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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 44 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 44/ मन्त्र 4
    ऋषिः - अयास्यः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    स न॑: पवस्व वाज॒युश्च॑क्रा॒णश्चारु॑मध्व॒रम् । ब॒र्हिष्माँ॒ आ वि॑वासति ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सः । नः॒ । प॒व॒स्व॒ । वा॒ज॒ऽयुः । च॒क्रा॒णः । चारु॑म् । अ॒ध्व॒रम् । ब॒र्हिष्मा॑न् । आ । वि॒वा॒स॒ति॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    स न: पवस्व वाजयुश्चक्राणश्चारुमध्वरम् । बर्हिष्माँ आ विवासति ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सः । नः । पवस्व । वाजऽयुः । चक्राणः । चारुम् । अध्वरम् । बर्हिष्मान् । आ । विवासति ॥ ९.४४.४

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 44; मन्त्र » 4
    अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 1; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    यः परमात्मा (बर्हिष्मान् आ विवासति) व्यापकतारूपेण सर्वान् लोकान् आच्छादयति (सः)(अध्वरम् चारुम् चक्राणः) अस्माकं यज्ञं शोभमानं कुर्वाणः (नः पवस्व) अस्मान् पुनातु ॥४॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    जो परमात्मा (बर्हिष्मान् आ विवासति) व्यापकतारूप से सब लोकों को आच्छादन कर रहा है (सः) वह परमात्मा (अध्वरम् चारुम् चक्राणः) हमारे यज्ञ को शोभायमान करता हुआ (नः पवस्व) हमको पवित्र करे ॥४॥

    भावार्थ

    परमात्मा अपनी व्यापक सत्ता से सब लोक-लोकान्तरों को एकदेशी बनाकर व्यापकरूप से स्थिर है। उक्त यज्ञ में उसकी प्रकाशकभाव से प्रकाशित होने की प्रार्थना की गई है ॥४॥

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    विषय

    'वाज व श्रवस्' का विजेता सोम

    पदार्थ

    हे सोम ! (स) = वह तू (नः) = हमें (पवस्व) = पवित्र करनेवाला है, (वाजयुः) = बल को देनेवाला है, (चारु) = रमणीकता प्रदाता है, (अध्वरम्) = यज्ञ का प्रेरक है (बर्हिष्मान्) = दुरितों को दूर करता हुआ, (चक्राण:) = कर्मशील बनाता है, तथा (आविवासति) = हमारे आच्छादन प्राप्त कराता है।

    भावार्थ

    भावार्थ- सोम हमें ज्ञान, बल, सौन्दर्य, उज्ज्वल चरित्र प्रदान करता है।

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    विषय

    उसके कर्त्तव्य।

    भावार्थ

    जो तू (वाजयुः) ऐश्वर्य और बल की कामना करता हुआ वा बल-ऐश्वर्य का स्वामी होकर (चारुम् अध्वरं चक्राणः) उत्तम यज्ञ को करता हुआ (बर्हिष्मान्) इस लोक का स्वामी होकर (आ विवासति) सर्वत्र रहता और कार्य कर रहा है (सः) वह तू (नः पवस्व) हमें प्राप्त हो, हमें सुख दे।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    यास्य ऋषिः॥ पवमानः सोमो देवता॥ छन्दः-१ निचृद् गायत्री। २-६ गायत्री॥ षडृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    O Soma, blissful, watchful and gracious, lover of vibrant aspirants of divine progress, beautifier and sanctifier of our yajna with holiness and grace, the vedi is prepared, the grass is spread, the fire is awake, the yajamana invokes you, adores and glorifies, pray come and bless the celebrants’ yajna.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    परमात्मा आपल्या व्यापक सत्तेने सर्व लोक लोकांतरांना एकदेशी बनवून व्यापक रूपाने स्थिर आहे. वरील यज्ञात प्रकाशक भावनेने प्रकाशित होण्यासाठी त्याची प्रार्थना केलेली आहे. ॥४॥

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