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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 51 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 51/ मन्त्र 2
    ऋषिः - उचथ्यः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    दि॒वः पी॒यूष॑मुत्त॒मं सोम॒मिन्द्रा॑य व॒ज्रिणे॑ । सु॒नोता॒ मधु॑मत्तमम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    दि॒वः । पी॒यूष॑म् । उ॒त्ऽत॒मम् । सोम॑म् । इन्द्रा॑य । व॒ज्रिणे॑ । सु॒नोत॑ । मधु॑मत्ऽतमम् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    दिवः पीयूषमुत्तमं सोममिन्द्राय वज्रिणे । सुनोता मधुमत्तमम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    दिवः । पीयूषम् । उत्ऽतमम् । सोमम् । इन्द्राय । वज्रिणे । सुनोत । मधुमत्ऽतमम् ॥ ९.५१.२

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 51; मन्त्र » 2
    अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 8; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    हे अध्वर्यवः ! यो हि (मधुमत्तमम्) सर्वरसेषूत्तमोऽस्ति (दिवः पीयूषम्) अथ च द्युलोकस्य यदमृतमस्ति, एवं भूतम् (उत्तमम् सोमम्) उत्तमं परमात्मानं (इन्द्राय पातवे) स्वस्य जीवात्मनस्तृप्तये (सुनोत) ध्यानविषयं कुरुत ॥२॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    हे अध्वर्य लोगों ! जो कि (मधुमत्तमम्) सब रसो में उत्तम है (दिवः पीयूषम्) और द्युलोक का अमृत है, ऐसे (उत्तमम् सोमम्) उत्तम परमात्मा को (इन्द्राय पातवे) अपने जीवात्मा की तृप्ति के लिये (सुनोत) ध्यान का विषय बनाओ ॥२॥

    भावार्थ

    जो अपनी तृप्ति के लिए एकमात्र परमात्मा को ध्यान का विषय बनाते हैं, वे उस ब्रह्मामृत का पान करते हैं, अन्य नहीं ॥२॥

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    विषय

    दिवः पीयूषम्

    पदार्थ

    [१] (इन्द्राय) = परमैश्वर्यशाली प्रभु की प्राप्ति के लिये और (वज्रिणे) = वज्रतुल्य दृढ़ शरीरवाला बनने के लिये (सोमम्) - सोम को [वीर्यशक्ति को] (सुनोता) = अपने अन्दर सम्पादित करो। शरीर में सुररिक्षत हुआ हुआ यह सोम रोगकृमियों के विनाश के द्वारा हमें दृढ़ शरीरवाला बनाता है। यह हमारी ज्ञानाग्नि को दीप्त करके हमें प्रभु-दर्शन के योग्य बनाता है। [२] यह सोम तो (दिवः पीयूषम्) = द्युलोक का अमृत है। शरीर में मस्तिष्क ही द्युलोक है। यह सोम मस्तिष्क को कभी नष्ट न होने देनेवाला है। ज्ञानाग्नि का यही तो ईंधन बनता है । (उत्तम्) = यह उत्तम है, अर्थात् हमें सर्वोकृष्ट स्थिति में प्राप्त करानेवाला है। मधुमत्तमम् जीवन को अतिशयेन मधुर बनानेवाला है।

    भावार्थ

    भावार्थ - शरीर में सुरक्षित सोम ज्ञान का अमृत है, ज्ञान को न नष्ट होने देनेवाला है, हमें उत्कृष्ट स्थिति में प्राप्त कराता है, हमारे जीवन को मधुर बनाता है ।

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    विषय

    क्षमाशील राजा के अन्न जल के आश्रित प्रजाजन।

    भावार्थ

    (वज्रिणे इन्द्राय) समस्त शक्ति, बल, शस्त्र सैन्यादि के स्वामी, ऐश्वर्य के मालिक, सब को अन्नादि वृत्ति देने वाले, राज्य पद के लिये (दिवः पीयूषम्) आकाश की शोभा को बढ़ाने वाले अमृत तुल्य सूर्य वा चन्द्र के तुल्य अति तेजस्वी, कान्तिमान् पृथ्वी निवासी प्रजा जन की वृद्धि करने वाले (सोमम्) उत्तम ऐश्वर्ययुक्त, (मधुमत्तमम्) अति मधुर स्वभाव से युक्त पुरुष को (सुनोत) अभिषिक्त करो।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    उचथ्य ऋषिः। पवमानः सोमो देवता॥ छन्दः— १, २ गायत्री। ३–५ निचृद गायत्री।

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Create the highest honey sweet Soma of divine consciousness, highest exhilarating experience of the light of heaven for the soul’s awareness, and then rise to adamantine power against all possible violations.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जे आपल्या तृप्तीसाठी केवळ परमात्म्याला ध्यानाचा विषय बनवितात तेच त्या ब्रह्मामृताचे पान करतात, अन्य नव्हे ॥२॥

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