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ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 112/ मन्त्र 4
अश्वो॒ वोळ्हा॑ सु॒खं रथं॑ हस॒नामु॑पम॒न्त्रिण॑: । शेपो॒ रोम॑ण्वन्तौ भे॒दौ वारिन्म॒ण्डूक॑ इच्छ॒तीन्द्रा॑येन्दो॒ परि॑ स्रव ॥
स्वर सहित पद पाठअश्वः॑ । वोळ्हा॑ । सु॒खम् । रथ॑म् । ह॒स॒नाम् । उ॒प॒ऽम॒न्त्रिणः॑ । शेपः॑ । रोम॑ण्ऽवन्तौ । भे॒दौ । वाः । इत् । म॒ण्डूकः॑ । इ॒च्छ॒ति॒ । इन्द्रा॑य । इ॒न्दो॒ इति॑ । परि॑ । स्र॒व॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
अश्वो वोळ्हा सुखं रथं हसनामुपमन्त्रिण: । शेपो रोमण्वन्तौ भेदौ वारिन्मण्डूक इच्छतीन्द्रायेन्दो परि स्रव ॥
स्वर रहित पद पाठअश्वः । वोळ्हा । सुखम् । रथम् । हसनाम् । उपऽमन्त्रिणः । शेपः । रोमण्ऽवन्तौ । भेदौ । वाः । इत् । मण्डूकः । इच्छति । इन्द्राय । इन्दो इति । परि । स्रव ॥ ९.११२.४
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 112; मन्त्र » 4
अष्टक » 7; अध्याय » 5; वर्ग » 25; मन्त्र » 4
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अष्टक » 7; अध्याय » 5; वर्ग » 25; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(अश्वः) क्षणेन सर्वत्र व्यापनादश्वो विद्युत् (वोळ्हा) सर्वपदार्थ- प्रापयिता (सुखं) सुखदं (रथं) यथागतिं (इच्छति) कामयते (उपमन्त्रिणः) यथा मन्त्रिजनाः (हसनां) आह्लादजनकक्रियां वाञ्च्छन्ति (मण्डूकः) यथा वा मण्डनकर्ता (वारित्) वरणीयवस्तु वाञ्च्छति (शेपः) यथा सूर्य्यप्रकाशः (रोमण्वन्तौ, भेदौ) प्रकृतेः प्रत्येकपदार्थे विभागमिच्छति, एवं हि योग्यतामनुसृत्य विभागमिच्छन् (इन्दो) हे परमात्मन् ! (इन्द्राय) योग्यराजानं (परि, स्रव) अभिषिञ्च ॥४॥ इति द्वादशोत्तरशततमं सूक्तं पञ्चविंशो वर्गश्च समाप्तः ॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(अश्वः) “अश्नुतेऽध्वानमित्यश्वः” निरु. १।१३।५=जो शीघ्रगामी होकर अपने मार्गों का अतिक्रमण करे, उसका नाम “अश्व” है, इस प्रकार यहाँ अश्व नाम विद्युत् का है। (वोळ्हा) सब पदार्थों को प्राप्त करानेवाला वा प्राप्त होनेवाला विद्युत् जिस प्रकार (रथं) गति को (इच्छति) चाहता है, जैसे (उपमन्त्रिणः) उपमन्त्री लोग (हसनां) आह्लादजनक क्रिया की इच्छा करते हैं, जैसे (मण्डूकः) “मण्डयतीति मण्डूकः”=मण्डन करनेवाला पुरुष (वारित्) वरणीय पदार्थ की ही इच्छा करता है, जैसे (शेपः) सूर्य्य का प्रकाश (रोमण्वन्तौ) प्रकृति के प्रत्येक पदार्थ में (भेदौ) विभाग की इच्छा करता है, इसी प्रकार योग्यतानुसार विभाग की इच्छा करते हुए (इन्दो) हे प्रकाशस्वरूप परमात्मन् ! आप (इन्द्राय) ऐश्वर्य्यसम्पन्न राजा को (परि, स्रव) अभिषिक्त करें ॥४॥
भावार्थ
मन्त्र का अर्थ स्पष्ट है। यहाँ यह लिखना अनुपयुक्त नहीं कि इस मन्त्र के अर्थ सायणाचार्य्य तथा आजकल के कई वैदिक ज्ञानाभिमानियों ने अत्यन्त निन्दित किये हैं, जो ऐश्वर्य्यप्रकरण से कोई सम्बन्ध नहीं रखते, उनका हम विस्तारपूर्वक खण्डन उपसंहार में करेंगे ॥४॥ यह ११२ वाँ सूक्त और पच्चीसवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
विषय
वाः इत् मण्डूक इच्छति
पदार्थ
(वोढा अश्वः) = रथ का वहन करनेवाला घोड़ा (सुखं रथम्) = आराम देनेवाले अच्छे रथ को (इच्छति) = चाहता है। (उपमंत्रिणः) = निमन्त्रण दाता पुरुष (हसनाम्) = निमन्त्रित पुरुष की प्रसन्नता व हास्य को चाहते हैं, वे किसी भी प्रकार उसे क्रुद्ध नहीं होने देना चाहते। (शेप:) = पुंस्प्रजनन (रोमण्वन्तौ भेदौ) = लोमयुक्त दो खण्डों, अर्थात् युवति को चाहता है । (मण्डूकः) = मेंढक (इत्) = निश्चय से (वाः) = जल को चाहता है । हे (इन्दो) = शक्ति को देनेवाले सोम ! तू (इन्द्राय) = जितेन्द्रिय पुरुष के लिये (परिस्रव) = परिस्रुत हो। तेरे द्वारा ही कर्मों में व्याप्त होनेवाले [अश्व] पुरुष का यह शरीररथ (सुख:) = उत्तम इन्द्रियों वाला [सु+ख] बनेगा। तू ही विचारशील [उपमन्त्री] पुरुषों के जीवन को आनन्दमय बनायेगा। तू ही एक शक्तिशाली पुरुष को उत्तम सन्तान की प्राप्ति की कामना वाला करेगा। तू ही जीवन को सद्गुणों से मण्डित करनेवाले पुरुष के लिये [मण्डूक] वरणीय शक्ति को प्राप्त करानेवाला होगा।
