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ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 57/ मन्त्र 2
अ॒भि प्रि॒याणि॒ काव्या॒ विश्वा॒ चक्षा॑णो अर्षति । हरि॑स्तुञ्जा॒न आयु॑धा ॥
स्वर सहित पद पाठअ॒भि । प्रि॒याणि॑ । काव्या॑ । विश्वा॑ । चक्षा॑णः । अ॒र्ष॒ति॒ । हरिः॑ । तु॒ञ्जा॒नः । आयु॑धा ॥
स्वर रहित मन्त्र
अभि प्रियाणि काव्या विश्वा चक्षाणो अर्षति । हरिस्तुञ्जान आयुधा ॥
स्वर रहित पद पाठअभि । प्रियाणि । काव्या । विश्वा । चक्षाणः । अर्षति । हरिः । तुञ्जानः । आयुधा ॥ ९.५७.२
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 57; मन्त्र » 2
अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 14; मन्त्र » 2
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अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 14; मन्त्र » 2
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(हरिः) स परमात्मा (आयुधा तुञ्जानः) स्वशस्त्रैः व्यथयन् (विश्वा काव्या चक्षाणः) सम्पूर्णकर्माणि पश्यन् (प्रियाणि अभि अर्षति) प्रियान् स्वोपासकानभिगच्छति ॥२॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(हरिः) वह परमात्मा (आयुधा तुञ्जानः) अपने शस्त्रों से शत्रुओं को व्यथित करता हुआ (विश्वा काव्या चक्षाणः) सम्पूर्ण कर्मों को देखता हुआ (प्रियाणि अभि अर्षति) अपने प्रिय उपासकों की ओर जाता है ॥२॥
भावार्थ
उसका दण्डरूप वज्र दुष्टों के लिए सदैव उद्यत रहता है और सत्कर्मी सदैव उससे निर्भय रहते हैं ॥२॥
विषय
आयुध-रक्षण
पदार्थ
[१] यह सोम शरीर में सुरक्षित होने पर (प्रियाणि) = देवों के लिये प्रीतिकर [देव-हितं] (विश्वा काव्या) = सब वेद की वाणियों को [देवस्य पश्य काव्यं, न ममार न जीर्यति] (अभिचक्षाणः) = सम्यक् देखता हुआ, अर्थात् इनके द्वारा प्रकृति व आत्मा का ज्ञान प्राप्त कराता हुआ (अर्षति) = गति करता है। सुरक्षित सोम ज्ञानाग्नि का ईंधन बनता है। ज्ञानाग्नि के दीप्त होने से ज्ञान की वाणियाँ हमें प्रिय होती हैं। उन ज्ञान की वाणियों में हम प्रकृति व आत्मा का ज्ञान पाते हैं, यही इन वाणियों का अभिचक्षण है। [२] (हरिः) = यह सब रोगों व वासनाओं का हरण करनेवाला सोम (आयुधा) = हमारे इन्द्रिय, मन व बुद्धि रूप आयुधों को (तुञ्जान:) = [guard, protect ] सुरक्षित करता है । वस्तुतः सोम की शक्ति से ही ये सब आयुध शक्ति - सम्पन्न होते हैं ।
भावार्थ
भावार्थ- सोमरक्षण से [क] ज्ञान बढ़ता है, [ख] इन्द्रियाँ, मन व बुद्धि उत्तम बनते हैं ।
विषय
मेघवत् शासक के कर्त्तव्य।
भावार्थ
(हरिः) प्रजा के चित्तों और दुःखों का हरने वाला (आयुधा) नाना शस्त्रों को (तुञ्जानः) शत्रुओं पर चलाता हुआ, (विश्वा काव्या) सब प्रकार के विद्वानों के कार्यों को (चक्षाणः) देखता हुआ, वा विद्वानों के उपदिष्ट ज्ञानों को प्रकाशित करता हुआ (प्रियाणि अभि अर्षति) सब प्रिय पदार्थों को प्राप्त करता, कराता है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अवत्सार ऋषिः॥ पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:— १, ३ गायत्री २ निचृद गायत्री। ४ ककुम्मती गायत्री।
इंग्लिश (1)
Meaning
Soma, spirit of joy, destroyer of suffering, watching all human activity, flows forth for its dear favourites, striking its arms against adverse forces.
मराठी (1)
भावार्थ
त्याचे दंडरूप वज्र दुष्टांसाठी सदैव तयार असते व सत्कर्मी सदैव त्याच्यापासून निर्भय असतो. ॥२॥
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