ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 1/ मन्त्र 3
ऋषिः - मधुच्छन्दाः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - निचृद्गायत्री
स्वरः - षड्जः
व॒रि॒वो॒धात॑मो भव॒ मंहि॑ष्ठो वृत्र॒हन्त॑मः । पर्षि॒ राधो॑ म॒घोना॑म् ॥
स्वर सहित पद पाठव॒रि॒वः॒ऽधात॑मः । भ॒व॒ । मंहि॑ष्ठः । वृ॒त्र॒हन्ऽत॑मः । पर्षि॑ । राधः॑ । म॒घोना॑म् ॥
स्वर रहित मन्त्र
वरिवोधातमो भव मंहिष्ठो वृत्रहन्तमः । पर्षि राधो मघोनाम् ॥
स्वर रहित पद पाठवरिवःऽधातमः । भव । मंहिष्ठः । वृत्रहन्ऽतमः । पर्षि । राधः । मघोनाम् ॥ ९.१.३
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 1; मन्त्र » 3
अष्टक » 6; अध्याय » 7; वर्ग » 16; मन्त्र » 3
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अष्टक » 6; अध्याय » 7; वर्ग » 16; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
हे परमात्मन् ! त्वं (वरिवोधातमः) समस्तधनानां दाता (भव) भव, ‘वरिव इति धननामसु पठितम्’ निघण्टौ ॥२।१०॥ (मंहिष्ठः) सर्वोपरि दाता भव (वृत्रहन्तमः) निखिलज्ञानानां नाशको भव किञ्च (मघोनाम्) सर्वैश्वर्य्यपूरकम् (राधः) धनम् (पर्षि) अस्मभ्यं देहि ॥३॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(वरिवोधातमः) हे परमात्मन् ! आप सम्पूर्ण धनों के देनेवाले (भव) हो। ‘वरिव इति धननामसु पठितम्’ नि २।१०। (मंहिष्ठः) सर्वोपरि दाता हो (वृत्रहन्तमः) सब प्रकार के अज्ञानों के नाशक हो (मघोनाम्) सब प्रकार के ऐश्वर्य्यों के पूर्ण करनेवाले हो (राधः) धनों को (पर्षि) हमको दें ॥३॥
भावार्थ
परमात्मा से सब ऐश्वर्य्यों की प्राप्ति होती है और परमात्मा ही अज्ञान से बचाकर मनुष्य को सन्मार्ग में ले जाता है, इसलिये सर्वोपरि देव परमात्मा से ऐश्वर्य की प्रार्थना करनी चाहिये ॥३॥
विषय
'वरिवोधातम' सोम
पदार्थ
[१] हे सोम ! तू रक्षित हुआ हुआ शरीर में (वरिवोधातमः) = अधिक से अधिक वरणीय वसुओं [धनों] का धारण करनेवाला भव हो । (मंहिष्ठ:) = दातृतम हो, हमें दान की वृत्तिवाला बना । सोम-रक्षण करनेवाला पुरुष उदार बनता है । (वृत्रहन्तमः) = तू वासनाओं का अधिक से अधिक विनाशक हो। [२] हे सोम ! तू ही (मघोनाम्) = इन पापशून्य ऐश्वर्यवालों के [मा-अघ] (राधः) = कार्यसाधक ऐश्वर्य को (पर्षि) = प्राप्त करानेवाला हो । सोमरक्षण से वासना विनष्ट होती है, शक्ति का वर्धन होता है। इस प्रकार मनुष्य आवश्यक ऐश्वर्यों को प्राप्त करनेवाला बनता है, पर उन ऐश्वर्यों को वह सुपथ से ही कमाता है ।
भावार्थ
भावार्थ - रक्षित हुआ हुआ सोम हमें उदार वृत्तिवाला बनाता है। तब वासनामय जीवनवाले न होने से हम सुपथ से ही धन कमाते हैं ।
विषय
सोम के कर्त्तव्य ।
भावार्थ
तू (वरिवः-धातमः) श्रेष्ठ ऐश्वर्य को धारण करने वाला, (मंहिष्ठः) उत्तम दाता और (वृत्रहन्-तमः) अज्ञान, शत्रु, रोगादि का उत्तम नाशक (भव) हो। तू (मघोनाम्) धन सम्पन्नों को (राधः पर्षि) धन प्रदान करता है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अथातः पावमानसौम्यं नवमं मण्डलम्॥ मधुच्छन्दा ऋषिः। पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:—१, २, ६ गायत्री। ३, ७– १० निचृद् गायत्री। ४, ५ विराड् गायत्री॥ दशर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Be the highest giver of the cherished wealth of life, mightiest munificent, and the destroyer of want, suffering and darkness. Sanctify the wealth of the prosperous and powerful with showers of peace, purity and generosity.
मराठी (1)
भावार्थ
परमेश्वराकडून सर्व ऐश्वर्याची प्राप्ती होते व परमेश्वरच अज्ञानापासून वाचवून माणसाला सन्मार्गाकडे घेऊन जातो. त्यासाठी परमेश्वराची प्रार्थना केली पाहिजे कारण तो सर्वश्रेष्ठ देव आहे. ॥३॥
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