ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 51/ मन्त्र 4
त्वं हि सो॑म व॒र्धय॑न्त्सु॒तो मदा॑य॒ भूर्ण॑ये । वृष॑न्त्स्तो॒तार॑मू॒तये॑ ॥
स्वर सहित पद पाठत्वम् । हि । सो॒म॒ । व॒र्धय॑न् । सु॒तः । मदा॑य । भूर्ण॑ये । वृष॑न् । स्तो॒तार॑म् । ऊ॒तये॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
त्वं हि सोम वर्धयन्त्सुतो मदाय भूर्णये । वृषन्त्स्तोतारमूतये ॥
स्वर रहित पद पाठत्वम् । हि । सोम । वर्धयन् । सुतः । मदाय । भूर्णये । वृषन् । स्तोतारम् । ऊतये ॥ ९.५१.४
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 51; मन्त्र » 4
अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 8; मन्त्र » 4
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अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 8; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(सोम) हे परमात्मन् ! (त्वं हि) त्वं यदा (सुतः) विद्वद्भिः साक्षात्कृतो भवसि तदा (मदाय) आनन्दाय (भूर्णये) दाक्ष्याय (ऊतये) रक्षायै च (स्तोतारम्) उपासकं (वर्धयन्) समृद्धयन् (वृषन्) सर्वान् कामान् पूरयसि ॥४॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(सोम) हे परमात्मन् ! (त्वं हि) आप जब (सुतः) विद्वानों द्वारा साक्षात्कार किये जाते हैं, तो (मदाय) आनन्द के लिये और (भूर्णये) दक्षता के लिये तथा (ऊतये) रक्षा के लिये (स्तोतारम्) उपासक को (वर्धयन्) समृद्ध बनाते हुए (वृषन्) सब कामनाओं को पूर्ण करते हैं ॥४॥
भावार्थ
सर्वोपरि नीति और व्यवहारकुशलता की नीति एकमात्र परमात्मा द्वारा उपदिष्ट वेदों से ही मिल सकती है, अन्यत्र नहीं ॥४॥
विषय
मदाय-भूर्णये-ऊतये
पदार्थ
[१] हे (सोम) = वीर्यशक्ते! (त्वम्) = तू (हि) = निश्चय से (सुतः) = उत्पन्न हुआ हुआ (वर्धयन्) = सब शक्तियों का वर्धन करता हुआ (मदाय) = हर्ष के लिये होता है, (भूर्णये) = भरण के लिये होता है अथवा [भूर्णि = क्षिप्रम्] शीघ्रता से कार्यों को करने के लिये होता है। [२] हे सोम ! (स्तोतारम्) = उपासक को (वृषन्) = सब सुखों से सिक्त करता हुआ तू (ऊतये) = रक्षण के लिये होता है । सोम शरीर में सुरक्षित होने पर आधिव्याधियों को विनष्ट करनेवाला होता है। प्रभु की उपासना के होने पर यह शरीर में सुरक्षित रहता है ।
भावार्थ
भावार्थ - शरीर में सुरक्षित सोम उल्लास के लिये, शीघ्रता से कार्यों को करने के लिये तथा रक्षण के लिये होता है।
विषय
उत्तम राजा और प्रबन्धक के कर्त्तव्य, प्रजापालन और वर्धन।
भावार्थ
हे (सोम) ऐश्वर्यवन् ! हे (वृषन्) उत्तम बलशालिन् ! उत्तम प्रबन्धक ! (त्वं हि) तू (सुतः) अभिषिक्त एवं ऐश्वर्य का स्वामी होकर (स्तोतारम्) तेरे गुणों की स्तुति करने वाले, तुझे अपना पूज्य स्वीकार करने वाले के (मदाय) सुख और (भूर्णये) पालन और (ऊतये) रक्षा के लिये उसे (वर्धयन्) बढ़ाता रह। और—
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
उचथ्य ऋषिः। पवमानः सोमो देवता॥ छन्दः— १, २ गायत्री। ३–५ निचृद गायत्री।
इंग्लिश (1)
Meaning
Soma, lord of purity, peace and power, you alone are the object of meditation, supplication and exaltation for the ecstasy, vibrancy and protected progress of life, you alone promote the celebrant to the top of sovereignty and give him showers of joy.
मराठी (1)
भावार्थ
सर्वोत्कृष्ट नीती व व्यवहार कुशलतेची नीती एकमेव परमात्म्याद्वारे वेदामधूनच मिळू शकते. ॥४॥
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