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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 51 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 51/ मन्त्र 3
    ऋषिः - उचथ्यः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - निचृद्गायत्री स्वरः - षड्जः

    तव॒ त्य इ॑न्दो॒ अन्ध॑सो दे॒वा मधो॒र्व्य॑श्नते । पव॑मानस्य म॒रुत॑: ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    तव॑ । त्ये । इ॒न्दो॒ इति॑ । अन्ध॑सः । दे॒वाः । मधोः॑ । वि । अ॒श्न॒ते॒ । पव॑मानस्य । म॒रुतः॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    तव त्य इन्दो अन्धसो देवा मधोर्व्यश्नते । पवमानस्य मरुत: ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    तव । त्ये । इन्दो इति । अन्धसः । देवाः । मधोः । वि । अश्नते । पवमानस्य । मरुतः ॥ ९.५१.३

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 51; मन्त्र » 3
    अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 8; मन्त्र » 3
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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (इन्दो) हे जगद्रक्षक परमात्मन् ! (पवमानस्य) सर्वपवित्रकारकस्य (तव) भवतः (मधोः) मधुरस्य (अन्धसः) रसस्य (देवाः त्ये मरुतः) दिव्यगुणसम्पन्ना विद्वांसः (व्यश्नते) पानं कुर्वन्ति ॥३॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (इन्दो) हे परमात्मन् ! (पवमानस्य) सबको पवित्र करनेवाले (तव) आपके (मधोः) मधुर (अन्धसः) रस का (देवाः त्ये मरुतः) दिव्यगुणसम्पन्न विद्वान् पान करते हैं ॥३॥

    भावार्थ

    ब्रह्मामृतरसास्वाद के लिए दिव्य शक्तियों को उपलब्ध करना अत्यावश्यक है, इसलिए उक्त मन्त्र में परमात्मा ने दिव्य शक्तियों का उपदेश किया है ॥३॥

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    विषय

    मधुर व पवमान

    पदार्थ

    [१] हे (इन्दो) = हमें शक्तिशाली बनानेवाले सोम ! (त्ये) = वे (देवा:) = देववृत्ति के व्यक्ति और (मरुतः) = प्राणसाधना करनेवाले पुरुष (तव व्यश्नते) = तेरा ही सेवन करते हैं, शरीर में तुझे व्याप्त करने के लिये यत्नशील होते हैं। शरीर में सोम को सुरक्षित करने के लिये आवश्यक है कि हम आसुरभावों से ऊपर उठें, दिव्यभावों को अपने हृदयों में भरें। इसके हम प्राणसाधना करनेवाले बनें । प्राणसाधना द्वारा शरीर में सोम की ऊर्ध्वगति होती है। [२] उस सोम का हम शरीर में व्यापन करें जो कि (अन्धसः) = शरीर का अन्न बनता है, शरीर का वस्तुतः धारण करनेवाला यह सोम ही है । (मधोः) = यह जीवन को मधुर बनानेवाला है और (पवमानस्य) = हमें पवित्र बनानेवाला है ।

    भावार्थ

    भावार्थ- सोमरक्षण में देववृत्ति व प्राणायाम सहायक हैं। यह सोम शरीर का अन्न है, जीवन को धुर बनाता है तो हमें पवित्र करता है।

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    विषय

    क्षमाशील राजा के अन्न जल के आश्रित प्रजाजन।

    भावार्थ

    हे (इन्दो) ऐश्वर्यवन् ! सुखों के वर्षक ! (पवमानस्य) दानशील (मरुतः) जलवर्षी वायु के समान सुखों के वर्षणकारी, बलवान् (तव) तेरे (अन्धसः) अन्न और (मधोः) जल को (देवाः) सब मनुष्य (वि अश्नुते) विशेष रूप से प्राप्त करते और उपभोग करते हैं।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    उचथ्य ऋषिः। पवमानः सोमो देवता॥ छन्दः— १, २ गायत्री। ३–५ निचृद गायत्री।

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Then, O Soma, Spirit of divinity, the noblest, most vibrant generous and brilliant souls have a drink of the elixir of your honey sweet presence flowing exuberantly at the purest.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    ब्रह्मामृत रसास्वादासाठी दिव्य शक्तींना उपलब्ध करणे अतिआवश्यक आहे. त्यासाठी वरील मंत्रात परमेश्वराने दिव्य शक्तींना उपदेश केलेला आहे. ॥२॥

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