ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 38/ मन्त्र 6
ए॒ष स्य पी॒तये॑ सु॒तो हरि॑रर्षति धर्ण॒सिः । क्रन्द॒न्योनि॑म॒भि प्रि॒यम् ॥
स्वर सहित पद पाठए॒षः । स्यः । पी॒तये॑ । सु॒तः । हरिः॑ । अ॒र्ष॒ति॒ । ध॒र्ण॒सिः । क्रन्द॑न् । योनि॑म् । अ॒भि । प्रि॒यम् ॥
स्वर रहित मन्त्र
एष स्य पीतये सुतो हरिरर्षति धर्णसिः । क्रन्दन्योनिमभि प्रियम् ॥
स्वर रहित पद पाठएषः । स्यः । पीतये । सुतः । हरिः । अर्षति । धर्णसिः । क्रन्दन् । योनिम् । अभि । प्रियम् ॥ ९.३८.६
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 38; मन्त्र » 6
अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 28; मन्त्र » 6
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अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 28; मन्त्र » 6
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(एषः स्यः) अयं परमात्मा (सुतः) स्वयम्भूः (धर्णसिः) धाता (क्रन्दन्) शब्दरूपं वेदमाविर्भावयन् (पीतये) लोकस्य तृप्तये (योनिम् प्रियम्) प्रियां प्रकृतिं (अभ्यर्षति) व्याप्नोति ॥६॥ इति अष्टात्रिंशत्तमं सूक्तमष्टाविंशो वर्गश्च समाप्तः ॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(एषः स्यः) यह परमात्मा (सुतः) स्वयम्भू (धर्णसिः) धारण करनेवाला (क्रन्दन्) शब्दमय वेद को आविर्भाव करता हुआ (पीतये) संसार की तृप्ति के लिये (योनिम् प्रियम्) प्रिय प्रकृति में (अभ्यर्षति) व्याप्त हो रहा है ॥६॥
भावार्थ
इस प्रकृतिरूपी ब्रह्माण्ड के रोम-रोम में व्याप्त और वेदादि विद्याओं का आविर्भावकर्ता एकमात्र परमात्मा ही है ॥६॥ यह ३८ वाँ सूक्त और २८ वाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
विषय
हरिः धर्णसः
पदार्थ
[१] (एषः) = यह (स्यः) = प्रसिद्ध (सुतः) = उत्पन्न हुआ हुआ सोम (पीतये) = हमारे रक्षण के लिये होता है। (हरिः) = सब रोगों का हरण करनेवाला यह सोम (अर्षतिः) = हमें प्राप्त होता है और (धर्णसि:) = हमारा धारण करनेवाला होता है। [२] यह (प्रियम्) = उस आनन्द को देनेवाले (योनिम्) = सब के उत्पत्ति - स्थान (प्रभव) = प्रभु को (अभि) = लक्ष्य करके (क्रन्दन्) = स्तुति वचनों का उच्चारण करनेवाला होता है । सोम शरीर में सुरक्षित होता है, तो हमारी वृत्ति प्रभु-स्तवन की बनती है।
भावार्थ
भावार्थ- सोम हमारा धारण करता है । यह हमें प्रभु भक्त बनाता है। इस सोम के रक्षण से हम तीव्र बुद्धिवाले स्तोता बनकर 'बृहन्मति' बनते हैं। यह बृहन्मति सोम का स्तवन करता हुआ कहता है-
विषय
सर्वदर्शी आनन्दमय प्रभु।
भावार्थ
(एषः स्यः) वह प्रभु (पीतये सुतः) पालन या रक्षा के निमित्त उपासित (हरिः) पापहारी (धर्णसिः) जगत् का धारक (प्रियम् योनिम् अभि) प्रिय स्थान, विश्व में (क्रन्दन् अर्षति) व्याप्त होकर प्राप्त है। इत्यष्टाविंशो वर्गः॥
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
रहूगण ऋषिः। पवमानः सोमो देवता ॥ छन्दः- १, २, ४, ६ निचृद् गायत्री। ३ गायत्री। ५ ककुम्मती गायत्री॥ षडृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (1)
Meaning
This Soma spirit of joy, self-manifestive, all wielder and sustainer, reflects with a boom in its darling form, the golden womb of Prakrti, and rolls around for the joyous experience of humanity eliminating pain and sufferance.
मराठी (1)
भावार्थ
या प्रकृतिरूपी ब्रह्मांडाच्या रोमारोमात व्याप्त व वेद इत्यादी विद्यांचा आविर्भावकर्ता एकमेव परमात्माच आहे. ॥६॥
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