ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 23/ मन्त्र 2
ऋषिः - असितः काश्यपो देवलो वा
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
अनु॑ प्र॒त्नास॑ आ॒यव॑: प॒दं नवी॑यो अक्रमुः । रु॒चे ज॑नन्त॒ सूर्य॑म् ॥
स्वर सहित पद पाठअनु॑ । प्र॒त्नासः॑ । आ॒यवः॑ । प॒दम् । नवी॑यः । अ॒क्र॒मुः॒ । रु॒चे । ज॒न॒न्त॒ । सूर्य॑म् ॥
स्वर रहित मन्त्र
अनु प्रत्नास आयव: पदं नवीयो अक्रमुः । रुचे जनन्त सूर्यम् ॥
स्वर रहित पद पाठअनु । प्रत्नासः । आयवः । पदम् । नवीयः । अक्रमुः । रुचे । जनन्त । सूर्यम् ॥ ९.२३.२
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 23; मन्त्र » 2
अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 13; मन्त्र » 2
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अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 13; मन्त्र » 2
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(आयवः) तेषु च द्रुततरगन्तारः प्रकृतिपरमाणवः (प्रत्नासः) ये हि स्वरूपेणानादयः ते (अनु नवीयः पदम् अक्रमुः) पश्चात् नूतनतमं पदं गृह्णन्ति (रुचे) दीप्तये तैरेव परमाणुभिः (सूर्यम् जजन्त) सूर्यञ्जनयामास ॥२॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
उनमें से (आयवः) शीघ्रगामी प्रकृतिपरमाणु (प्रत्नासः) जो स्वरूप से अनादि हैं, वे (अनु नवीयः पदम् अक्रमुः) नवीन पद को धारण करते हैं (रुचे) दीप्ति के लिये परमात्मा ने उन्हीं परमाणुओं में से (सूर्यम् जजन्त) सूर्य को पैदा किया ॥२॥
भावार्थ
प्रकृति की विविध प्रकार की शक्तियों से परमात्मा सम्पूर्ण कार्यों को उत्पन्न करता है। इन सब कार्यों का उपादान कारण प्रकृति अनादि है। इसी भाव से मन्त्रों में ‘प्रत्नासः’ पद से वर्णन किया है ॥२॥
विषय
प्रत्नासः नवीयः
पदार्थ
[१] (प्रत्नासः) = अत्यन्त प्राचीनकाल में उत्पन्न किये गये ये सोमकण (आयवः) = गतिशील होते हैं। शरीर में सुरक्षित होने पर ये क्रियाशीलता को उत्पन्न करते हैं। ये सोमकण (नवीयः) = स्तुत्य (पदम्) = मार्ग का (अनु अक्रमुः) = क्रमशः आक्रमण करते हैं। सोमरक्षण करनेवाले पुरुष क्रमशः आश्रमों में स्तुत्य मार्ग का ही आक्रमण करते हैं, प्रशस्त कर्मों को ही करनेवाले होते हैं । [२] सुरक्षित हुए हुए ये सोम (रुचे) = दीप्ति के लिये (सूर्यं जनन्त) = ज्ञानसूर्य के प्रादुर्भाव को करते हैं । ज्ञानाग्नि का ईंधन बनकर ये उसे दीप्त करते हैं । बुद्धि को सूक्ष्म बनाकर ये उसे तत्त्वदर्शन के योग्य बनाते हैं । यह तत्त्वज्ञान ही उनके कर्त्तव्य मार्ग को प्रशस्त करता है । C भावार्थ- 'अत्यन्त पुराण होते हुए भी ये सोम नवीन मार्ग का आक्रमण करते हैं' इस वाक्य
भावार्थ
में विरोधाभास अलंकार है । वस्तुतः सोमकणों का जन्म सृष्टि के प्रारम्भ में ही हुआ, सो ये 'प्रत्न' हैं। इनके सुरक्षित होने पर स्तुत्य मार्ग का आक्रमण होता है, सो ये 'नवीयस्' हैं।
विषय
जीवों की सांसारिक मनुष्यों के समान उच्च नीच पद की प्राप्ति। मनुष्यों का अपने बीच तेजस्वी पुरुष को जन्म देना
भावार्थ
(प्रत्नासः) अति पुरातन, अनादि काल से विद्यमान (आयवः) पुनः शरीर में आने वाले जीवों के समान मनुष्य भी (नवीयः) नये से नये (पदं) स्थान और प्राप्तव्य पद को (अक्रमुः) प्राप्त होते हैं। वे (रुचे) दीप्ति के लिये (सूर्यम्) सूर्य के समान तेजस्वी, परम प्रतापी, ज्ञानमय पुरुष को भी राजवत् ही (जनन्त) उत्पन्न करते हैं।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
असितः काश्यपो देवलो वा ऋषिः। पवमानः सोमो देवता॥ छन्दः—१—४, ६ निचृद् गायत्री। ५ गायत्री ७ विराड् गायत्री। सप्तर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (1)
Meaning
In consequence of the will divine, the eternal particles of Prakrti move and assume new forms of existence in evolution, and for the sake of light they create the light of stars.
मराठी (1)
भावार्थ
प्रकृतीच्या विविध प्रकारच्या शक्तींनी परमात्मा संपूर्ण कार्य उत्पन्न करतो. या सर्व कार्यांचे उपादान कारण प्रकृती अनादि अनंत आहे. याच आशयाने मंत्रांमध्ये ‘प्रत्नास’ या पदाचे वर्णन आहे. ॥२॥
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