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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 23 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 23/ मन्त्र 1
    ऋषि: - असितः काश्यपो देवलो वा देवता - पवमानः सोमः छन्दः - निचृद्गायत्री स्वरः - षड्जः

    सोमा॑ असृग्रमा॒शवो॒ मधो॒र्मद॑स्य॒ धार॑या । अ॒भि विश्वा॑नि॒ काव्या॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सोमाः॑ । अ॒सृ॒ग्र॒म् । आ॒शवः॑ । मधोः॑ । मद॑स्य । धार॑या । अ॒भि । विश्वा॑नि । काव्या॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सोमा असृग्रमाशवो मधोर्मदस्य धारया । अभि विश्वानि काव्या ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सोमाः । असृग्रम् । आशवः । मधोः । मदस्य । धारया । अभि । विश्वानि । काव्या ॥ ९.२३.१

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 23; मन्त्र » 1
    अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 13; मन्त्र » 1
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    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथोक्तरचना प्रकारान्तरेण वर्ण्यते।

    पदार्थः

    (सोमाः) ब्रह्माण्डानि विविधानि (मधोः मदस्य) प्रकृतेः रञ्जकभावैः (धारया) सूक्ष्मावस्थाया (आशत) शीघ्रगमनशीलानि (असृग्रम्) सृष्टानि (अभि विश्वानि काव्या) ततश्च सर्वविधवेदादिशास्त्राणि निरमायिषत ॥१॥

    हिन्दी (1)

    विषय

    अब उक्त रचना को प्रकारान्तर से वर्णन करते हैं।

    पदार्थ

    (सोमाः) “सूयन्ते=उत्पाद्यन्त इति सोमा ब्रह्माण्डानि” अनन्त प्रकार के कार्यरूप ब्रह्माण्ड (मधोः मदस्य) प्रकृति के हर्षजनक भावों की (धारया) सूक्ष्म अवस्था से (आशत) शीघ्र गतिवाले (असृग्रम्) बनाये गए हैं और (अभि विश्वानि काव्या) तदनन्तर सब प्रकार के वेदादि शास्त्रों की रचना हुई ॥१॥

    भावार्थ

    परमात्मा ने प्रकृति की सूक्ष्मावस्था से कोटि-२ ब्रह्माण्डों को उत्पन्न किया और तदनन्तर उसने विधिनिषेधात्मक सब विद्याभण्डार वेदों को रचा।  जैसा कि “तस्माद्यज्ञात्सर्वहुत ऋचः सामानि जज्ञिरे” इत्यादि वेदमन्त्र और “जन्माद्यस्य यतः” इत्यादि सूत्रों से प्रतिपादन कर आये हैं ॥१॥

    English (1)

    Meaning

    I create the rapid streams of soma forms of existence in constant motion with the currents of honeyed ecstasy of nature in evolution in consonance with the universal poetry of divinity articulated in the Veda.

    मराठी (1)

    भावार्थ

    परमात्म्याने प्रकृतीच्या सूक्ष्मावस्थेपासून कोटी कोटी ब्रह्मांड उत्पन्न केलेले आहेत व त्यानंतर त्याने विधिनिषेधात्मक सर्व विद्याभांडार वेद निर्माण केले. जसे ‘तस्माद्यज्ञात्सर्वहुत ऋच: सामानि जज्ञिरे’ इत्यादी वेदमंत्र व ‘जन्माद्यस्य यत:’ इत्यादी सूत्रांनी प्रतिपादन केलेले आहे. ॥१॥

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