ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 29/ मन्त्र 3
सु॒षहा॑ सोम॒ तानि॑ ते पुना॒नाय॑ प्रभूवसो । वर्धा॑ समु॒द्रमु॒क्थ्य॑म् ॥
स्वर सहित पद पाठसु॒ऽसहा॑ । सो॒म॒ । तानि॑ । ते॒ । पु॒ना॒नाय॑ । प्र॒भु॒व॒सो॒ इति॑ प्रभुऽवसो । वर्ध॑ । स॒मु॒द्रम् । उ॒क्थ्य॑म् ॥
स्वर रहित मन्त्र
सुषहा सोम तानि ते पुनानाय प्रभूवसो । वर्धा समुद्रमुक्थ्यम् ॥
स्वर रहित पद पाठसुऽसहा । सोम । तानि । ते । पुनानाय । प्रभुवसो इति प्रभुऽवसो । वर्ध । समुद्रम् । उक्थ्यम् ॥ ९.२९.३
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 29; मन्त्र » 3
अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 19; मन्त्र » 3
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अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 19; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(सोम) हे सौम्य (प्रभूवसो) अखिलधनरत्नादिप्रभो परमात्मन् ! (उक्थ्यम् समुद्रम् वर्ध) भवान् आकाशे वर्द्धमानं प्रशंसनीयं यशः मदर्थं वर्धय (तानि सुषहा ते पुनानाय) अथ च सर्वस्य पावकं प्रवृद्धं भवदीयं यशः मया ससुखं भोग्यं स्यात् ॥३॥
हिन्दी (1)
पदार्थ
(सोम) हे सौम्यस्वभाववाले परमात्मन् ! (प्रभूवसो) हे अखिल धन रत्नादिकों के स्वामिन् ! (उक्थ्यम् समुद्रम् वर्ध) आप आकाश में फैलानेवाले प्रशंसनीय यश को मेरे लिये बढ़ाइये (तानि सुषहा ते पुनानाय) और यह सबको पवित्र करनेवाले आपका बढ़ा हुआ यश हमारे लिये सुख से भोग करने योग्य हो ॥३॥
भावार्थ
परमात्मा उपदेश करता है कि जो लोग अपनी कीर्ति को नभोमण्डलव्यापिनी बनाना चाहें, उनका कर्तव्य है कि वे परमात्मपरायण होकर कर्मयोगी बनें। कर्मयोगी पुरुष के विना किसी पुरुष का ऐश्वर्य बढ़ नहीं सकता ॥३॥
इंग्लिश (1)
Meaning
O Soma, lord of universal wealth, power and honour, those divine showers of generosity, those songs of adoration and lights of glory, are holy and winsome for your celebrant. Let the admirable ocean rise and expand.
मराठी (1)
भावार्थ
परमात्मा उपदेश करतो की जे लोक आपल्या कीर्तीला नभोमंडलव्यापिनी बनवू इच्छितात, त्यांचे हे कर्तव्य आहे की त्यांनी परमात्मपरायण बनून कर्मयोगी बनावे. कर्मयोगी पुरुषाशिवाय कोणत्याही पुरुषाचे ऐश्वर्य वाढू शकत नाही. ॥३॥
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