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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 105 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 105/ मन्त्र 3
    ऋषिः - पर्वतनारदौ देवता - पवमानः सोमः छन्दः - निचृदुष्णिक् स्वरः - ऋषभः

    अ॒यं दक्षा॑य॒ साध॑नो॒ऽयं शर्धा॑य वी॒तये॑ । अ॒यं दे॒वेभ्यो॒ मधु॑मत्तमः सु॒तः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒यम् । दक्षा॑य । साध॑नः । अ॒यम् । शर्धा॑य । वी॒तये॑ । अ॒यम् । दे॒वेभ्यः॑ । मधु॑मत्ऽतमः । सु॒तः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अयं दक्षाय साधनोऽयं शर्धाय वीतये । अयं देवेभ्यो मधुमत्तमः सुतः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अयम् । दक्षाय । साधनः । अयम् । शर्धाय । वीतये । अयम् । देवेभ्यः । मधुमत्ऽतमः । सुतः ॥ ९.१०५.३

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 105; मन्त्र » 3
    अष्टक » 7; अध्याय » 5; वर्ग » 8; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (अयम्)  अयं  परमात्मा  (दक्षाय, साधनः)  चातुर्य्यस्यैकमात्र- साधनोऽस्ति (अयम्) अयञ्च (शर्धाय) बलाय (वीतये) तृप्तये च (मधुमत्तमः)आनन्दमयः (अयं) अयञ्च (देवेभ्यः)  विद्वद्भ्यः (सुतः) अभि-व्यक्तोऽस्ति ॥३॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (अयम्) वह परमात्मा जो (दक्षाय, साधनः) चातुर्य का एकमात्र साधन है, (अयम्) वह (शर्धाय) बल के लिये (मधुमत्तमः) आनन्दमय है, (अयम्) वह (देवेभ्यः) विद्वानों के लिये (सुतः) अभिव्यक्त है ॥३॥

    भावार्थ

    सब प्रकार की नीति का साधन एकमात्र परमात्मा है। जो विद्वान् नीतिनिपुण होना चाहते हैं, वे भी एकमात्र परमात्मा की शरण लें ॥३॥

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    विषय

    मधुमत्तमः

    पदार्थ

    (अयम्) = यह सोम (दक्षाय) = सब प्रकार की उन्नति के लिये (साधनः) = साधन बनता है । (अयम्) = यह (शर्धाय) = रोगकृमि रूप शत्रुओं के संहार के लिये होता है, (वीतये) = यह आसुरभावों के ध्वंस के लिये होता है [वी असने] (सुतः) = उत्पन्न हुआ हुआ यह सोम (देवेभ्यः) = देववृत्ति के पुरुषों के लिये (मधुमत्तमः) = अतिशयेन माधुर्य को प्राप्त करानेवाला होता है।

    भावार्थ

    भावार्थ- सुरक्षित सोम 'उन्नति का साधन' है, शत्रुओं के संहार के लिये होता है, आसुरभावों को दूर करता है, अतिशयेन माधुर्य को प्राप्त कराता है।

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    विषय

    उपासित प्रभु सुख देता है।

    भावार्थ

    (अयं दक्षाय साधनः) वह बल, और उत्साह का बढ़ाने और वश करने वाला है। (अयंः शर्धाय) वह बल और कार्य करने और (वीतये) व्यापने, और प्रकाश करने के लिये समर्थ है। (सुतः) उपासित होकर (अयं देवेभ्यः) यह दिव्य गुण वाले विद्वानों और इच्छावान् जनों के लिये (मधुमत्-तमः) अति मधुर सुख देने वाला है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषी पर्वतनारदौ॥ पवमानः सोमो देवता॥ छन्दः- १, २ उष्णिक्। ३, ४, ६ निचृदुष्णिक्। ५ विराडुष्णिक्॥ षडृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    This is the means to efficiency for perfection, this is for strength and success for fulfilment, and when it is realised, it is the sweetest, most honeyed experience for the divines.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    सर्व प्रकारच्या नीतीचे साधन एकमेव परमात्मा आहे. जे विद्वान नीतिनिपुण होऊ इच्छितात त्यांनी एकमेव परमात्म्याला शरण जावे. ॥३॥

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