ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 44/ मन्त्र 5
स नो॒ भगा॑य वा॒यवे॒ विप्र॑वीरः स॒दावृ॑धः । सोमो॑ दे॒वेष्वा य॑मत् ॥
स्वर सहित पद पाठसः । नः॒ । भगा॑य । वा॒यवे॑ । विप्र॑ऽवीरः । स॒दाऽवृ॑धः । सोमः॑ । दे॒वेषु । आ । य॒म॒त् ॥
स्वर रहित मन्त्र
स नो भगाय वायवे विप्रवीरः सदावृधः । सोमो देवेष्वा यमत् ॥
स्वर रहित पद पाठसः । नः । भगाय । वायवे । विप्रऽवीरः । सदाऽवृधः । सोमः । देवेषु । आ । यमत् ॥ ९.४४.५
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 44; मन्त्र » 5
अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 1; मन्त्र » 5
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अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 1; मन्त्र » 5
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(सदावृधः) यः सर्वदैव सर्वोत्कृष्टः (विप्रवीरः) यश्च मेधाविपुरुषान् शक्तिमतः कर्तुं प्रेरयति (सः सोमः) स परमात्मा (नः भगाय वायवे) अस्माकं वृद्धिं गच्छत ऐश्वर्याय (देवेषु आयमत्) ज्ञानक्रियाकुशलेषु विद्वत्सु शक्तिं वर्धयतु ॥५॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(सदावृधः) जो सदैव सर्वोपरि रहता है और (विप्रवीरः) “वीरयति यद्वा विशेषेण ईर्ते इरयति वा इति वीरः” जो मेधावी पुरुषों को वीर अर्थात् शक्ति प्रदान करके प्रेरणा करता है (सः सोमः) वह परमात्मा (नः भगाय वायवे) हमारे व्याप्तिशील ऐश्वर्य के लिये (देवेषु आयमत्) ज्ञानक्रियाकुशल विद्वानों की शक्तियों को बढ़ाये ॥५॥
भावार्थ
कर्म्मयोगी तथा ज्ञानयोगी पुरुषों की शक्तियों के बढ़ाने के लिये परमात्मा सदैव उद्यत रहता है ॥५॥
विषय
विप्रवीर सदावृध
पदार्थ
(सः) = वह (विप्रवीरः) = विद्वानों में श्रेष्ठ (सोमः) = सोम (देवेषु) = प्राणों में मुख्य प्राण या आत्मा के तुल्य (सदावृधः) = सदा बढ़ानेवाला (नः) = हमें (वायवे) = गतिशील (भगाय) = ऐश्वर्य के लिये (आयमत्) = नियम में चलाता है।
भावार्थ
भावार्थ - हम ऐश्वर्य, गतिशीलता, प्राणशक्ति, विद्वत्ता वृद्धि के लिये सोम को धारण करें ।
विषय
उसके कर्त्तव्य।
भावार्थ
(सः) वह (विप्र-वीरः) विद्वान् मेधावी जनों के बीच वीर्यवान्, उनको भी उत्तम मार्ग में चलाने हारा (सोमः) शासक जन (देवेषु) प्राणों या इन्द्रियों में मुख्य प्राण वा आत्मा के तुल्य (सदावृधः) सदा बढ़ाने वाला होकर (नः) हमें (वायवे) वायुवत् बल और (भगाय) ऐश्वर्य प्राप्त करने के लिये (आ यमत्) नियम व्यवस्था में बांधे।
टिप्पणी
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ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
यास्य ऋषिः॥ पवमानः सोमो देवता॥ छन्दः-१ निचृद् गायत्री। २-६ गायत्री॥ षडृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (1)
Meaning
May Soma, eternal and infinite, inspirer of the holy and brave, come among our noble and generous congregations of yajna and bless us with honour and excellence of a progressive social order vibrant as the winds.
मराठी (1)
भावार्थ
कर्मयोगी व ज्ञानयोगी पुरुषांची शक्ती वाढविण्यासाठी परमात्मा सदैव उद्यत असतो. ॥५॥
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