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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 45 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 45/ मन्त्र 5
    ऋषिः - अयास्यः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    समी॒ सखा॑यो अस्वर॒न्वने॒ क्रीळ॑न्त॒मत्य॑विम् । इन्दुं॑ ना॒वा अ॑नूषत ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सम् । ई॒म् इति॑ । सखा॑यः । अ॒स्व॒र॒न् । वने॑ । क्रीळ॑न्तम् । अति॑ऽअविम् । इन्दु॑म् । ना॒वाः । अ॒नू॒ष॒त॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    समी सखायो अस्वरन्वने क्रीळन्तमत्यविम् । इन्दुं नावा अनूषत ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सम् । ईम् इति । सखायः । अस्वरन् । वने । क्रीळन्तम् । अतिऽअविम् । इन्दुम् । नावाः । अनूषत ॥ ९.४५.५

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 45; मन्त्र » 5
    अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 2; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (अत्यविम्) सर्वस्यातिरक्षकम् (वने क्रीडन्तम्) अखिलब्रह्माण्डरूपे वने क्रीडन्तम् (इम् इन्दुम्) अमुं परमात्मानं (सखायः) तदीयप्रियस्तोतारः (अस्वरन्) शब्दायमाना अभवन् भूत्वा च (नावाः समनूषत) तद्रचितवेदवाग्भिः उपतस्थिरे ॥५॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (अत्यविम्) अतिशय सबकी रक्षा करनेवाले (वने क्रीडन्तम्) अखिल ब्रह्माण्डरूप वन में क्रीडा करते हुए (इम् इन्दुम्) इस परमात्मा की (सखायः) उसके प्रिय स्तोता लोग (अस्वरन्) शब्दायमान होते हुए (नावाः समनूषत) उसकी रचित वेदवाणीयों से स्तुति करते हैं ॥५॥

    भावार्थ

    परमात्मा के ज्ञान का साधन मनुष्य के पास एकमात्र उसका स्तोत्र वेद ही है, अन्य कोई ग्रन्थ उसके पूर्णज्ञान का साधन नहीं ॥५॥

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    विषय

    'नाव' रूप सोम

    पदार्थ

    [१] (ई) = निश्चय से (सखायः) = प्रभु के मित्र (इन्दुम्) = इस सोम का (सं अस्वरन्) = सम्यक् स्तवन करते हैं। वे गुणों का प्रतिपादन करते हैं। सोम के गुणों का स्मरण सोमरक्षण के लिये प्रेरक बनता है। उसका स्तवन करते हैं जो कि वने क्(रीडन्तम्) = उपासक में [वन संभक्तौ] क्रीडा का करनेवाला है। उपासक को सोम क्रीडक की मनोवृत्तिवाला बनाता है। यह सोमरक्षक पुरुष [sport's man like spirit] क्रीडक की मनोवृत्तिवाला होता है। हम उस सोम का स्तवन करते हैं जो कि (अत्यविम्) = अतिशयेन रक्षक है। यह हमें रोगों से आक्रान्त नहीं होने देता, वासनाओं का शिकार होने से बचाता है। [२] (इन्दुम्) = इस सोम को (नावा) = एक नाव के रूप से (अनूषत) = स्तुत करते हैं। यह सोम जीवनयात्रा की पूर्ति के लिये एक नौका के समान बनता है, इसके द्वारा हम भवसागर को आसानी से पार कर पाते हैं।

    भावार्थ

    भावार्थ- सोम हमें [क] क्रीडक की मनोवृत्तिवाला बनाता है, [ख] हमारा रक्षण करता है, [ग] भवसागर को तैरने के लिये नाव के समान होता है।

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    विषय

    मिलकर ईश्वर स्तुति करने का उपदेश।

    भावार्थ

    (वने क्रीडन्तम्) सेवने योग्य प्राकृत जगत् में (क्रीडन्तं) अनायास जगत् का सञ्चालन करते हुए (इन्दुम्) उस ऐश्वर्यवान् को (सखायः) मित्र जन (नावा) वाणी द्वारा (सम् अस्वरन्) मिलकर स्तुति गावें और उस (अति अविम्) परम रक्षक, सूर्य और पृथिवी से भी ऊपर, उनसे भी अधिक सर्व-रक्षक को वाणी द्वारा (अनूषत) स्तुति करें।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अयाम्य ऋषिः॥ पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:—–१, ३–५ गायत्री। २ विराड् गायत्री। ६ निचृद् गायत्री॥ षडृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Let friends and devotees on the vedi celebrate Soma, spirit of universal joy, sportive and protective in the beautiful world, and let their songs of adoration glorify the spirit of peace, beauty and divine glory.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    परमेश्वराच्या ज्ञानाचे साधन माणसाजवळ एकमेव त्याचा स्रोत वेदच आहे, इतर कोणताही ग्रंथ त्याच्या पूर्ण ज्ञानाचे साधन नाही. ॥५॥

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