवम्) आप (इन्द्रः) परमैश्वर्यसम्पन्न हैं (च) और (दिव्यस्य, उत, पार्थिवस्य) द्युलोक और पृथिवीलोक में होनेवाले (वस्यः) रत्नों को (ईशाथे) ईश्वर अर्थात् देनेवाले हैं। इसमें (स्तुवते) स्तुति करनेवाले अपने भक्त को (रयिम्) धन (धत्तम्) दीजिये (चित्) और (यूयम्) आप (स्वस्तिभिः) मङ्गलवाणियों से (सदा) सर्वदा (नः) हमारी (पात) रक्षा करें ॥१०॥

    भावार्थ

    परमात्मा उपदेश करते हैं कि हे पुरुषो ! तुम उस बृहस्पति सर्वोपरि ब्रह्म की उपासना करो, जिसने द्युलोक और पृथिवीलोक के सब ऐश्वर्यों को उत्पन्न किया है और उसी से सब प्रकार के धन और ऐश्वर्यों की प्रार्थना करते हुए कहो कि हे परमात्मा ! आप मङ्गलवाणियों से हमारी सदैव रक्षा करें ॥१०॥ यह ९७वाँ सूक्त और २२वाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥

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    विषय

    बृहस्पति प्रभु ।

    भावार्थ

    हे ( बृहस्पते ) महान् विश्व के पालक ! हे ( इन्द्रः च ) जीवात्मन् ! ( युवम् ) आप दोनों, ( दिव्यस्य उत पार्थिवस्य वस्वः ) आकाश और भूमि के समस्त ऐश्वर्यों के ( ईशाथे ) प्रभु हो । आप दोनों ( स्तुवते कीरये चित् ) स्तुतिशील, विद्वान् को ( रयिं धत्तम् ) ऐश्वर्य प्रदान करो । हे विद्वान् जनो ! (यूयं स्वस्तिभिः नः सदा पात) आप लोग हमारी सदा कल्याणकारी आशिषों और उपायों से रक्षा करो। इति द्वाविंशो वर्गः॥

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वसिष्ठ ऋषिः॥ १ इन्द्रः। २,४—८ बृहस्पतिः। ३,९ इन्द्राब्रह्मणस्पती। १० इन्द्राबृहस्पती देवते। छन्दः—१ आर्षी त्रिष्टुप्। २, ४, ७ विराट् त्रिष्टुप्। ३, ५, ६, ८, ९, १० निचृत् त्रिष्टुप्॥ दशर्चं सूक्तम्॥

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    विषय

    ईश का ऐश्वर्य

    पदार्थ

    पदार्थ- हे (बृहस्पते) = महान् (विश्व) = पालक ! हे (इन्द्रः च) = जीवात्मन् ! (युवम्) = आप दोनों, (दिव्यस्य उत पाथिवस्य वस्वः) = आकाश और भूमि के समस्त ऐश्वर्यों के (ईशाथे) = प्रभु हो । आप दोनों (स्तुवते कीरये चित्) = स्तुतिशील विद्वान् को (रयिं धत्तम्) = ऐश्वर्य दो । हे विद्वान् जनो ! (यूयं स्वस्तभिः न सदा पात) = आप सदा ही उत्तम साधनों से हमारी रक्षा करो।

    भावार्थ

    भावार्थ- ईश्वर उपासक पुरुष सृष्टि के रहस्यों को जानकर अन्यों को भी ईश्वर प्राप्ति तथा सृष्टि के रहस्यों को जानने की प्रेरणा देते हैं। अगले सूक्त का ऋषि वसिष्ठ और देवता इन्द्र, इन्द्राबृहस्पती हैं ।

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Brhaspati, lord of this vast universe, and Indra, you are lords omnipotent of the glory and majesty of the world, you rule and order the light of heaven and the wealths of the earth. Pray bear and bring the light of divinity and wealth of the world to bless the celebrant and the worshipper. O lords and divinities of nature and humanity, protect and promote us with all modes and means of peace, prosperity and excellence all ways all time.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    परमात्मा उपदेश करतो, की हे पुरुषांनो! तुम्ही त्या बृहस्पती सर्वोत्कृष्ट ब्रह्माची उपासना करा, ज्याने द्युलोक व पृथ्वी लोकाचे सर्व ऐश्वर्य उत्पन्न केलेले आहे. त्यालाच सर्व प्रकारचे धन व ऐश्वर्याची प्रार्थना करीत म्हटले आहे, की हे परमात्मा! तू मंगल वाणीने आमचे सदैव रक्षण कर. ॥१०॥

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