भावार्थ
भावार्थ- सुरक्षित सोम शरीररथ को उत्तम बनाता है। जीवन को विचारशील व आनन्दमय बनाता है, उत्तम सन्तति को जन्म देने की योग्यता देता है, जीवन को सद्गुणों से मण्डित करने के लिये वरणीय शक्ति को प्राप्त कराता है । सोमरक्षण के द्वारा तीव्र बुद्धि वाला यह व्यक्ति 'कश्यप' पश्यक होता है, वस्तुओं के तत्त्व का द्रष्टा । यह 'मरीच: ' होता है, सब वासनाओं को मारनेवाला। यह सोम शंसन करता हुआ कहता है-
विषय
अश्व-गाड़ी मन्त्री-राजा और युवा-युवति के दृष्टान्त से योग्य व्यक्ति को अनुरूप ऐश्वर्य प्राप्त करने का आदेश।
भावार्थ
(वोढा अश्वः) भार उठाने वाला अश्व वा बैल (सुखम्) उत्तम बैठने योग्य, अवकाश वाले वा सुख से ले चलने योग्य (रथम्) वेग से जाने वाले रथ वा गाड़ी को (इच्छति) चाहता है। (उपमन्त्रिणः) समीप के सलाहकार मित्र लोग (हसनाम्) परम्पर उपहास-विनोद (इच्छन्ति) चाहते हैं। (शेषः रोमण्वन्तौ भेदौ इच्छति) पुरुष का कामांग लोमयुक्त दो खण्ड अर्थात् युवति के अंग की अपेक्षा करता है। हे (इन्दो) ऐश्वर्यवन् ! तेजस्विन् ! तू उसी प्रकार (इन्द्राय) ऐश्वर्यवान् पद की ओर (परि स्रव) गमन कर और उसे प्राप्त कर। अश्व का सदुपयोग उत्तम रथ लेजाना, सचिवों का कार्य राजा को प्रसन्न रखना, काम-अंग का उपयोग युवति से सन्तान उत्पन्न करना है, उसी प्रकार तेजस्वी पुरुष का सदुपयोग राज्य-पद प्राप्त करना है। इति पञ्चविंशो वर्गः॥
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
शिशुर्ऋषिः॥ पवमानः सोमो देवता॥ छन्दः–१– ३ विराट् पंक्तिः। ४, निचृत् पंक्तिः॥ चतुर्ऋचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (1)
Meaning
The motive power needs a smooth carrier, close friends in concert love fun, the beautician wants the cosmetics of her choice, and the vibrant sensitive loves to appreciate and value the subtlest distinctions between the seductive sweets and elevating beauties of life in experience. O Soma, spirit of peace and joy of life, you flow for the soul’s bliss. (That’s what I am. I am the soul. I love Soma.)
मराठी (1)
भावार्थ
मंत्राचा अर्थ स्पष्ट आहे. परंतु या मंत्राचा अर्थ सायणाचार्य व आजकालचे कित्येक वैदिक विद्वान ज्ञानभिमानी लोकांनी अत्यंत निन्दित केलेला आहे. जो ऐश्वर्य प्रकरणाशी कोणताच संबंध ठेवत नाहीत त्यांचे विस्तारपूर्वक खंडन उपसंहारात करू. ॥४॥
हिंगलिश (1)
Subject
Different predilections- भिन्न भिन्न स्वभाव रुचि
Word Meaning
A routine worker like a horse drawing a laden cart with good master & is contended. Another person wants to spend time among friends making merry. Yet another one has high libido and seeks female company. But natural talents must be developed to find opportunities for community development. साधारण व्यक्ति एक घोड़े की भान्ति एक संवेदनशील स्वामी की सेवा में अपना भार वहन करने में सन्तुष्ट है. अन्य व्यक्ति मित्र मंडलि में बैठ कर हंसी मज़ाक में सुख पाता है. अन्य व्यक्ति अधिक कामुक है और स्त्री सुख की अधिक इच्छा करता है. ऐश्वर्य की वृद्धि के लिए समाज का विभिन्न प्रकार के कार्यों के ज्ञान का सामर्थ्य बढ़ाओ|
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