ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 28/ मन्त्र 5
ए॒ष सूर्य॑मरोचय॒त्पव॑मानो॒ विच॑र्षणिः । विश्वा॒ धामा॑नि विश्व॒वित् ॥
स्वर सहित पद पाठए॒षः । सूर्य॑म् । अ॒रो॒च॒य॒त् । पव॑मानः । विऽच॑र्षणिः । विश्वा॑ । धामा॑नि । वि॒श्व॒ऽवित् ॥
स्वर रहित मन्त्र
एष सूर्यमरोचयत्पवमानो विचर्षणिः । विश्वा धामानि विश्ववित् ॥
स्वर रहित पद पाठएषः । सूर्यम् । अरोचयत् । पवमानः । विऽचर्षणिः । विश्वा । धामानि । विश्वऽवित् ॥ ९.२८.५
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 28; मन्त्र » 5
अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 18; मन्त्र » 5
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अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 18; मन्त्र » 5
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(एषः) अयं परमात्मा (सूर्यम् अरोचयत्) सूर्यमपि प्रकाशयति (पवमानः) सर्वं पवित्रयति (विचर्षणिः) सर्वद्रष्टास्ति (विश्वा धामानि) सर्वस्थानेषु विराजते (विश्ववित्) सर्वज्ञश्चास्ति ॥५॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(एषः) यह परमात्मा (सूर्यम् अरोचयत्) सूर्य को भी प्रकाशित करता है (विचर्षणिः) सर्वद्रष्टा है (विश्वा धामानि) सब स्थानों में विराजमान है (विश्ववित्) सर्वज्ञ है ॥५॥
भावार्थ
इस मन्त्र में परमात्मा को सूर्य का भी प्रकाशक कथन किया है। तात्पर्य यह है कि यह जड़ सूर्य उसकी सत्ता में प्रकाशित होता है। जो लोग गायत्री आदि मन्त्रों में इस जड़ सूर्य को उपास्य बताया करते हैं, उनको “सूर्यमरोचयत्” इस वाक्य से यह शिक्षा लेनी चाहिये कि यदि वेद का तात्पर्य जड़ सूर्य को उपास्य देव कथन करने का होता, तो इस जड़ सूर्य को उससे प्रकाश पाकर प्रकाशित होना न कथन किया जाता और न “सूर्याचन्द्रमसौ धाता” इत्यादि वाक्यों से इस जड़ सूर्यादि का निर्माता कथन किया जाता ॥५॥
विषय
पवमानः विचर्षणिः
पदार्थ
[१] (एषः) - यह सोम (सूर्यम्) = ज्ञान के सूर्य को (अरोचयत्) = दीप्त करता है । सुरक्षित सोम ज्ञानाग्नि का ईंधन बनकर ज्ञान को दीप्त करता है। (पवमानः) = यह हमें पवित्र करनेवाला है। (विचर्षणिः) = यह हमारा देखनेवाला व ध्यान करनेवाला है। हमें नीरोग रखता है। [२] यह हमारे अन्दर (विश्वा धामानि) = सब तेजों को [ अरोचयत्] दीप्त करता है, और (विश्ववित्) = सब ज्ञानों को देनेवाला है [विद् ज्ञाने] अथवा सब आवश्यक वसुओं को प्राप्त कराता है [विद् लाभे] ।
भावार्थ
भावार्थ- सुरक्षित सोम ज्ञान के सूर्य का उदय करता है और सब तेजों को प्राप्त कराता है।
विषय
उसको ऐश्वर्य पद प्राप्ति, तेज और प्रभाव।
भावार्थ
(एषः) वह (विश्ववित्) सर्वज्ञ प्रभु (पवमानः) सब में व्यापता हुआ, (विश्वा धामानि विचर्षणिः) समस्त लोकों का द्रष्टा (सूर्यम् अरोचयत्) सूर्य को भी प्रकाशित करता है। (२) उसी प्रकार राजा भी सब लोकों, स्थानों का दृष्टा होकर सूर्यवत् तेजस्वी पद को - सुशोभित करता है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
प्रियमेध ऋषिः॥ पवमानः सोमो देवता ॥ छन्द:–१, ४, ५ गायत्री। २, ३, ६ विराड् गायत्री॥ षडृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (1)
Meaning
This soma illuminates the sun, pure, purifying and dynamic, watching all, pervading all regions of the universe, knowing and controlling all that is in existence.
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात परमात्म्याला सूर्याचा ही प्रकाशक म्हटलेले आहे. हा जड सूर्य त्याच्या सत्तेने प्रकाशित होतो. जे लोक गायत्री इत्यादी मंत्रात जड सूर्याला उपास्य समजतात त्यांनी ‘सूर्यम रोचयत्त’ या वाक्याद्वारे शिकवण घेतली पाहिजे. जर वेदाने जड सूर्याला उपास्यदेव म्हटले असते तर सूर्याला परमात्म्यापासून प्रकाश प्राप्त करून प्रकाशित होणे असे कथन केले नसते व ‘सूर्याचन्द्रमसौ धाता’ इत्यादी वाक्यांनी जड सूर्य इत्यादीचा निर्माता असे कथन केले नसते. ॥५॥
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