ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 23/ मन्त्र 5
ऋषिः - असितः काश्यपो देवलो वा
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
सोमो॑ अर्षति धर्ण॒सिर्दधा॑न इन्द्रि॒यं रस॑म् । सु॒वीरो॑ अभिशस्ति॒पाः ॥
स्वर सहित पद पाठसोमः॑ । अ॒र्ष॒ति॒ । ध॒र्ण॒सिः । दधा॑नः । इ॒न्द्रि॒यम् । रस॑म् । सु॒ऽवीरः॑ । अ॒भि॒श॒स्ति॒ऽपाः ॥
स्वर रहित मन्त्र
सोमो अर्षति धर्णसिर्दधान इन्द्रियं रसम् । सुवीरो अभिशस्तिपाः ॥
स्वर रहित पद पाठसोमः । अर्षति । धर्णसिः । दधानः । इन्द्रियम् । रसम् । सुऽवीरः । अभिशस्तिऽपाः ॥ ९.२३.५
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 23; मन्त्र » 5
अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 13; मन्त्र » 5
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अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 13; मन्त्र » 5
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(सोमः) अखिलपदार्थोत्पत्तिस्थानमिदं ब्रह्माण्डं (अर्षति) शश्वद्गच्छति (धर्णसिः) सर्वेषां धारकः (इन्द्रियम् रसम्) इन्द्रियसम्बन्धीनि शब्दस्पर्शादीनि (दधानः) धारयन् आस्ते (सुवीरः) सर्वशक्तिमान् परमात्मा (अभिशस्तिपाः) अभितो रक्षति तत् ॥५॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(सोमः) सब पदार्थ का उत्पत्तिस्थान यह ब्रह्माण्ड (अर्षति) गति कर रहा है (धर्णसिः) सब का धारण करनेवाला है और (इन्द्रियम् रसम्) इन्द्रियों के शब्दस्पर्शादि रसों को (दधानः) धारण करता हुआ विराजमान है और उसका (सुवीरः) सर्वशक्तिसम्पन्न परमात्मा (अभिशस्तिपाः) सब ओर से रक्षक है ॥५॥
भावार्थ
जो ब्रह्माण्ड कोटि-२ नक्षत्रों को धारण किये हुए है और जिनमें नानाप्रकार के रस उत्पन्न होते हैं, उनका जन्मदाता एकमात्र परमात्मा ही है, अन्य कोई नहीं। इस मन्त्र में ब्रह्माण्डादिपति परमात्मा का वर्णन किया गया है और उसी की सत्ता से धारण किये हुए ब्रह्माण्डों का वर्णन है ॥५॥
विषय
सुवीरः अभिशस्तिपाः
पदार्थ
[१] (सोमः) = यह सोम (अर्षति) = शरीर के अंग-प्रत्यंग में गतिवाला होता है । (धर्णसि:) = यह हमारा धारण करता है यह हमारे अन्दर (इन्द्रियम्) = बल को व (रसम्) = रस को, मधुरवाणी व मधुर व्यवहार को (दधानः) = धारण करता है । सोम के रक्षण से [क] हमारा धारण होता है, [ख] यह हमें बल देता है, [ग] हमारे जीवन को रसमय करता है । [२] यह सोम (सुवीर:) = उत्तम वीर है, यह हमारे शरीर में रोगकृमियों को कम्पित करके दूर भगाता है। (अभिशस्तिपाः) = अभितः होनेवाली हिंसा से बचाता है। यह हमें वासनाओं व रोगों का शिकार नहीं होने देता ।
भावार्थ
भावार्थ- सुरक्षित सोम हमारे शरीर में बल व मन में रस का संचार करता है। यह हमें सब प्रकार की हिंसाओं से बचाता है।
विषय
परमेश्वर का प्रभु पद। व्यापक, सर्वशक्तिमान्, सर्वेश्वर, जगत् का का सञ्चालक।
भावार्थ
(सोमः) जगत् का उत्पादक और सञ्चालक, (धर्णसिः) सब को धारण करने वाला परमेश्वर ही (इन्द्रियं) परम ऐश्वर्य और (रसं) ज्ञान, आनन्द, परम बल को (दधानः) धारण करता और प्रदान करता है। वही (सु-वीरः) सर्वोत्तम बलशाली, (अभिशस्तिपाः) सब दुःखों, दुष्प्रवादों और आक्रमणों से बचाने वाला है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
असितः काश्यपो देवलो वा ऋषिः। पवमानः सोमो देवता॥ छन्दः—१—४, ६ निचृद् गायत्री। ५ गायत्री ७ विराड् गायत्री। सप्तर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (1)
Meaning
The world of divine soma joy moves on, all sustaining, bearing cherished sweets for pleasure and celebration, the omnipotent is guardian of our honour and fame.
मराठी (1)
भावार्थ
ज्या ब्रह्मांडाने कोटी कोटी नक्षत्रांना धारण केलेले आहे व ज्यात नाना प्रकारचे रस उत्पन्न होतात. त्यांचा जन्मदाता एकमात्र परमात्माच आहे. दुसरा कोणी नाही. या मंत्रात ब्रह्मांडाधिपती परमात्म्याचे व त्याचीच सत्ता धारण केलेल्या ब्रह्मांडाचे वर्णन आहे. ॥५॥
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