ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 45/ मन्त्र 3
उ॒त त्वाम॑रु॒णं व॒यं गोभि॑रञ्ज्मो॒ मदा॑य॒ कम् । वि नो॑ रा॒ये दुरो॑ वृधि ॥
स्वर सहित पद पाठउ॒त । त्वाम् । अ॒रु॒णम् । व॒यम् । गोभिः॑ । अ॒ञ्ज्मः॒ । मदा॑य । कम् । वि । नः॒ । रा॒ये । दुरः॑ । वृ॒धि॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
उत त्वामरुणं वयं गोभिरञ्ज्मो मदाय कम् । वि नो राये दुरो वृधि ॥
स्वर रहित पद पाठउत । त्वाम् । अरुणम् । वयम् । गोभिः । अञ्ज्मः । मदाय । कम् । वि । नः । राये । दुरः । वृधि ॥ ९.४५.३
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 45; मन्त्र » 3
अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 2; मन्त्र » 3
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अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 2; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
हे परमात्मन् ! (अरुणम् उत त्वाम्) गतिशीलं भवन्तम् (मदाय) आह्लादलाभाय (गोभिः अञ्ज्मः) इन्द्रियैः प्रत्यक्षीकुर्मः (नः रायम्) भवान् अस्माकं विभवाय (दुरः विवृधि) कल्मषं विनाशयतु (कम्) सुखं च ददातु ॥३॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
हे परमात्मन् ! (अरुणम् उत त्वाम्) गतिशील आपको (मदाय) आह्लादप्राप्ति के लिये (गोभिः अञ्ज्मः) इन्द्रियों द्वारा ज्ञान का विषय करते हैं (नः रायम्) आप हमारे ऐश्वर्य के लिये (दुरः विवृधि) पापों को नष्ट करिये तथा (कम्) सुख प्रदान करिये ॥३॥
भावार्थ
जो लोग अपनी इन्द्रियों का संयम करते हैं, वे ही उस परमात्मा के शुद्ध स्वरूप को अनुभव कर सकते हैं, अन्य नहीं ॥३॥
विषय
'ऐश्वर्य द्वार' का उद्घाटन
पदार्थ
[१] हे सोम ! (उत) = और (अरुणम्) = तेजस्वी (कम्) = आनन्दप्रद (त्वाम्) = तुझको (वयम्) = हम (गोभिः) = ज्ञान की वाणियों के द्वारा (अम:) = अपने अन्दर संस्कृत करते हैं। तू (मदाय) = हमारे उल्लास का कारण बनता है। [२] हे सोम ! तू (नः) = हमारे (राये) = ऐश्वर्य के लिये (दुरः विवृधि) = द्वारों को खोल डाल । सोमरक्षण से हम सब ऐश्वर्यों को प्राप्त करनेवाले बनें। हमारे लिये ऐश्वर्य के द्वार खुले हों । अन्नमयादि सब कोशों को हम क्रमशः 'तेज, वीर्य, बल व ओज, मन्यु तथा सहस्' रूप ऐश्वर्यों से इस सोम के द्वारा ही परिपूर्ण करनेवाले बनते हैं ।
भावार्थ
भावार्थ - ज्ञान प्राप्ति में लगे रहकर हम सोम को शरीर में सुरक्षित करते हैं। यह सुरक्षित सोम हमारे लिये ऐश्वर्य के द्वारों को खोल डालता है।
विषय
परमेश्वर से प्रार्थना।
भावार्थ
(उत) और (वयं) हम (त्वाम् अरुणं) तुझ तेजस्वी को (कम् मदाय) हर्ष के लिये (गोभिः अञ्ज्मः) वाणियों द्वारा प्रकाशित करते हैं। तू (नः) हमारे (राये) ऐश्वर्य प्राप्त करने के (दुरः) नाना द्वार (विवृधि) खोल।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अयाम्य ऋषिः॥ पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:—–१, ३–५ गायत्री। २ विराड् गायत्री। ६ निचृद् गायत्री॥ षडृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (1)
Meaning
O vibrant lord of light and glory, with concentration of mind and senses and with holy words of praise and prayer, we adore you. Pray bring us peace and joy and perfect well being, and open wide the doors of progress for the advancement of our wealth, honour and excellence.
मराठी (1)
भावार्थ
जे लोक आपल्या इंद्रियांवर संयम करतात तेच त्या परमेश्वराच्या शुद्ध स्वरूपाचा अनुभव घेऊ शकतात, इतर नाही. ॥३॥
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