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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 45 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 45/ मन्त्र 2
    ऋषिः - अयास्यः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - विराड्गायत्री स्वरः - षड्जः

    स नो॑ अर्षा॒भि दू॒त्यं१॒॑ त्वमिन्द्रा॑य तोशसे । दे॒वान्त्सखि॑भ्य॒ आ वर॑म् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सः । नः॒ । अ॒र्ष॒ । अ॒भि । दू॒त्य॑म् । त्वम् । इन्द्रा॑य । तो॒श॒से॒ । दे॒वान् । सखि॑ऽभ्यः॑ । आ । वर॑म् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    स नो अर्षाभि दूत्यं१ त्वमिन्द्राय तोशसे । देवान्त्सखिभ्य आ वरम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सः । नः । अर्ष । अभि । दूत्यम् । त्वम् । इन्द्राय । तोशसे । देवान् । सखिऽभ्यः । आ । वरम् ॥ ९.४५.२

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 45; मन्त्र » 2
    अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 2; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    हे परमात्मन् ! (सः) स त्वम् (नः दूत्यम् अभ्यर्ष) अस्मभ्यं कर्मयोगं प्रदेहि (त्वम् इन्द्राय तोशसे) यतस्त्वं परमैश्वर्यसम्प्राप्तये स्तूयसे अथ च (देवान् सखिभ्यः) सत्कर्मिभ्यो विद्वद्भ्यः (आवरम्) सुष्ठु तन्मनोऽभीष्टं देहि ॥२॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    हे परमात्मन् ! (सः) वह आप (नः दूत्यम् अभ्यर्ष) हमारे लिये कर्मयोग प्रदान करिये (त्वम् इन्द्राय तोशसे) क्योंकि आप परमैश्वर्यसम्पन्न होने के लिये स्तुति किये जाते हैं (देवान् सखिभ्यः) और सत्कर्मी विद्वानों के लिये (आवरम्) भली प्रकार उनके अभीष्ट को दीजिये ॥२॥

    भावार्थ

    परमात्मा सदाचारियों को सुख और दुष्कर्मियों को दुःख देता है। परमात्मा के राज्य में किसी के साथ भी अन्याय नहीं होता। इस बात को ध्यान में रखकर मनुष्य को सदैव सदाचारी बनने का यत्न करना चाहिये ॥२॥

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    विषय

    'दूत कर्म करनेवाला' सोम

    पदार्थ

    [१] हे सोम ! (सः) = वह तू (नः) = हमारे लिये (दूत्यं अभि अर्ष) = दूत कर्म करने के लिये प्राप्त हो । तू हमारे लिये प्रभु के सन्देश को प्राप्त करानेवाला बन । (त्वम्) = तू इन्द्राय उस प्रभु की प्राप्ति के लिये (तोशसे) = हमारी वासनाओं का संहार करता है। वासनाओं के संहार से ही ज्ञानदीप्ति होकर हमें प्रभु का दर्शन होता है। [२] हे सोम ! तू हम (सखिभ्यः) = सखाओं के लिये (देवान्) = दिव्य गुणों को तथा (वरम्) = वरणीय धन को (आ) [ पवस्व ] = प्राप्त करा ।

    भावार्थ

    भावार्थ- सुरक्षित सोम हमें [क] प्रभु का सन्देश सुनाता है, [ख] वासनाओं का संहार करता है, [ग] दिव्य गुणों को तथा श्रेष्ठ धन को प्राप्त कराता है।

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    विषय

    परमेश्वर से प्रार्थना।

    भावार्थ

    (सः) वह तू (नः) हमारे (दूत्यं) हल दूत भाव अर्थात् ज्ञान-संदेश लाने वाले के कार्य को (अभि अर्ष) कर। (त्वम् नः) तू हम (सखिभ्यः) मित्रों के लाभार्थ और (इन्द्राय तोशसे) दुःख-नाशक ऐश्वर्य के प्राप्त कराने के लिये हमें (देवान्) विद्वान् दानशील पुरुषों तक (वरं तोशसे) उत्तम रीति से पहुंचा।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अयाम्य ऋषिः॥ पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:—–१, ३–५ गायत्री। २ विराड् गायत्री। ६ निचृद् गायत्री॥ षडृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    O Soma, come like a harbinger of peace and joy for the divine experience and ecstasy of the soul, and as giver of holy and higher perception and vision for our friends.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    परमात्मा सदाचारींना सुख व दुष्कर्मींना दु:ख देतो. परमात्म्याच्या राज्यात कुणावरही अन्याय होत नाही. ही गोष्ट लक्षात ठेवून माणसाने सदैव सदाचारी बनण्याचा प्रयत्न केला पाहिजे. ॥२॥

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