Loading...
ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 44 के मन्त्र
1 2 3 4 5 6
मण्डल के आधार पर मन्त्र चुनें
अष्टक के आधार पर मन्त्र चुनें
  • ऋग्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 44/ मन्त्र 3
    ऋषिः - अयास्यः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    अ॒यं दे॒वेषु॒ जागृ॑विः सु॒त ए॑ति प॒वित्र॒ आ । सोमो॑ याति॒ विच॑र्षणिः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒यम् । दे॒वेषु॑ । जागृ॑विः । सु॒तः । ए॒ति॒ । प॒वित्रे॑ । आ । सोमः॑ । या॒ति॒ । विच॑र्षणिः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अयं देवेषु जागृविः सुत एति पवित्र आ । सोमो याति विचर्षणिः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अयम् । देवेषु । जागृविः । सुतः । एति । पवित्रे । आ । सोमः । याति । विचर्षणिः ॥ ९.४४.३

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 44; मन्त्र » 3
    अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 1; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (जागृविः सुतः अयम् सोमः) स्वयम्भूर्जागरूकोऽयं परमात्मा (विचर्षणिः) सर्वं पश्यन् (आ याति) सर्वत्र व्याप्तो भवति (देवेषु) विदुषां (पवित्रे) पवित्रहृदये (एति) आविर्भवति ॥३॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (जागृविः सुतः अयम् सोमः) स्वयंसिद्ध जागरूक यह परमात्मा (विचर्षणिः) सबको देखता हुआ (आ याति) सर्वत्र व्याप्त है और (देवेषु) विद्वानों के (पवित्रे) हृदय में (एति) आर्विभूत होता है ॥३॥

    भावार्थ

    अन्य लोगों की जागृति नैमित्तिकी होती है अर्थात् स्वतःसिद्ध नहीं होती। एकमात्र परमात्मा की जागृति ही स्वतःसिद्ध है अर्थात् परमात्मा ही ज्ञानस्वरूप है, अन्य सब जीव पराधीन ज्ञानवाले हैं ॥३॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    'जागृवि - विचर्षणि' सोम

    पदार्थ

    (१) (अयम्) = यह सोम (सुतः) = उत्पन्न हुआ हुआ (देवेषु) = देववृत्ति के व्यक्तियों में (जागृविः) = सदा जागरणशील है यह शरीर में रोगों के आक्रमण को नहीं होने देता तथा मन को वासनाओं से आक्रान्त नहीं होने देता। (पवित्रे) = पवित्र हृदयवाले पुरुष में यह (आ एति) = शरीर में समन्तात् गतिवाला होता है । (२) यह (विचर्षणिः) = हमारा विशेषरूप से देखनेवाला, ध्यान करनेवाला (सोमः) = सोम (याति) = शरीर में गति करता है।

    भावार्थ

    भावार्थ-सोम सदा जागरुक रहकर हमारी रक्षा करता है।

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    सर्व-शासक की स्तुति।

    भावार्थ

    (अयं) यह (देवेषु) विद्वानों में (जागृविः) सदा जागरणशील, मुख्य इन्द्रियों में मुख्य प्राण के समान (जागृविः) कभी भी आलस्ययुक्त न होकर (पवित्रे आ एति) पवित्र हृदय में प्रकट होता है, वह (विचर्षणिः) विशेष द्रष्टा (सोमः) शास्ता होकर (याति) सर्वत्र जाता है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    यास्य ऋषिः॥ पवमानः सोमो देवता॥ छन्दः-१ निचृद् गायत्री। २-६ गायत्री॥ षडृचं सूक्तम्॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (1)

    Meaning

    This Soma of divine vigour and ecstasy, all watchful, ever awake among the divines, flows free, and when it is invoked for realisation, it moves and rises to bless the holy heart and soul of the celebrant.

    इस भाष्य को एडिट करें

    मराठी (1)

    भावार्थ

    पुष्कळ लोकांची जागृती नैमित्तिक असते अर्थात सिद्ध होत नाही. एकमात्र परमात्म्याची जागृतीच स्वत: सिद्ध आहे. परमात्माच ज्ञानस्वरूप आहे. इतर सर्व जीव पराधीन ज्ञान असणारे आहेत. ॥३॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top