ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 30/ मन्त्र 4
प्र सोमो॒ अति॒ धार॑या॒ पव॑मानो असिष्यदत् । अ॒भि द्रोणा॑न्या॒सद॑म् ॥
स्वर सहित पद पाठप्र । सोमः॑ । अति॑ । धार॑या । पव॑मानः । अ॒सि॒स्य॒द॒त् । अ॒भि । द्रोणा॑नि । आ॒ऽसद॑म् ॥
स्वर रहित मन्त्र
प्र सोमो अति धारया पवमानो असिष्यदत् । अभि द्रोणान्यासदम् ॥
स्वर रहित पद पाठप्र । सोमः । अति । धारया । पवमानः । असिस्यदत् । अभि । द्रोणानि । आऽसदम् ॥ ९.३०.४
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 30; मन्त्र » 4
अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 20; मन्त्र » 4
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अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 20; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(सोमः) परमात्मा (धारया) स्वानुग्रहदृशा धाराभिः (पवमानः) पवित्रयन् ज्ञानप्रभावेण (अभि द्रोणानि आसदम्) तान्यन्तःकरणानि प्राप्तुमिच्छन्ति यानि सत्कर्मभिः (प्रासिष्यत्) शुद्धीकृतानि भवन्ति ॥४॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(सोमः) परमात्मा (धारया) अपनी कृपा की दृष्टिरूप धाराओं से (पवमानः) पवित्र करता हुआ ज्ञान के प्रभाव से (अभि द्रोणानि आसदम्) उन अन्तःकरणों को प्राप्त होता है, जो अन्तःकरण सत्कर्मों द्वारा किये हुए होते हैं ॥४॥
भावार्थ
परमात्मा उपदेश करता है कि हे मनुष्यों ! यदि तुम अपने आपको सत्कर्मी बनाओ, तो ज्ञान का प्रवाह तुम्हारे अभ्युदयरूपी अङ्कुरों को अवश्यमेव अभ्युदयशाली बनायेगा ॥४॥
विषय
अभि द्रोणानि
पदार्थ
[१] (सोमः) = सोम (धारया) = अपनी धारणशक्ति के साथ (पवमानः) = हमारे जीवनों को पवित्र करता हुआ (प्र अति असिष्यदत्) = खूब ही शरीर में प्रवाहित होता है । [२] यह सोम स्थूल शरीर, सूक्ष्म शरीर व कारण शरीर रूप (द्रोणानि) = पात्रों में (अभि आसदम्) = आभिमुख्येन प्राप्त होने के लिये होता है। शरीरों में स्थित होता हुआ यह उन्हें अपनी-अपनी शक्ति से युक्त करता है ।
भावार्थ
भावार्थ - शरीर में सुरक्षित हुआ हुआ सोम सब कोशों को पवित्र करनेवाला होता है।
विषय
वेगवान् जल के तुल्य शासक के कार्य।
भावार्थ
(सोमः) उत्तम शासक जल के समान है, वह (पवमानः) वेग से जाता हुआ, (धारया अति प्र असिष्यदत्) धारा, वाणी वा सैन्य परंपरा वा शक्ति सहित आगे बढ़े और (द्रोणानि) नाना स्थानों पर (आसदम्) सुशोभित होने का यत्न करे।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
विन्दुर्ऋषिः। पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:- १, २, ६ गायत्री। ३-५ निचृद् गायत्री॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Let soma, pure and purifying lord of peace, light and power, flow and advance in shower and streams of innocence and purity into the celebrants’ heart and soul.
मराठी (1)
भावार्थ
परमात्मा उपदेश करतो की हे माणसांनो! जर तुम्ही स्वत:ला सत्कर्मी बनवाल तर ज्ञानाचा प्रवाह तुमच्या अभ्युदयरूपी अंकुरांना अवश्य अभ्युदययुक्त बनवील ॥४॥
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