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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 35 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 35/ मन्त्र 5
    ऋषिः - प्रभुवसुः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    तं गी॒र्भिर्वा॑चमीङ्ख॒यं पु॑ना॒नं वा॑सयामसि । सोम॒ जन॑स्य॒ गोप॑तिम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    तम् । गीः॒ऽभिः । वा॒च॒म्ऽई॒ङ्ख॒यम् । पु॒ना॒नम् । वा॒स॒या॒म॒सि॒ । सोम॑म् । जन॑स्य । गोऽप॑तिम् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    तं गीर्भिर्वाचमीङ्खयं पुनानं वासयामसि । सोम जनस्य गोपतिम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    तम् । गीःऽभिः । वाचम्ऽईङ्खयम् । पुनानम् । वासयामसि । सोमम् । जनस्य । गोऽपतिम् ॥ ९.३५.५

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 35; मन्त्र » 5
    अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 25; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (वाचमीङ्खयम्) वेदवाक्षु निवसन्तं (पुनानम्) सर्वं पवित्रयन्तं (जनस्य गोपतिम्) मानुषेन्द्रियवृत्तीः प्रेरयन्तं (तम् सोमम्) तं परमात्मानं (गीर्भिः) स्तुतिभिः (वासयामसि) स्वान्तःकरणे निवासयामः ॥५॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (वाचमीङ्खयम्) वेदवाणियों में निवास करनेवाले (पुनानम्) सबको पवित्र करनेवाले (जनस्य गोपतिम्) मनुष्यों की इन्द्रियवृत्तियों को प्रेरणा करनेवाले (तम् सोमम्) उस परमात्मा को (गीर्भिः) स्तुतियों द्वारा (वासयामसि) अपने अन्तःकरण में बसाते हैं ॥५॥

    भावार्थ

    परमात्मा के स्व अन्तःकरण में धारण करने का उपाय यह है कि पुरुष उसके सद्गुणों का चिन्तन करके उसके स्वरूप में मग्न हो जाय, इसी का नाम परमात्मप्राप्ति वा परमात्मयोग है ॥५॥

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    विषय

    पुनान - गोपति

    पदार्थ

    [१] (तम्) = उस (वाचमीङ्खयम्) = ज्ञान की वाणियों के प्रेरित करनेवाले (सोमम्) = सोम को [वीर्यशक्ति को ] (गीर्भिः) = ज्ञान की वाणियों से (वासयामसि) = अपने अन्दर बसाते हैं। ज्ञान प्राप्ति में लगे रहने से चित्त निर्मल रहता है और वासनाओं के आक्रमण के अभाव में सोम शरीर में ही सुरक्षित रहता है। यह सोम (पुनान) = हमारे जीवनों को पवित्र बनाता है । [२] उस सोम को हम शरीर में सुरक्षित करते हैं, जो कि (जनस्य गोपतिम्) = लोगों की इन्द्रियों का (पति) = रक्षक है। रक्षित सोम इन्द्रियों की शक्ति को बढ़ानेवाला है ।

    भावार्थ

    भावार्थ- सोम का रक्षण स्वाध्याय में लगे रहने से सम्भव है। यह सोम हमारे जीवन को पवित्र व सशक्त इन्द्रियोंवाला बनाता है।

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    विषय

    उसके प्रति प्रजा के कर्त्तव्य।

    भावार्थ

    हम (वाचम्-ईङ्खयम्) वाणी को देने वाले, आज्ञापक (जनस्य गोपतिम्) मनुष्यों के रक्षक भूमिपति, (पुनानं) सबको पवित्र करने वाले, राष्ट्र-शोधक दुष्ट नाशक (तं) उस (सोमं) शास्ता पुरुष को (गीर्भिः वासयामसि) वाणियों से आच्छादित करें, उसकी खूब स्तुति करें। अथवा (गीर्भिः) वाणियों से पवित्र करने वाले विद्वान् को हम (वासयामसि) अपने में बसायें, उसकी रक्षा करें।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    प्रभूवसुर्ऋषिः॥ पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:– १, २, ४–६ गायत्री। ३ विराड् गायत्री॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    With hymns of adoration we exalt and glorify Soma, inspirer of song, purifier, saviour and guardian of humanity and their lands, cows and culture.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    परमात्म्याला आपल्या अंत:करणात धारण करण्याचा उपाय हा आहे, माणसाने त्याच्या सद्गुणांचे चिंतन करून त्याच्या स्वरूपात मग्न व्हावे. याचेच नाव परमात्मप्राप्ती किंवा परमात्मयोग आहे. ॥५॥

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