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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 105 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 105/ मन्त्र 2
    ऋषिः - पर्वतनारदौ देवता - पवमानः सोमः छन्दः - उष्णिक् स्वरः - ऋषभः

    सं व॒त्स इ॑व मा॒तृभि॒रिन्दु॑र्हिन्वा॒नो अ॑ज्यते । दे॒वा॒वीर्मदो॑ म॒तिभि॒: परि॑ष्कृतः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सम् । व॒त्सःऽइ॑व । मा॒तृऽभिः॑ । इन्दुः॑ । हि॒न्वा॒नः । अ॒ज्य॒ते॒ । दे॒व॒ऽअ॒वीः । मदः॑ । म॒तिऽभिः॑ । परि॑ऽकृतः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सं वत्स इव मातृभिरिन्दुर्हिन्वानो अज्यते । देवावीर्मदो मतिभि: परिष्कृतः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सम् । वत्सःऽइव । मातृऽभिः । इन्दुः । हिन्वानः । अज्यते । देवऽअवीः । मदः । मतिऽभिः । परिऽकृतः ॥ ९.१०५.२

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 105; मन्त्र » 2
    अष्टक » 7; अध्याय » 5; वर्ग » 8; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (देवावीः) देवानां रक्षकः (इन्दुः)  प्रकाशमयः  परमात्मा (हिन्वानः)उपास्यमानः (मतिभिः) चित्तवृत्तिभिः (समज्यते) उपास्यते। सः(मदः,वत्सः, इव)  परमानन्द इव  (मतिभिः)  ज्ञानेन्द्रियैः  (परिष्कृतः) संस्कृतः सन् ध्यानविषयो भवति ॥२॥

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    हिन्दी (4)

    पदार्थ

    (देवावीः) देवताओं का रक्षक (इन्दुः) प्रकाशस्वरूप परमात्मा (हिन्वानः) उपास्यमान (मतिभिः) चित्तवृत्तियों द्वारा (समज्यते) उपासन किया जाता है। वह (मदः, वत्स, इव) परमानन्द के समान (मातृभिः) ज्ञानेन्द्रियों द्वारा (परिष्कृतः) परिष्कार को प्राप्त ध्यान का विषय होता है ॥२॥

    भावार्थ

    जो लोग अपनी चित्तवृत्तियों को निर्मल करके उस परमात्मा का ध्यान करते हैं, परमात्मा अवश्यमेव उनके ध्यान का विषय होता है ॥२॥

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    विषय

    उपासना से अलौकिक शक्तियों की प्राप्ति

    शब्दार्थ

    (इव) जिस प्रकार (मातृभिः) अपनी माता से (हिन्वानः) प्रेरित, परिवर्धित और पालित (वत्स) बछड़ा (अज्यते) सम्यक् प्रकार कान्तिमान् बनता है उसी प्रकार (देवावीः) इन्द्रियों का संयम करनेवाला (मदः) सदा प्रसन्न रहनेवाला (मतिभि: परिष्कृतः) सत्कर्मो, सद्विचारों द्वारा सुशोभित, अथवा विद्वानों द्वारा सुशोभित और विद्या आदि अलंकारों से विभूषित (इन्दुः) परमेश्वरोपासक भी साधन के पथ में चलता हुआ अलौकिक शक्तियों से युक्त हो जाता है ।

    भावार्थ

    बछड़ा माता का दुग्धपान करते हुए अपनी माता का स्नेह और प्यार प्राप्त करता है। माता निःस्वार्थ भाव से उसका पालन और पोषण करती है। परिणाम क्या होता है ? बछड़ा कुछ ही समय में कान्तिसम्पन्न बन जाता है, देखने योग्य हो जाता है। इसी प्रकार - १. इन्द्रियों को वश में रखनेवाला, इन्द्रियों की संयम करनेवाला, २. दुःख में, शोक में, आपत्तियों और विपत्तियों में, कष्टों और क्लेशों में सदा प्रसन्न रहनेवाला । ३. सत्कर्म करनेवाला, सद्विचार रखनेवाला और विद्वानों द्वारा विद्या आदि शुभ गुणों से युक्त उपासक जब साधना करता हुआ ईश्वर की ओर बढ़ता है तो वह अलौकिक शक्तियों से युक्त हो जाता है।

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    विषय

    मतिभिः परिष्कृतः

    पदार्थ

    (वत्सः) = बछड़ा (इव) = जैसे (मातृभिः) = गौ के साथ (समज्यते) = संगत होता है, इसी प्रकार यह (इन्दुः) = हमें शक्तिशाली बनानेवाला सोम (हिन्वानः) = अन्दर प्रेरित किया जाता हुआ (मातृभिः) = वेदवाणीरूप माताओं के साथ संगत होता है। इस प्रकार सुरक्षित सोम ज्ञानवृद्धि का कारण बनता है । (देवावी:) = यह दिव्य गुणों का रक्षक है। (मदः) = उल्लास का जनक है। (मतिभिः) = मननपूर्वक की गई स्तुतियों से (परिष्कृतः) = यह परिष्कृत व निर्मल हो जाता है। प्रभु स्तवन ही हमें वासनारूप मल से बचाता है।

    भावार्थ

    भावार्थ - प्रभु स्तवन द्वारा सोम सुरक्षित रहता है। सुरक्षित सोम ज्ञानवृद्धि का कारण बनता है ।

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    विषय

    वाणियों से ज्ञान द्वारा प्रभु का साक्षात्‌कार।

    भावार्थ

    (मातृभिः वत्सः इव) माताओं द्वारा जिस प्रकार बच्चा (हिन्वानः सम् अज्यते) पालित पोषित होकर उत्तम रूप और गुणों से प्रकट होता है उसी प्रकार (देवावीः) देवों, सूर्यादि लोकों, विद्वानों, प्राणों और मनुष्यों के रक्षक उन में व्यापक और उन में स्नेही, (मदः) आनन्दमय (इन्दुः) तेजोमय प्रभु भी (मतिभिः परिष्कृतः) स्तुतियों, विद्वान् जनों द्वारा अलंकृत, वर्णित, सुभूषित (सम् अज्यते) भली प्रकार व्यक्त, प्रकट होता है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषी पर्वतनारदौ॥ पवमानः सोमो देवता॥ छन्दः- १, २ उष्णिक्। ३, ४, ६ निचृदुष्णिक्। ५ विराडुष्णिक्॥ षडृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Holily is Soma, brilliant presence of beauty, peace and power of divinity, protector of sages, ecstasy of life, realised in the essence, and, adorned by devotees as a darling presence, it is invoked and worshipped with creative acts of meditation by the celebrants.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जे लोक आपल्या चित्तवृत्तींना निर्मळ करून त्या परमेश्वराचे ध्यान करतात परमेश्वर त्यांच्या ध्यानाचा विषय अवश्य असतो. ॥२॥

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