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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 41 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 41/ मन्त्र 2
    ऋषिः - मेध्यातिथिः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - ककुम्मतीगायत्री स्वरः - षड्जः

    सु॒वि॒तस्य॑ मनाम॒हेऽति॒ सेतुं॑ दुरा॒व्य॑म् । सा॒ह्वांसो॒ दस्यु॑मव्र॒तम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सु॒वि॒तस्य॑ । म॒ना॒म॒हे॒ । अति॑ । सेतु॑म् । दुः॒ऽआ॒व्य॑म् । सा॒ह्वांसः॑ । दस्यु॑म् । अ॒व्र॒तम् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सुवितस्य मनामहेऽति सेतुं दुराव्यम् । साह्वांसो दस्युमव्रतम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सुवितस्य । मनामहे । अति । सेतुम् । दुःऽआव्यम् । साह्वांसः । दस्युम् । अव्रतम् ॥ ९.४१.२

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 41; मन्त्र » 2
    अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 31; मन्त्र » 2
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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (सुवितस्य दुराव्यम् सेतुम्) एवंविधपूर्वोक्तलोकानां जनयितारं दुःसहसंसारस्य सेतुरूपं परमात्मानं (मनामहे) स्तुमः यः परमात्मा (अव्रतम् दस्युम् साह्वांसः) वेदधर्मविमुखान् दुराचारान् शमयितास्ति ॥२॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (सुवितस्य दुराव्यम् सेतुम्) ऐसे पूर्वोक्त लोकों को उत्पन्न करनेवाले दुःख में प्राप्त करने योग्य संसार के सेतुरूप ईश्वर की (मनामहे) स्तुति करते हैं, जो परमात्मा (अव्रतम् दस्युम् साह्वांसः) वेदधर्म को नहीं पालन करनेवाले दुराचारियों का शमन करनेवाला है ॥२॥

    भावार्थ

    परमात्मा इस चराचर जगत् का सेतु है अर्थात् मर्य्यादा है, उसी की मर्य्यादा में सूर्य्य-चन्द्रादि सब लोक परिभ्रमण करते हैं। मनुष्यों को चाहिये कि उस मर्य्यादा पुरुषोत्तम को सदैव अपना लक्ष्य बनावें ॥२॥

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    विषय

    'सुवित' सोम का सेतु

    पदार्थ

    [१] (सुवितस्य) = सब सुन्दर गतियों के कारणभूत सोम के [शोभनं इतं यस्मात्] (दुराव्यम्) = सब बुराइयों से बचाने में उत्तम सेतुम् शरीर में बंधन को [ षिञ् बन्धने] (अतिमनामहे) = अतिशयेन आदृत करते हैं। शरीर में सोमरक्षण के महत्त्व को समझते हुए हम सदा शुभ मार्ग पर चलते हैं और अशुभ से अपना रक्षण कर पाते हैं । [२] सोमरक्षण का ही यह परिणाम है कि हम (अव्रतम्) = सब नियमों का भंग करनेवाले (दस्युम्) = नाशक आसुरी भाव को (साह्वांसः) = कुचलनेवाले बनते हैं ।

    भावार्थ

    भावार्थ - शरीर में सोमरक्षण से हम आसुरी भावों का विनष्ट करते हैं और शुभ मार्ग पर चलनेवाले बनते हैं । I

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    विषय

    आदरणीय रक्षक। दुष्ट दमन करने का उपदेश।

    भावार्थ

    हम (अव्रतम् दस्युम्) कर्म, दीक्षा, नियमादि से रहित दुष्ट जन को (साह्वांसः) पराजित करते हुए (सुवितस्य) उत्तम सुखजनक कार्य के (सेतुम्) सेतुवत् पार उतारने वाले (दुराव्यम्) दुष्प्राप्य, उस रक्षक की (अति मनामहे) हम अति पूजा करते हैं। अथवा—(सुवितस्य सेतुम्) शुभ फल के प्रतिबन्धक, (दुराव्यम्) दुःखदायी, (अव्रतम् दस्युम् साह्वांसः) कर्महीन दुष्ट जन को पराजित करते हुए हम (अति मनामहे) उस को खूब स्तम्भन करें, या उस भगवान् की पूजा करें।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    मेध्यातिथिर्ऋषिः॥ पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:- १, ३, ४, ५ गायत्री। २ ककुम्मती गायत्री। ६ निचृद् गायत्री॥ षडृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    We honour and adore that divine bridge to peace and prosperity, otherwise difficult to cross, which faces and overcomes selfish, uncreative and destructive elements of life addicted to lawlessness.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    परमात्मा या चराचर जगाचा सेतू आहे. अर्थात मर्यादा आहे. त्याच्याच मर्यादेत सूर्य-चंद्र इत्यादी सर्व लोक परिभ्रमण करतात. माणसांनी त्या मर्यादा पुरुषोत्तमाला सदैव आपले लक्ष्य बनवावे ॥२॥

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